आपका तअर्रुफ़ :- मलिकुल मशाइख बुरहानुल हक़ाइक़ सिराजुल औलिया ताजुल असफिया गंज बख्श मगरबी चिराग हज़रत सय्यदना गंज बख्श खट्टू रदियल्लाहु अन्हु आप दिल्ली के शाही खानदान से थे | आपके वालिद का नाम “मालिक इख्तियारुद्दीन” था आप की विलादत दिल्ली में हुई | आपके पिरो मुर्शिद का मुबारक नाम सय्यदना बाबा इस्हाक़ मगरबी रदियल्लाहु अन्हु हैं जिनका मज़ार शरीफ राजिस्थान के “खट्टू” में है आप की तालीम व तरबियत आपके पिरो मुर्शिद हज़रत बाबा इस्हाक़ मगरबी रदियल्लाहु अन्हु की निगरानी में हुई आपने उलूमे ज़ाहिरी और बातिनी की तकमील की जब आप पहली बार मदीना मुनव्वराह की हाज़री का शरफ़ हासिल हुआ और काफिला मदीना शरीफ की सरहद में दाखिल हुआ और सरवरे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का रोज़ाये पाक दिखाई दिया तो आप पर एक कैफियत तारी हो गई आप ऊँट से नीचे उतर गए तेज़ी से चलते और दुरूदे पाक पढ़ते हुए आप दरबारे रिसालत में हाज़िर हुए | लोगों ने आपको अपना मेहमान रखना चाहा लेकिन आपने इंकार कर दिया और फ़रमाया के आज में सरवरे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मेहमान हूँ रोज़ए पाक में आप जैसे ही दाखिल हुए तो एक शख्स जो वहां के मुजावर और बुज़ुर्ग थे उन्हों ने आपको कुछ खजूरें पेश की जो कपड़े में लिपटी हुई थीं और कहा के ये खजूरे सरवरे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरफ से हैं जिनके आप आज मेहमान हैं आपकी उम्र शरीफ 111 साल की हुई हुई आपका मज़ार शरीफ अहमदाबाद में सरखेज के इलाक़े में मरजए खलाइक़ है जहाँ हज़ारों की तादाद में लोग हाज़िर होकर अपने मन की मुरादें पाते हैं |

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इल्मे ग़ैब का सुबूत आपकी करामत से :– बादशाह तैमूर ने जब हिंदुस्तान पर हमला किया और दिल्ली को ताराज किया उस वक़्त आप दिल्ली में थे हमले से 15 दिन पहले आपने दिल्ली के लोगों को आने वाली मुसीबत से आह्गाह कर दिया था आपके बाज़ मुरीद दिल्ली से जौनपुर चले गए और इस तरह वो बच गए तैमूर के सिपाहियों ने दिल्ली में बहोत क़त्लो ग़ारतगरी की और बहोत से लोगों को गिरफ्तार किया हज़रत भी उन लोगों में थे जो गिरफ्तार किये गए आपके साथ 40 आदमी थे क़ैद में भी आप अपने साथियों का ख्याल रखते थे आप और आपके साथी जब तक क़ैद में रहे ग़ैब से 40 रोटियां आती रहीं इस तरह उनको खाने पीने की कोई तकलीफ न हुई | तैमूर को जब इस बात की खबर हुई तो वो आपकी बुज़ुर्गी व अज़मत को देखकर आप का मोअतक़िद हो गया उसने आपको आज़ाद कर दिया और गिरफ्तार किये जाने पर बड़ा शर्मिंदाह हुआ और आपसे माफ़ी मांगी | सुब्हान अल्लाह क्या शान है औलिया अल्लाह की की आने वाली बातों का इल्म भी अल्लाह ने उनको अता फ़रमाया और ज़बरदस्त ताक़त क़ुव्वत अता फ़रमाई के जब चाहे जो चाहें अता फ़रमादें |

गंज गीर व गंज बख्स लक़ब होने की वजह :- बदरुल आरफीन सिराजुस सिद्दिक़ीन क़ुत्बे आलम गौसुस सक़लैन अमजदुल अकाबिर हज़रत सय्यदना शैख़ अहमद गंज बख्श खट्टू मगरबी रदियल्लाहु अन्हु का लक़ब “गंज गीर व गंज बख्श” भी है गंज के माना “ख़ज़ाने” के हैं और “गीर” के माना पकड़ ने वाले और लेने वाले के हैं तो खिताब का माना निकला आप ख़ज़ाने को लेने वाले और अता करने वाले हैं इस खिताब की एक तारीखी वजह ये बयान की जाती है के हिजरी 785 में जब खिरकाए मेह्बूबियत हज़रात सय्यदना मखदूम जहनियाँ जहांगशत रदियल्लाहु अन्हु ने आपको अता फ़रमाया था उसी नेअमते उज़्मा पर क़ब्ज़ा पाने की वजह से आपका ख़िताब “गंज गीर” हुआ और वो खिरकाए मुबारक 80 साल तक आप के पास बतौर अमानत दो शम्बा (पीर) के दिन 12 रबीउल शरीफ हिजरी 864 को आपने महबूबे बारी हज़रत सय्यदना मुहम्मद सिराजुद्दीन शाहे आलम बुखारी रदियल्लाहु अन्हु को अता फ़रमाई. उसी तारीख से आपका लक़ब व ख़िताब ” गंज बख्श” मशहूर हो गया | (तज़किराए औलिआए अहमदाबाद)

गाँव को डूबने से बचा लिया :- मगरिबी चिराग हज़रत सय्यदना शैख़ अहमद गंज बख्श खट्टू मगरिबी रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया के एक वक़्त जब में सफर कर रहा था एक गाँव में क़याम करने का इत्तिफ़ाक़ हुआ ये ज़माना बरसात का था और गाँव के पास ही एक नदी बह रह थी | और में जिस जगह मुक़ीम था लोग उस जगह से अपना तमाम सामान दूसरी जगह मुन्तक़िल कर रहे थे मेने पूछा के क्या माजरा है? उनहोंने कहा के मोसमे बरसात में नदी की तुग़यानी इस क़द्र हो जाती है के गाँव का तीन हिस्सा डूब जाता है इसलिए इस मौसम में हम लोग दूसरे गाँव में चले जाते हैं बरसात का मौसम ख़त्म होने के बाद वापस आ कर हम अपने मकान में आ जाते हैं ये सुनकर शैख़ अहमद खट्टू रदियल्लाहु अन्हु उठे और लोगों को जमा करके नदी के किनारे लाए और पूछा के कहाँ हद बनाऊके आइंदा नदी में तुग़यानी आए तो गाँव न डूबे लोगों ने एक जगह बताई बंदा चंद क़दम और आगे बढ़कर खड़ा हो गया और उनसे कहाँ के लकड़ी की एक मिनख लाओ लोग लाए मेने उस जगह उसको नसब करके गाड़ के खेच दिया के इंशा अल्लाह नदी का पानी इससे आगे नहीं बढ़ेगा में लोगों को तसल्ली देकर वहां से जाने लगा मगर लोगों ने मुझे जाने न दिया लेकिन सब लोग दिल में दर रहे थे अचानक पानी तेज़ होना शुरू हुआ और बढ़ते बढ़ते उस हद तक पहुँच गया के जहाँ मेंख नसब की गई थी न सिर्फ ये के उस हद से आगे पानी न बढ़ा बल्कि उस मेंख से पानी कुछ दूर ही रहा लोगों ने कहाँ के इस साल तो इस हद तक आ कर रुक गया अगले साल कौन जाने क्या होगा मेने कहा के अल्लाह की मदद से जब तक ये बस्ती आबाद रहेगी ये निशान क़ायम रहेगा (तज़किराए औलिआए अहमदाबाद) |

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हज़रत सय्यद मखदूम जहानिया जहाँ रदियल्लाहु अन्हु से आपकी मुलाक़ात :- एक रोज़ का ज़िक्र है के सय्यदना मखदूम जहानिया जहाँ गश्त रदियल्लाहु अन्हु पालकी में सवार होकर फ़क़ीरों और उमराओ के साथ दिल्ली की मस्जिद खान जहाँ की तरफ से गुज़र रहे थे लोग आपकी ज़ियारत करते जा रहे थे हज़रत सय्यदना गंज अहमद खट्टू रदियल्लाहु अन्हु भी इसी रास्ते से गुज़र रहे थे जब आप को ये मालूम हुआ के मखदूम जहनियाँ जहांगशत रदियल्लाहु अन्हु की पालकी इस तरफ से गुज़र रहीं है तो आप फ़ौरन वहां से भाग निकले इत्तिफ़ाक़ से मखदूम पाक की नज़र आप पर पद गई आपने खादिमो से फ़रमाया के इस कूचे में एक नौजवान हमें देखकर भागा है उसे बुला लाओ उससे हमें अज़ीम काम लेना है | कुछ खादिम दौड़े और आपको मखदूम पाक की बारगाह में ले आए हज़रत गंज अहमद खट्टू रदियल्लो अन्हु को देखकर हज़रत मखदूम पाक ताज़िमन पालकी से नीचे उतरे आपको गले से लगा लिया और फ़रमाया के मुझे इस साइन से दोस्त की बू आ रहीं है और मज़ीद फ़रमाया के अपने पिरो मुर्शिद बाबा इस्हाक़ मगरिबी अलैहिर्रहमा की खिदमत में हमारा सलाम पेश करना और कहना के आप क्यों हमसे नाराज़ हैं अल्लाह तआला ने हमें इस तरफ महिज़ आपके फ़रज़न्दे रूहानी की खातिर भेजा है ऐ शैख़ अहमद अगर वो इस बात को क़ुबूल फ़रमालें और हमारे पास आने की इजाज़त दे दें तो इस फ़क़ीर से मुलाक़ात के लिए आप तशरीफ़ लाएं जब हज़रत शैख़ अहमद गज बख्श खट्टू रदियल्लाहु अन्हु ने अपने हक़ में आपकी तरफ से बेहद इनायत महसूस की और जब आप हज़रत मखदूम पाक से गले मिले तो यूं लगा के आपके सीने में अनमोल मोती जगमगाने लगे आप पर इल्मे ज़ाहिरी व बातिनी के दरवाज़े खुल गए हज़रत शैख़ अहमद बगलगीर होने के बाद फ़ौरन कदम बोसी के लिए आपके क़दमों की तरफ झुके इसके बाद हज़रात मखदूम पाक पालकी में तशरीफ़ ले गए और पालकी चल पड़ी लेकिन हज़रत शैख़ अहमद के चंद बाल मुबारक पालकी के हलके में उलझ गए और आप दो तीन क़दम इसी हालत में पालकी के साथ चले हज़रात सय्यदना मखदूम जहनिया जहांगशत रदियल्लाहु अन्हु ने जब आपकी ये हालत देखि तो बड़े प्यार और मोहब्बत के साथ फ़रमाया बाबा अहमद अब आप हमारे हलके में आ ही गए न? हज़रत शैख़ अहमद मग़रिबी रदियल्लाहु अन्हु जब अपने पिरो मुर्शिद की खिदमत में पहुंचे तो आप पर नज़र पड़ते ही बाबा इश्क़ मग़रिबी अलयहिर्रेह्मा ने फ़रमाया बाबा अहमद हम तो आपको क़लन्दरी अता करना चाहते थे लेकिन सय्यद की एक नज़र ने ही तुम्हे क़ुत्बों की लड़ी में पिरो दिया हज़रत शैख़ अहमद मग़रिबी रदियल्लाहु अन्हु इसके बाद अपने मुर्शिद की इजाज़त लेकर हमेशा हज़रत मखदूम पाक की खिदमत में हाज़िर हो कर फैज़ हासिल करते थे और बहोत थोड़े वक़्त में हज़रत मखदूम जहनिया जहांगशत रदियल्लाहु अन्हु की मुबारक ज़ात से कसबे कमाल और रूहानी नेमतों से मालामाल होते रहे यहाँ तक के एक दिन इस्तेखार करने के बाद हज़रत मखदूम पाक ने आपको अकेले में अपने हुजरे में बुला कर ज़िक्र की तलक़ीन की और सिलसिलाए आलिया सोहरवर्दिया की खिलाफत अता की और फ़रमाया के जाओ मुल्के गुजरात तुम्हारे नसीब में हे |

हज़रत गंज अहमद खट्टू रदियल्लाहु अन्हु का समरकंद तशरीफ़ लाना और वह के उलमाए किराम का आपके सामने आजिज़ आ जाना : हज़रत शैख़ अहमद गंज बख्श खट्टू रदियल्लाहु अन्हु को गिरफ्तार कर लिया गया क़ैद खाने में आपसे ज़ाहिर हुई करामात को देख कर उसने आपको आज़ाद कर दिया और आपका मोतक़िद हो गया अब आगे का वाक़िअ मुलाहिज़ा करे तैमूर ने आपको अपने साथ समरकंद तशरीफ़ ले चलने के लिए बहोत आजिज़ी व इन्केसारी की उसकी बहोत ज़्यादा मिन्नतों समाजात से आप उसके साथ समरकंद तशरीफ़ लाए समरकंद के बड़े बड़े उलमाए किराम से आपका बहस व मुबाहिसा होता रहता था बाज़ मसाइल में इख्तेलाफ़ात भी वाक़े होते दिनी मसाइल पर तो कभी कभी तैमूर के रूबरू आपके और उल्माए समरकंद के दरमियान मुनाज़रे भी होते समरकंद के बड़े बड़े उल्माए किराम आपके सामने ला जवाब हो जाते शाही दरबार के आलिमो में से एक मोतबर आलिम ने तमाम हाज़िरीन के सामने आपके मुतअल्लिक़ ये बात कही के समरकंद के उलमाए किराम एक दहेलवी के सामने लाचार मजबूर और ला जवाब हो जाते थे (अहमदाबाद के 3 रूहानी औलिया)

हज़रत सय्यदना क़ुत्बे आलम व हज़रत सय्यदना शाहे आलम रदियल्लाहु अन्हुमा आपकी बारगाह में :- क़ुत्बुल अक़ताब हज़रत सय्यदनाअबू मोहम्मद अब्दुल्लाह बुरहानुद्दीन क़ुत्बे आलम बुखारी रदियल्लाहु अन्हु अपने ज़माने के मशहूर वालिए कामिल हैं आप साल में दो मर्तबा हज़रत सय्यदना शैख़ अहमद खट्टू रदियल्लाहु अन्हु से मुलाक़ात के लिए तशरीफ़ लाते थे और हज़रत शैख़ अहमद खट्टू भी उनको हर साल दो अशरफिया इनायत फरमाते थे एक मर्तबा हज़रत सय्यदना क़ुत्बे आलम रदियल्लाहु अन्हु ने हज़रत सय्यदना शैख़ अहमद खट्टू रदियल्लाहु अन्हु की जा नमाज़ और मिटटी का वो बर्तन जिससे हज़रत वुज़ू फरमाते थे ,लेने का इरादा ज़ाहिर फ़रमाया हज़रत शैख़ अहमद गंज बख्श खट्टू रदियल्लाहु अन्हु ने ये दोनों चीज़े हज़रत क़ुत्बे आलम रदियल्लाहु अन्हु को आता फ़रमाई और उनके दिली इरादे को पूरा फ़रमाया, साथ ही हज़रत शैख़ अहमद खट्टू ने हज़रत क़ुत्बे आलम को सिलसिले आलिया मग़रिबिया की खिलाफत व इजाज़त से भी नवाज़ा महबूबे बारी हज़रत सय्यदना सरकार शाहे आलम रदियल्लाहु अन्हु भी अपने वालिदे बुज़ुर्गवार हज़रत सय्यदना क़ुत्बे आलम रदियल्लाहु अन्हु की तरह हज़रत शैख़ अहमद खट्टू के पास सरखेज तशरीफ़ ले जाते थे आप हज़रत शाहे आलम रदियल्लाहु अन्हु पर बहोत लुत्फ़ो करम फरमाते थे जब मुलाक़ात के लिए हज़रत शाहे आलम तशरीफ़ लाए थे तो उस वक़्त आपकी उम्र शरीफ 17 साल की थी हज़रत शैख़ अहमद खट्टू ने आपको कुछ तबर्रुकात भी आता फरमाए और खास दुआओ से भी नवाज़ा और एक रिवायत के मुताबिक़ आपको भी हज़रत शैख़ अहमद खट्टू रदियल्लाहु अन्हु ने सिलसिले आलिया मग़रिबिया की खिलाफत से नवाज़ा था | (अहमदाबाद के 3 रूहानी औलिया)

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हज़रत शैख़ अहमद खट्टू रदियल्लाहु अन्हु का चिल्ला और आपका दस्तरख्वान :- हज़रत सय्यदना शैख़ अहमद गंज बख्श खट्टू रदियल्लाहु अन्हु अपने वक़्त के मश्हूरो मारूफ बुज़ुर्गो में से हैं आप अपना ज़्यादा से ज़्यादा वक़्त इबादत रियाज़त व मुजाहिदाह में बसर फरमाते थे आपके रोज़ा रखने की शान बहोत निराली थी आपके रोज़ा इफ्तार करने का आलम ये था के (सुखी ) रोटी के टुकड़ो से रोज़ा इफ्तार फ़रमाया करते थे आपने अपने पिरो मुर्शिद हज़रत सय्यदना बाबा इश्क़ मग़रिबी अलैहिर्रहमा के विसाल शरीफ के बाद चालीस (40) दिन का एक चिल्ला किया और उस चालीस (40) दिन के चिल्ले में आपने सिर्फ चालीस (40) खजूरे खाई यानी दिन रात में सिर्फ एक ही खजूर कहते थे
आप मख्लूक़ से हमेशा बेपरवा थे और वक़्त के बादशाह और सुल्तानों की भी परवाह नहीं करते थे आपके दस्तरख्वान पर बहोत से आदमी दोनों वक़्त खाना खाते थे आपका लंगर खाना खासो आम सब के लिए हमेशा खुला रहता था यही वजह थी के आपके लंगरखाने की शोहरत पुरे गुजरात में चारो तरफ फैली हुई थी | (अहमदाबाद के 3 रूहानी औलिया)

हुज़ूर गौसे आज़म की बारगाह में मक़बूलियत :- किताब अख़बारूल औलिया के बाबे अव्वल फसल चहारुम में तहरीर हैं के एक रोज़ शैखुल इस्लाम हज़रत सय्यदना शैख़ अहमद मग़रिबी रदियल्लाहु अन्हु अपने पिरो मुर्शिद हज़रत सय्यदना बाबा मोहम्मद इश्क़ मग़रिबी रदियल्लाहु अन्हु को हाथ में पानी का लोटा लिए हुए वुज़ू करा रहे थे उस वक़्त हज़रत शैख़ अहमद खट्टू रदियल्लाहु अन्हु के दिल में ये ख्याल गुज़रा के हुज़ूर सय्यदना गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु का कैसा बुलंद दर्जा और आली मक़ाम हैं के हर एक सिलसिले के औलिया उनके नियाज़मन्द और फ़ैज़याफ्ता हैं और हर एक वली उनकी गुलामी को अपने लिए बाइसे फख्र तसव्वुर करता हैं उसका क्या सबब हैं हज़रत सय्यदना बाबा इस्हाक़ मग़रिबी रदियल्लाहु अन्हु ने बाज़रिये कश्फ़ उनके ख़यालात को जान लिया और फ़रमाया के ऐ मेरे अज़ीज़ शैख़ अहमद मग़रिबी क्या तुम्हे मालूम नहीं के मेरे गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु के फ़ज़ाइलो कमालात इस क़द्र ज़्यादा हैं के अगर पूरी रूए ज़मीन के तमाम दरख़्त क़लम हो और तमाम दरिया सियाही हो और तमाम ज़ि रूह कातिब हो जाए और अज़ल से ता अबद लिखते रहे तो भी हज़ारवें हिस्से का एक हिस्सा भी नहीं लिख सकेंगे अपने पिरो मुर्शिद की ज़बाने फैज़े तर्जुमान से ये नूरानी कलिमात सुन कर हज़रत शैख़ अहमद मग़रिबी रदियल्लाहु अन्हु के दिल में हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु की मोहब्बत जोश मरने लगी फिर आपने अपने सरे मुबारक से पगड़ी उतार कर ज़मीन पर रख दी और अपने पिरो मुर्शिद हज़रत बाबा इश्क़ मग़रिबी रदियल्लाहु अन्हु से इजाज़त चाही के बगदाद शरीफ हाज़िर हो कर पूरी ज़िन्दगी हुज़ूर गौसे आज़म की चौखट पर गुज़ार दे हुज़ूर गौसे आज़म की बारगाह में मक़बूलियत चुनांचे अपने मुर्शिद की इजाज़त से नंगे सर और नंगे पैर बड़ी आजिज़ी की अदा के साथ बगदाद शरीफ के लिए रवाना हो गए चुनांचे जब सफर करते हुए अजमेर शरीफ के इलाक़े कोहे सल्ली के क़रीब पहुंचे तो वह पानी के एक चश्मे के कनारे वुज़ू फ़रमाया और नमाज़ अदा की नमाज़ अदा करने के बाद ज़िक्रे इलाही में ऐसी महवियत तारी हुई के उसी आलम में नींद आ गई और ख्वाब में हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु की ज़ियारत से मुशर्रफ हुए उस वक़्त हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु के मुबारक हाथो में एक कुलाह और एक नूरानी अमामा था हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने आपको अपने क़रीब बुलाया पहले वो कुलाहे मुबारक जो हक़ीक़तन ताजे शाही था आपके सरे मुबारक पर रखा उसके बाद अममाये नूरानी बंधा और फ़रमाया के तुम बारगाहे रब में मक़बूल हुए और हमने तुम्हे अपनी फ़रज़न्दी में क़ुबूल फ़रमाया जब हज़रत सय्यदना शैख़ अहमद मग़रिबी रदियल्लाहु अन्हु ख्वाब से बेदार हुए तो हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु की आता करदा कुलाह और अम्मा अपने सर पर मौजूद पाया सज्दए शुक् बजा लाए और फिर उस मुबारक मक़ाम से वापस हो कर अपने मुर्शिद की बारगाह में हाज़िर हुए और अपने दर्जे विलायत को हज़ारो दर्जा बुलंद पाया | हज़रत सय्यदना बाबा इश्क़ मग़रिबी रदियल्लाहु अन्हु जो कश्फ़ के ज़रिये सारे हालत मुशाहिदा फारमा चुके थे हज़रत शैख़ अहमद के इस्तिक़बाल के लिए तशरीफ़ लाए और बहोत मुबारक बाद दी और फ़रमाया के पहले तुम तो मेरे वास्ते से हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु के फैज़ से मुस्तफिज़ हुए थे अब हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने बिला वास्ता बराहे रास्त अपने फैज़ से नवाज़ दिया |

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हज़रत बाबा इस्हाक़ ने आपको शैखुल हजर व शजर का ख़िताब अता फ़रमाया :- हज़रत सय्यदना शैख़ अहमद मग़रिबी रदियल्लाहु अन्हु का रोज़ाना का मामूल था के अपने पिरो मुर्शिद के बावर्ची खाने के लिए जंगल से लकडिया लाया करते थे उस रोज़ भी आपने अपने पिरो मुर्शिद हजरत बाबा इस्हाक़ मग़रिबी रदियल्लाहु अन्हु से जंगल जाने और लकडिया लाने की इजाज़त चाही आपके पिरो मुर्शिद ने फ़रमाया के अब आप हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु के मंज़ूरे नज़र हो चुके हो अब में तुम्हे इस काम की इजाज़त नहीं दे सकता अगरचे हज़रत बाबा इस्हाक़ मग़रिबी रदियल्लाहु अन्हु ने आपको बहोत मना किया लेकिन आप जंगल की जानिब रवाना हो गए और जंगल में पहुंचकर लकडिया जमा की और लकड़ियों का घट्ठा अपने सर पर रखा तो वो लकड़ियों का घट्ठा आपके सरे मुबारक से एक बालिश्त ऊँचा हो कर आ रहा था जब अपने पिरो मुर्शिद की ख़ानक़ाह शरीफ़ में पहुंचे तो आपके पिरो मुर्शिद ने ये हालत देख कर इरशाद फ़रमाया के ऐ शैख़ अहमद जिस सर पर हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु का अता करदा ताज हो उस सर पर लकड़ी का घट्ठा नहीं आ सकता आप आज के दिन से इस खिदमत से आज़ाद हे और हमने आपको शैखुल हजर व शजर का ख़िताब अता फ़रमाया |

आपका उर्स :- उर्स मुबारक मालिकुल मशाइख सिराजुल औलिया ताजुल असफिया हजरत सय्यदना शैख़ अहमद गंज बख्श खट्टू मग़रिबी रदियल्लाहु अन्हु उर्स 12, शव्वालुल मुकर्रम मज़ार : अहमदाबाद शरीफ़ गुजरात में है |

    (तजल्लियते  गौसे  आज़म  जिल्द -1)   (अहमदाबाद  के  3 रूहानी  औलिया)

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