आप का शजरए नसब :- सूफ़ियाए किराम ने आप को दिनों दुनिया का सुल्तान, आरिफ़े रब्बानी, सिराजुस्सालीकीन, और बुरहानुल वासिलीन, सुल्तानुत्ता रीकीन, मुक़र्रब हज़रत रब्बुल आलमीन साहिबे सल्तनाते उक़्बा, अफ़रादे कामिल “हज़रत ख्वाजा इबराहीम बिन अधहम रहमतुल्लाह अलैह” तबक़ए ऊला में से थे,
आप का शजरए नसब इस तरह है: इब्राहीम बिन अधहम, बिन सुलेमान, बिन मंसूर बिन नासिर, बिन अब्दुल्लाह, बिन अमीरुल मोमिनीन हज़रत उमर बिन खत्ताब रदियल्लाहु अन्हु, आप का सिलसिलाए नसब हज़रत उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु से जा कर मिलता है,
आप की कुन्नियत अबू इस्हाक़ है, आप नसबन अधहम बिन मंसूर बल्खी बादशाहे बल्ख (अफगानिस्तान का सूबा है) की औलाद से थे,

आप की फ़क़रो इरादत :- आप चार चार पांच पांच दिन जंगल के फल साग और पत्तों से इफ्तार करते थे, कभी कभी बगैर नमक की तरकारी यानि सब्ज़ी पका कर खाते थे, आप फरमाते थे जो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से दोस्ती करना चाहता है उस को ज़बान बल्के सभी हवासे खम्सा की लज़्ज़तों और ख़ुशी व शादमानी को छोड़ देना और गमख्वारी को इख़्तियार करना होगा, जिस दिन आप के पास कुछ खाने को नहीं होता तो आप बहुत खुश होते और शुकराने की नमाज़ अदा फरमाते, और बराबर पेबंद लगा हुआ कपड़ा पहिनते और नग्गे पैर रहते और किसी शख्स से रुपये पैसा नहीं लेते,

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आप की शानो अज़मत व मर्तबा :- हज़रत सुल्तान इब्राहीम बिन अधहम रहमतुल्लाह अलैह के हज़रत इमामे आज़म अबू हनीफा रहमतुल्लाह अलैह से बहुत गहरे मरासिम (मेल जोल तअल्लुक़ात) थे, हज़रत इमामे आज़म अबू हनीफा रहमतुल्लाह अलैह आप को बराबर “सय्यदना व सनदना” इब्राहीम अधहम कह कर पुकारते थे, इमामे आज़म रहमतुल्लाह अलैह के साथियों ने पूछा के इब्राहीम बिन अधहम सय्यद किस तरह हैं? इमामे आज़म रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के हम लोग तो दुसरे कामो में भी लगे रहते हैं, और वो हमेशा अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की खिदमत ही में लगे रहते हैं, इसी लिए वो “सय्यद और सनद” हैं,
और आप के बारे में हज़रत सय्यदना जुनैद बगदादी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के “सारे उलूम की यानि जितने भी इल्म है उनकी कुंजी यानि चाबी इब्राहीम बिन अधहम हैं,

हज़रत अधहम कलंदर रहमतुल्लाह अलैह का इश्क़ :- मोतबर तारीख की किताबों में लिखा है के आप के वालिद माजिद “अधहम” नाम के एक क़लन्दर दुरवेश वली सिफ़त बुज़रुग थे, जो घूमते फिरते अफगानिस्तान के शहर बल्ख पहुंच गए, और शहर के बाहर अपनी झोपड़ी बना कर रहने लगे, एक रोज़ किसी ज़रूरत से शहर को गए, इत्तिफ़ाक़ से बल्ख के बादशाह की बेटी बाग़ की सैर करके वापस आ रही थी, रास्ते में काफी इंतिज़ाम था, अधहम कलंदर रहमतुल्लाह अलैह भी एक तरफ खड़े हो गए, बादशाह की बेटी की सवारी आप के पास से गुज़री तेज़ हवा की वजह से अचानक सवारी का पर्दा खुल गया, और अधहम कलंदर रहमतुल्लाह अलैह की नज़र बादशाह की बेटी पर पड़ गई, और आप दिलो जान से उस पर आशिक हो गए, आप सवारी के पीछे पीछे बादशाह के महिल तक पहुंच गए, और काफी देर तक बाहर खड़े रहे, जब सवारी महल के अंदर चली गई आप ने पूछा ये किस का महल है, और इस सवारी में कौन सवार थी लोगों ने कहा ये शाही महल है और इस सवारी में बादशाह की बेटी सवार थी, जो के बाग़ की सैर को तशरीफ़ ले गई थीं, हज़रत अधहम वहां से सीधे बादशाह के दरबार में पहुंचे, उस के सामने सलाम कर के खड़े हो गए, बादशाह ने अपने वज़ीर से कहा के इस कलंदर से पूछो क्या काम है?
वज़ीर आप के पास आया और उसने आने की वजह पूछी, हज़रत अधहम ज़रा भी नहीं डरे बेखौफ सारा माजिरा बयान कर के कहा के में बादशाह की लड़की से शादी करना चाहता हूँ, बादशाह से कहो के वो अपनी बेटी को मेरे निकाह में दे दे हम उससे शादी करना चाहते हैं, वज़ीर वापस गया, और उसने बादशाह से कह दिया के क़लन्दर आप की बेटी से शादी करना चाहता है, बादशाह ने हज़रत अधहम को बुलाया और आप का हसब नसब मालूम किया, तो आप ने अपना हसब नसब बताया, जब बादशाह को मालूम हुआ के आप का हसब नसब आला है और हज़रत उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु से जा मिलता है, तो बादशाह ने कहा मुझे शादी करने में कोई मोज़ाइक़ा नहीं मालूम होता है आप कुछ दिनों रुक जाओ में मशवरा करके जवाब देता हूँ, हज़रत अधहम इस जवाब से ख़ुश होकर वापस अपनी झोपड़ी में तशरीफ़ लाए, तीन चार रोज़ तक इन्तिज़ार देख कर आप बादशाहे बल्ख के दरबार में हाज़िर हुए और सलाम करके बैठ गए,
वज़ीर की मुखालिफत: बादशाहे बल्ख अपनी बेटी की शादी हज़रत अधहम से करने के लिए राज़ी था लेकिन वज़ीर किसी तरह भी तय्यार नहीं था, और उसने एक मंसूबा बनाया, फिर वज़ीर ने हज़रत अधहम रहमतुल्लाह अलैह से का के देखो ये हमारे पास एक मोती हीरा है इस जैसा तुम एक और ले आओ फिर हम उसको देखेंगे मिलाएंगे फिर हम आप की शादी कर देंगें, हज़रत अधहम ने कहा के बस आप को हीरा चाहिए, फिर आप वहां से चले और समंदर के किनारे पहुंचे और आप ने एक डोल लिया फिर समंदर से पानी भरते और निकालकर बाहर फेंकते समंदर से पानी भरते और निकालकर बाहर फेंकते पानी निकालते निकलते आप को शाम हो गई, यहाँ तक के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के हुक्म से हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम तशरीफ़ ले आये और कहने लगे ये क्या कर है हो? आपने कहा बादशाह ने मोती मंगवाया है पानी खली हो तो नीचे से मोती लूँ, हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम मुस्कुराने लगे और कहा ये इस तरह खली नहीं होगा, आप ने कहा रुकू हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम ने एक दम से तवज्जुह डाली पानी में एक मौज आयी और बहुत सारे सीप के साथ मोती बाहर फेंक दिए, हज़रत अधहम रहमतुल्लाह अलैह उस में से ढूंढ़ने लगे और आप ने उस में से 12, निकाले बाक़ी सब आप ने समंदर में फेंक दिए, और इन 12, मोतियों को लेकर आप बादशाहे बल्ख के दरबार में हाज़िर हुए, और आप ने बादशाह के सामने रख दिए और आप ने कहा के एक मोती माँगा था मेरे अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इतने सारे मोती मुझे दिए हैं, फिलहाल में 12, मोती ले आया हूँ आप अपना वादा पूरा करें,
बादशाह इन मोतियों को देख कर हैरान रह गया, और मोतियों को लेकर वज़ीर से मशवरा करने लगा अब क्या करना चाहिए, वज़ीर ने फिर वही रट लगाई बड़ी ज़िल्लत होगी बादशाह ने कहा ये तो ठीक है लेकिन मुझे अपनी जान का खतरा मालूम होता है ये दुरवेश बहुत पंहुचा हुआ बा अज़मत मालूम होता है, और अगर इस ने मेरे हक़ में दुआ कर दी तो शर्मिन्दिगी के अलावा कुछ हासिल नहीं होगा, वज़ीर ने कहा बादशाह सलामत आप दरबार से तशरीफ़ लेजाएं में इस फ़क़ीर को समझ लेता हूँ,
वज़ीर ने दुर्वेश कलंदर (हज़रत अधहम )को बुलाकर कहा ए नामुराद तू किस दीवानगी में मुब्तला है, तू रानी बादशाहे बल्ख की बेटी तेरे जैसे मुफ़लिस फ़क़ीर के निकाह में दे दी जाए ये खुदा को भी पसंद नहीं होगा, तेरी ये आरज़ू कभी पूरी नहीं होगी तू अपनी जान बचाकर यहाँ से भागजा, दुर्वेश कलंदर ने जवाब दिया के ए ज़ालिम खुदा से डर में तो अपनी जान से हाथ धोए ही बैठा हूँ लेकिन तू अपनी खैर मना के खुदा को हाज़िरो नाज़िर और क़ादिरे मुतलक़ जानते हुए, फिर भी वादा खिलाफी करने लगा और उस के क़हर से नहीं डरता, वज़ीर को दुर्वेश कलंदर की बात पर बहुत गुस्सा आया उसने चौकीदारों को हुक्म दिया मार कर धक्के देकर बाहर निकाल दो, वज़ीर के हुक्म पर आप को बाहर निकल दिया,

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आप के मज़ार शरीफ के बारे में इख्तिलाफ है के बाज़ हज़रात कहते हैं के बग़दाद शरीफ में है और बाज़ का क़ौल है के मुल्के शाम सीरिया में है लेकिन ज़्यादा सही ये है के हज़रत लूत अलैहिस्सलाम के मज़ार शरीफ के पास है,

शहज़ादी की तदफ़ीन :- हज़रत अधहम हैरानो परेशान और रोते हुए घर लोट आये और रंजीदा होकर बैठ गए, इस वाक़िए को थोड़ी देर गुज़री थी के बादशाहे बल्ख की बेटी के पेट में शदीद दर्द होने लगा, लाख इलाजो तदबीर किया गया लेकिन कोई फाइदा नहीं हुआ, और देखते ही देखते शहज़ादी मर गई, शाही महिल में कोहराम मच गया और क़यामत बरपा हो गई, खुद बादशाह की हालत बहुत अफ़सोस नाक थी, और बादशाह ने वज़ीर को खूब बुरा भला कहा, और वज़ीर शर्मिंदाह होकर खड़ा था, शहज़ादी का तज्हीज़ो तकफीन का इंतिज़ाम किया गया, चरों तरफ खेमे नसब किए गए, और क़िन्दीले रोशन थीं, बेशुमार हाफ़िज़े क़ुरआन क़ुरआन ख्वानी के लिए और काफी पहरेदार देख भाल पस्बानी के लिए मुक़र्रर थे, इधर दुर्वेश कलंदर के आग लगी हुई थी, और इन को किसी तरह भी क़रार नहीं मिल रहा था, आधी रात गुज़र जाने के बाद आप मक़बरा पहुंचे और पैहरेदारों से आँख बचाते हुए क़ब्र तक पहुंच गए, और क़ब्र खोद कर लाश को बाहर निकाल लिया और क़ब्र को ठीक कर के अपने घर लोट आये, अपनी झोपड़ी में पहुंच कर जसद यानि जिस्म को दिवार से लगाकर बिठा दिया, और उस के सामने बैठ गए,

शहज़ादी ठीक हो गई :- थोड़ी देर के बाद एक बा शऊर हकीम का उधर से गुज़र हुआ, हकीम किसी शहर से आ रहा था और क़िले का दरवाज़ा बंद हो जाने की वजह से इधर उधर भटक रहा था, और रात गुज़ारने के लिए किसी जगह की तलाश में था, अचानक हकीम की नज़र एक झोपड़ी पर पड़ी जिससे रौशनी आ रही थी, हकीम को ख्याल आया के ये यक़ीनी किसी दुर्वेश का आस्ताना होगा, हकीम झोपड़ी के क़रीब आया, जब झोपड़ी से बाहर पैरों की आवाज़ सुनकर हज़रत अधहम को ख्याल हुआ के कहीं बादशाह के जासूस तो हक़ीकते हाल का पता लेने आये हों, आप अपनी झपड़ी के तेह खाने में जाकर छुप गए, और शहज़ादी को इसी हाल में छोड़ दिया, हकीम जब झोपड़ी में दाखिल हुआ तो वहां कोई मौजूद नहीं था, जब हकीम ने इधर उधर देखा तो एक हसीनो जमील लड़की का जिस्म दिवार से लगा हुआ पाया, हकीम हैरान होकर उसे कुछ देर तक देखता रहा, फिर उस शहज़ादी का तिब्बी मुआइना क्या खूब गोरो फ़िक्र करने के बाद मालूम हुआ के इस शहज़ादी को सक्ते का मर्ज़ हो चुका है, हकीम ने फ़ौरन एक नश्तर लगाया और उसका थोड़ा खून निकाल लिया, जैसे ही खून निकला शहज़ादी ने चश्मे ज़दन फ़ौरन ही आँखें खोल दीं और इस मोज़ी मर्ज़ से इसको निजात मिल गई,
होश में आने के बाद शहज़ादी ने अपने सामने एक अजनबी शख्स को देखा तो मतू हश (घबराहट) हुई, और उसने हकीम से पूछा बाबा सच बताओ में यहाँ पर किस तरह आयी हूँ मुझे कौन लाया, हकीम ने जवाब दिया बेटी मुझे कुछ मालूम नहीं है में तो दूर दराज़ से आया हूँ शहर में दाखिल होना चाहता था, के दरवाज़ा बंद हो गया था, रात भी काफी गुज़र चुकी थी, मुझे इस झोपड़ी की रौशनी काफी दूर से दिखाई दी, में इधर चला आया तो मेने देखा के मकान में कोई भी मौजूद नहीं था, में मकान मालिक को देख रहा था, तो तुम्हारे बे हिस व हरकत जिस्म पर नज़र पढ़ गई मेने तिब्बी मुआइना किया खूब गोरो फ़िक्र करने के तुम्हारे मरज़ का पता चल गया मेने फ़ौरन इलाज किया, और अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने तुम्हे शिफा बख्शी और तुम ठीक हो गईं, हकीम ने कहा मेरी दास्तान तो यही थी, अब तुम अपना हाल बताओ तुम कौन हो और कहाँ से आई हो,

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बादशाहे बल्ख की बेटी से हज़रत अधहम रहमतुल्लाह अलैह का निकाह :- अभी इस तरह की गुफ़्तो शोनीद (बात चीत) हो ही रही थी के हज़रत अधहम रहमतुल्लाह अलैह ने एक तरफ से सर निकाल कर देखा के एक सफ़ेद दाढ़ी पाकीज़ा सूरतो सीरत बुज़रुग बैठे हुए इस शेह्ज़ादी से बाते कर रहे हैं, आप फैरन बाहर निकल आये और हकीम को सलाम कर के उनके सामने बैठ गए, हकीम ने समझ लिया के यही साहिबे खाना मकान मालिक हैं, हकीम ने आप से हकीकत मालूम की तो दुर्वेश कलंदर ने से शुरू से आखिर तक सारा माजिरा पूरा क़िस्सा सुना दिया, हकीम थोड़ी देर तक बैठे बैठे गोरो फ़िक्र करते रहे फिर तसल्ली व तशफ्फी दी, और दोनों की रज़ा मंदी से हकीम ने दुर्वेश कलंदर का बादशाहे बल्ख की बेटी से आप का निकाह कर दिया, जब सुबह हुई तो इन दोनों से रुखसत होकर शहर चले गए,

हज़रत इब्राहीम बिन अधहम रहमतुल्लाह अलैह की पैदाइश :- ये दोनों मियां बीवी की तरह इस झोपड़ी में रहने लगे, कुछ दिनों के बाद अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने इनको साहिबे सीरतो सूरत बेटे से नवाज़ा लड़का माँ की शबीह बिलकुल माँ की तरह और काफी ज़हीन व फित्तीन और खुश अतवार, इन दोनों ने इस लड़के का नाम “इब्राहीम” रखा, और दिलो जान से अपने बेटे की परवरिश करने लगे, जब बेटा कुछ बड़ा हुआ तो इस को मकतब में दाखिल कर दिया ताके इल्मे दीन हासिल करे इन्ही दुर्वेश कलंदर के बेटे हैं, “हज़रत इब्राहीम बिन अधहम रहमतुल्लाह अलैह”

बादशाहे बल्ख हज़रत इब्राहीम बिन अधहम रहमतुल्लाह अलैह को मकतब से उठा कर ले जाता है :- बादशाहे बल्ख का तरीक़ा था, के जब भी वो किसी मकतब (जिस जगह बच्चे क़ुरआन पढ़ते सीखते हैं) की तरफ से गुज़रता तो थोड़ी देर तक मकतब का मुआइना करता, और मुअल्लिमीन यानि उस्तादों को इनामों इकराम देता और बच्चों को अपने सामने छुट्टी दिलवाता, चुनाचे इसने ऐसा ही किया, और बच्चों को छुट्टी दिलवाने के दौरान जब “हज़रत इब्राहीम बिन अधहम रहमतुल्लाह अलैह” की बारी आई, और आप मकतब से बस्ता लेकर निकलने लगे, बादशाहे बल्ख आप का हुसनो जमाल देखकर दिल से आप पर फ़रेफ्ता (आशिक़ चाहत रखने वाला) हो गया, और आप की शक्ल में उस को अपनी बेटी का अक्स (तस्वीर परछाईं साया) नज़र आया, बच्चे को बादशाह ने गोद में उठा लिया और आप की पेशानी चूमली, और आप को घोड़े पर बिठा कर महिल की तरफ ले जाने लगा, और बादशाह ने उस्दात से पूछा के ये किसका बेटा है, तो मुअल्लिम ने जवाब दिया के ये एक साहिबे अज़मत कलंदर का बेटा है, जो खुद रोज़ाना सुबह को मकतब में लेकर आते हैं, और छुट्टी के वक़्त ले जाते हैं,
बादशाह ने कहा में इस को अपने साथ ले जाता हूँ, जब इस बच्चे के वालिद आएं तो उन्हें इत्मीनान दिलाना और मेरे पास भेज देना, मुअल्लिम ने कहा जहाँ पनाह ठीक है बादशाहे बल्ख इस बच्चे को लेकर अपने महिल में पंहुचा, और अपनी मलका के रूबरू पेश कर के कहा हम लोगों की मरहूमा लड़की से इस बच्चे की सूरत कितनी मिलती जुलती है, मलका ने गोद में लेकर प्यार किया और कलेजे से लगा लिया, और बच्चे के साथ बहुत मुहब्बत और शफ़क़त करने लगी, इधर जब दुर्वेश कलंदर छुट्टी के वक़्त मकतब आये तो मुअल्लिम ने दूर ही से उनको देखकर फ़ौरन सारा क़िस्सा सुना दिया, हज़रत अधहम रहमतुल्लाह अलैह ये क़िस्सा सुनकर मुज़्तरिबो बेचैन नहीं हुए, बल्के सीधे बादशाहे बल्ख के महिल में पहुंचे, बादशाहे बल्ख आप के इन्तिज़ार में ही था, बादशाहे ने अगरचे आप को बहुत दिनों के बाद देखा था लेकिन आप को फ़ौरन पहचान लिया, और बादशाहे बल्ख ने आप को बहुत इज़्ज़त व शफ़क़त से अपने पास बिठाया, हज़रत अधहम रहमतुल्लाह अलैह ने कहा मेरा यहाँ आने का मक़सद सिर्फ अपने बेटे को ले जाना है क्यूंकि माँ अपने बेटे से बे इंतहा मुहब्बत करती है, अगर वो फ़ौरन इस के पास नहीं पंहुचा, तो वो जान दे देगी, बादशाहे बल्ख ने कहा के इसकी माँ का क्या नाम है वो किस खानदान से तअल्लुक़ रखती है, खुदा के वास्ते ठीक ठीक बताओ, हज़रत अदहम ने शुरू से आखिर तक पूरा क़िस्सा बयान कर दिया,

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बादशाहे बल्ख ने हज़रत इब्राहीम बिन अधहम रहमतुल्लाह अलैह को अपनी हुकूमत सौंप दी :- बादशाहे ने जब अपनी बेटी की ज़िन्दगी का मुज़दह यानि खुश खबरी सुनी तो फ़ौरन सज्दए शुक्र बजा लाया और ख़ुशी से हरम सरा में आया और ये खुश ख़बरी अपनी मलका को भी सुनाई, और उसी वक़्त खुद सवार होकर, डोली लेकर रवाना हुआ, और अपने साथ हज़रत अदहम, इब्राहीम बिन अदहम और अपनी मलका को भी साथ लिया और शादियाने बजाते हुए चला, शहज़ादी ने झोपड़ी से जब अपने माँ बाप को आते देखा तो आगे बढ़ कर अदब से सलाम किया, और माँ बाप के क़दमों में गिर पड़ी, बादशाह और मलका ने अपनी बेटी को उठाकर सीने से लगा लिया, सब मिलकर देर तक ख़ुशी के आँसूं बहाते रहे, और फिर शहज़ादी को लेकर ख़ुशी ख़ुशी अपने महिल में पहुंच गए, बादशाह ने अपनी बेटी और दामाद के लिए बड़ी जागीर और एक इलाका अता किया ताके ये लोग शाहाना ज़िन्दगी आराम से गुज़ारें लेकिन इन दोनों मियां बीवी ने इसे क़बूल नहीं किया, और शाहाना ज़िन्दगी बादशाहत पर फ़क़्र फ़क़ीराना ज़िन्दगी को क़बूल किया, फिर बादशाहे बल्ख ने आप को अपना “वली अहिद” (जानशीन हाकिमे वक़्त) बना दिया, क्युंके बादशाहे बल्ख की बीवी से कोई औलादे नरैना (लड़का बेटा) पैदा नहीं हुआ था, कुछ दिनों के बाद बादशाहे बल्ख का विसाल हो गया, और “सुल्ताने दो जहाँ इब्राहीम बिन अदहम” अपने नाना के तख़्त पर बैठे, और बहुत बेदारी और अदलो इंसाफ के साथ हुकूमत चलाते रहे, लेकिन आप का दिल हुकूमत तख्तो ताज की तरफ नहीं लगता था, आप की तबीअत में फ़क़्र फ़क़ीराना ज़िन्दगी और दुरवेशी की तरफ ज़्यादा माइल थी, और आप फ़क़ीरों दुरवेशों की बहुत इज़्ज़त करते थे, और उनकी जूती अपने हाथों से उनके सामने रखते थे,

हज़रत इब्राहीम बिन अधहम रहमतुल्लाह अलैह की गोशा नाशिनी :- हज़रत इब्राहीम बिन अधहम रहमतुल्लाह अलैह एक रात तख़्त पर सो रहे थे, के अचानक मकान की छत पर किसी के चलने की आवाज़ आई, आप जाग गए और पूछा छत पर कौन चल रहा है? जवाब मिला के ऊँट खो गया है ऊँट तलाश कर रहा हूँ, आप ने कहा ए अहमक़ छत पर ऊँट किस तरह चला आएगा उधर से जवाब मिला के ए गाफिल इंसान खुदा क़ादिरे मुतलक़ है वो अगर चाहे तो ऊँट को मकान की छत पर किसी हिकमते अमली से पंहुचा सकता है, लेकिन तू जो अतलसो कम ख्वाब के कपड़े पहिन कर सो रहा है और इस तरह खुदा को तलाश करता फिरता है ये कैसी नादानी है ये कह कर वो शख्स गायब हो गया, लेकिन सुल्तान के दिल में ये बात जाकर चुभ गई असर कर गई, आप ने इसी वक़्त सभी शाहाना लज़्ज़तों से मुँह मोड़ लिया और सहरा (जंगल) की तरफ निकल गए,
रास्ते में एक चरवाहा मिला उस को अपना क़ीमती लिबास दे दिया, और उस का टाट का लिबास लेकर खुद पहिन लिया, चलते चलाते चलते चलाते आप मरू पहुंचे (मरू अफगानिस्तान का शहर है) और वहां से निशापुर (ईरान का पुराना सूबा है) पहुंच कर आप एक गार में बैठ गए, और अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की इबादत में मशगूल हो गए, और आप नो 9, साल तक इबादत करते रहे, किसी को मालूम नहीं था के इस गार के अंदर क्या हो रहा है, हर जुमे रात के दिन आप इस गार से बाहर निकल कर लकड़ियों का गठ्ठा जमा करते, और शहर में जाकर उनको बेचा करते थे, और जो कुछ भी कीमत हासिल होती उससे आधी कीमत को फ़क़ीरों को बाटँते थे और आधी से अपना खर्च पूरा करते थे, और जुमे की नमाज़ पढ़ने के बाद फिर गार में वापस चले जाते, और आप पूरा हफ्ता इसी तरह गुज़ारते थे, जब आप से कुछ करामात ज़ाहिर होने लगीं, जिससे लोगों पर आप की बुज़ुरगी ज़ाहिर हुई, ये देख कर आप गार से निकल कर मक्का मुअज़्ज़मा ज़ादाहल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा की तरफ चल पढ़े, आप बियाबान जंगलों में से गुज़र रहे थे, के एक बुज़रुग ने आकर आप को “इसमें आज़म” की तालीम दी, आप हर क़दम पर दो रकअत निफ़्ल पढ़ते हुए जा रहे थे, यहाँ तक के आप 14, साल की मुद्दत में मक्का मुअज़्ज़मा ज़ादाहल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा में पहुंच गए, और मक्का शरीफ के सभी औलिया अल्लाह ने आप का इस्तकबाल क्या सब ने आप की बहुत ताज़ीम की,
“शरह आदाबुल मुरीदीन” में लिखा है के आप ने मुद्दतों तक इराक के शहर बसरा की जामा मस्जिद में एतिकाफ करते रहे और तीन रात और दिन के बाद एक बार इफ्तार करते थे,

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आप के मज़ार शरीफ के बारे में इख्तिलाफ है के बाज़ हज़रात कहते हैं के बग़दाद शरीफ में है और बाज़ का क़ौल है के मुल्के शाम सीरिया में है लेकिन ज़्यादा सही ये है के हज़रत लूत अलैहिस्सलाम के मज़ार शरीफ के पास है,

आप के पिरो मुर्शिद का क्या नाम है? :- जब हज़रत इब्राहीम बिन अधहम रहमतुल्लाह अलैह मक्का मुअज़्ज़मा ज़ादाहल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा में पहुंच तो आप ने वहां हज़रत ख्वाजा फ़ुजैल बिन अयाज़ रहमतुल्लाह अलैह की तरबियत हासिल की, और आप पचास साल तक हरम शरीफ में मुजावर रहे, फिर आप को खिरकाए खिलाफत और मुरीदी में दाखिल फ़रमाया,”हज़रत ख्वाजा फ़ुजैल बिन अयाज़ रहमतुल्लाह अलैह” यही आप के पिरो मुर्शिद हैं,

आप क़ुत्बुल अक़ताब के दरजे पर :- जवानी ही में आप बराबर तौबा अस्तगफार पढ़ते रहते थे, तक्मा (बटन) गिरिबन से आवाज़ आती और कभी तरकश और अंगूठी से के ए इब्राहीम तुम को अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने दुनियादारी के लिए पैदा नहीं किया, बल्के तुम्हारी पैदाइश का मक़सद कुछ और है, ये बातें आप के दिल में लगी रहीं आखिर कार वो वक़्त आया के आप ” क़ुत्बुल अक़ताब के दरजे पर पहुंच गए”

हज़रत इब्राहीम बिन अधहम रहमतुल्लाह अलैह की हज़रत खिज़र अलैहिस्सलाम से मुलकाक :- एक बार आप सहरा जंगल में जा रहे थे, तभी एक आलमे ग़ैब से एक बुज़रुग ज़ाहिर हुए, और उन्होंने आप को “इसमें आज़म” सिखाया, “इसमें आज़म” का सीखना था के अरशे आज़म से तहतुस सरा तक सब रौशन हो गया, इस के बाद हज़रत खिज़र अलैहिस्सलाम आप के पास तशरीफ़ लाए, और आप ने फ़रमाया के ए इब्राहीम जिन्होंने आप को “इसमें आज़म” सिखाया, था वो मेरे भाई हज़रत इल्यास अलैहिस्सलाम थे, और में भी इस की इजाज़त देता हूँ के इसको आप हमेशा पढ़ते रहना जल्द अपने मक़सदे हकीकी में कामयाब हो जाओगे,

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दुर्वेश फ़क़ीर का मक़ामो मर्तबा :- एक बार हज़रत इब्राहीम बिन अदहम रहमतुल्लाह अलैह लकड़ी का गठ्ठा सर पे रखे मक्का मुअज़्ज़मा ज़ादाहल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा में खड़े थे, बल्ख (अफगानिस्तान का सूबा है) के एक आदमी का आप के पास से गुज़र हुआ, उस ने हज़रत सुल्तान इब्राहीम बिन अधहम रहमतुल्लाह अलैह को पहचान लिया, उस ने सलाम कर के अदब से अर्ज़ किया, ए सुल्तान बल्ख की सल्तनत बादशाहत छोड़ने से आप को क्या फ़ायदा हुआ बेकार की तकलीफ और परेशानी आप ने अपने सर लेली, हज़रत सुल्तान इब्राहीम बिन अधहम रहमतुल्लाह अलैह ने लकड़ी के गठ्ठे पर अपना हाथ मारा तो वो सब सोना बन गया, फिर आप ने वो बोझ गठठरी उतार कर सर से दूर फेंक दी और फ़रमाया के बल्ख के नाम की नहूसत ने आज की मेरी हलाल रोज़ी ज़ाए बर्बाद करदी और सल्तनत को छोड़ कर मामूली मर्तबा जो मेने पाया है, वो तुमने अभी खुद देख ही लिया,

आप की ख्वाइश पूरी हो गई :- एक रात हज़रत इब्राहीम बिन अधहम रहमतुल्लाह अलैह पहाड़ की गार में थे, और आप को ग़ुस्ल की हाजत हो गई, गार के बराबर में एक पानी का चश्मा बह रहा था, जिस्म में बर्फ जम गई,थी आप ने बर्फ तोड़ कर ग़ुस्ल फ़रमाया, और नमाज़ में मशगूल हो गए, आप को सरदी इतनी ज़्यादा लगने लगी के के जान जाने का खतरा पैदा हो गया, इसी वक़्त आप के दिल में ये बात आई के अगर इस वक़्त आग होती या पोस्तीन मौजूद होती, तो बदन को गर्माहट मिलती, इसी बीच आप को नींद आयी और आप सो गए, इसी वक़्त अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के हुक्म से एक अज़्दहा (अजगर सांप बहुत बड़ा सांप) आया, और आप के जिस्म से लिपट कर आप को गर्माहट पहुंचाई और आप सुबह तक आराम से सोते रहे, सुबह को आँख खुली तो देखा के अज़्दहा जिस्म से लिपटा हुआ है, आप ने फ़ौरन अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बारगाह में अर्ज़ किया के मुझे ठण्ड लग रही थी, अपनी महिरबानी से तूने गरमा दिया, और अब इस बाला से भी छुटकारा दिला दे, वो अज़्दहा फ़ौरन जिस्म मुबारक से अलग हो गया, और अपना सर आप की खिदमत में मलने लगा और गायब हो गया,

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गार में खुशबू की महिक :- एक बार हज़रत अबू सईद अबुल खैर रहमतुल्लाह अलैह हज़रत सुल्तान इब्राहीम बिन अदहम रहमतुल्लाह अलैह की ज़्यारत के लिए गार में तशरीफ़ लाए, हज़रत इब्राहीम बिन अधहम रहमतुल्लाह अलैह उस वक़्त आप अवाम की भीड़ की वजह से मक्का मुअज़्ज़मा ज़ादाहल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा तशरीफ़ लेजा चुके थे, गार खली था, लेकिन पूरा गार खुशबू से महिक रहा था, हज़रत शैख़ अबू सईद अबुल खैर ने फ़रमाया, सुबहानल्लाह क्या करामत है, अगर इस पूरे गार को मुशिक से भर दिया जाए फिर भी इससे ऐसी खुशु नहीं पैदा होगी जैसी इस वक़्त हो रही है, ये सिर्फ इस मर्दे खुदा के ठहरने की वजह से है,

हज़रत इब्राहीम बिन अदहम रहमतुल्लाह अलैह को इबादत में लुत्फ़ और मज़ा क्यों नहीं मिल रहा था :- रात भर इबादत करने के शोक में एक बार हज़रत इब्राहीम बिन अदहम रहमतुल्लाह अलैह मस्जिदे बैतुल मुक़द्दस तशरीफ़ ले गए, और मस्जिदे बैतुल मुक़द्दस पहुंच कर अपने आप को बोरी साफ के अंदर छुपा लिया, क्यूंकि रात को मस्जिदे बैतुल मुक़द्दस में किसी को ठहरने की इजाज़त नहीं थी, मस्जिद को खली कर के खादिम हज़रात बाहर चले गए और दरवाज़े में ताला लगा दिया, जब एक पहर रात गुज़र गई, तो खुदबखुद दरवाज़ा खुला और एक नूरानी चेहरे वाले बुज़रुग तशरीफ़ लाए, उन के साथ चालीस हज़रात और भी थे, इन सभी हज़रात ने उन बुज़रुग के पीछे दो रकअत नमाज़ पढ़ी, फिर वो बुज़रुग महराब की तरफ पीठ करके बैठ गए, और बाक़ी हज़रात उन के सामने बैठे बातें करने लगे, उन में से एक ने कहा की आज की रात यहाँ कोई बाहर का आदमी मौजूद है, उन बुज़रुग ने मुस्कुराकर फ़रमाया के आज हमारे बीच “इब्राहीम बिन अदहम” है चालीस दिनों रात से इस को इबादत में मज़ा नहीं मिल रहा है, ये हकीकत थी, ये सुनते ही “हज़रत इब्राहीम बिन अदहम” बोरी सफ से बाहर निकल पड़े, और उन बुज़रुग को सलाम करके कहा हज़रत अभी जो कुछ आप ने कहा ये सच फ़रमाया है, अब आप मुझे ये भी बता दीजिये इबादत में मज़ा क्यों नहीं मिल रहा है, उन बुज़रुग ने फ़रमाया के तुम फलां दिन बसरा में खजूरें खरीद रहे थे, खजूर के मालिक से तौलने में एक खजूर गिर गई थी, तुमने ये समझा के ये मेरी ही खजूर गिरी है और उस को उठा लिया, ये सुनते ही हज़रत इब्राहीम बिन अदहम फ़ौरन बसरा आये, और खजूर के मालिक से माफ़ी चाही माफ़ी मांगी, खजूर के मालिक ने माफ़ी मांगने की वजह पूछी तो आप ने पूरा वाकिया बयान कर दिया, खजूर के मालिक ने आप को माफ़ तो कर दिया लेकिन उस के दिल पर आप की ये बात ऐसी लगी के उस ने दुकान ही खत्म कर दी, और ताइब होकर आप की खिदमत करने लगा, और अपनी इबादतों रियाज़त से थोड़े ही दिनों में अब्दालों अल्लाह के वालियों में शामिल हो गया,

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वलीउल्लाह होने का तरीका :- एक आदमी हज़रत इब्राहीम बिन अदहम रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में आया, और आप ने उससे पुछा क्या तुम वली बनना चाहते हो उस ने जवाब दिया इससे अच्छा और क्या होगा, आप ने फ़रमाया तो ज़रा भी दुनिया और आख़िरत की आरज़ू मत करो, और अल्लाह पाक के सिवा हर चीज़ से फारिग और बेनियाज़ हो जाओ, और हमेशा हलाल रोज़ी खाओ, बगैर इस के कोई अल्लाह का वली नहीं हो सकता,

हज़रत इब्राहीम बिन अदहम रहमतुल्लाह अलैह की 6, छेह खूब सूरत नसीहतें :- एक आदमी हज़रत इब्राहीम बिन अदहम रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हुआ और आप से अर्ज़ किया हज़रत मेने अपने ऊपर बहुत ज़ुल्म किया है, आप मुझे कुछ नसीहत करें, में हमेशा उस पर अमल करूंगा, आप ने कहा मेरी सिर्फ 6, छेह बाते मान लो और तुम्हारा जो जी चाहे करो तुम्हे कोई नुकसान नहीं होगा, पहली बात ये है के जब तुम अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की नाफरमानी करो तो उस की नेमत (माल दौलत खाने की चीज़) खाना छोड़ दो, उस शख्स ने जवाब दिया दुनिया में जो कुछ है सब तो उसी का है फिर ये कैसे हो सकता है, आप ने फ़रमाया फिर तुम्हे शर्म नहीं आती,
के उस की नेमत खाते हो, और फिर उसकी नाफरमानी करते हो, और दूसरी बात ये है के जब तुम उस की नाफरमानी करना चाहो तो उस के मुल्क से बाहर जाकर करो, उस शख्स ने कहा हज़रत मशरिक़ से मगरिब पूरब से पश्चिम तक सब तो उसी का मुल्क है फिर में कहाँ जाऊं, तो आप ने कहा तो ये अच्छा मालूम होता है, उस के मुल्क में रहो, और उसकी नाफरमानी करो, तीसरी बात ये है के अगर कोई गुनाह करना चाहो तो ऐसी जगह छुप कर करो के अल्लाह पाक तुम को नहीं देखे, उस ने कहा हज़रत ये किस तह हो सकता है, वो तो सभी राज़ों का जानने वाला है, आप ने फ़रमाया फिर तुम्हे शर्म नहीं आती के उस के मुल्क में रहो, उस की दी हुई रोज़ी खाओ, और फिर उस के सामने गुनाह करो, चौथी बात ये है के जब मलिकुल मौत रूह क़ब्ज़ करने तुम्हारे पास आएं, तो उन से कहो थोड़ी देर के लिए तौबा करने की मुहलत दे दो, उस ने कहा हज़रत वो मेरी बात कहाँ मानने वाले हैं, आप ने फ़रमाया नादान जब तू मलिकुल मौत को थोड़ी देर भी रोकने पर ताक़त नहीं रखता तो फिर अच्छा ये है के उन के पहुंचने से पहले ही तौबा कर लो, पांचवी बात ये है के जब मुनकर नकीर क़ब्र में तुम से सवाल करने के लिए आएं, तो तुम उन्हें किसी हीले बहाने से टाल दो, उस ने कहा हज़रत ये तो सब से मुश्किल है, वो कहा किसी के हीले बहाने से टालने वाले हैं, आप ने फ़रमाया अगर तुम इस को दुशवार मुहाल समझते हो, तो फिर उनके आने से पहले ही जवाब देने के लिए अपने आप को तय्यार कर लो, ताके उस वक़्त बेबस न हो, छटी बात ये है के कल क़यामत के दिन जब गुनहगारों के लिए फरमाने खुदा होगा के इन्हें दोज़ख में ले जाओ तो तुम उड़ जाना, के में तो नहीं जाता, उस ने कहा हज़रत ये तो और भी नामुमकिन है, मेरी इतनी मजाल कहाँ के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के खिलाफ ज़बान खोल सकूं और मेरी ख्वाइश के मुताबिक मुझे छोड़ दिया जाए, तो फिर किस के भरोसे पर वो हरकत करते हो जो तुम को निजात से दूर और अज़ाब से क़रीब कर देती है, फिर उस ने कहा हज़रत आप ने जो कुछ फ़रमाया है में समझ गया और वो मुझ पर साफ़ वाज़ेह हो गया के मेरी निजात किस में है उस के बाद उस ने तौबा की और हज़रत की मुरीदी में दाखिल हो गया, और दुनिया से बिहम्दिहि इमान के साथ गया,

मआख़िज़ व मराजे :- मिरातुल असरार, नफ़्हातुल उन्स, खज़ीनतुल असफिया जिल्द दो, तज़किरातुल औलिया, सैरुल अक़ताब, सफ़ीनतुल औलिया, तज़किराए ख्वाजगाने चिश्त, महफिले औलिया, सैरुल औलिया,

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