हामिदो मेहमूद और हम्माद अहमद कर मुझे
मेरे मौला सय्यदी हामिद रज़ाए मुस्तफा के वास्ते

आप की विलादत शरीफ :- आप की विलादत ब सआदत माहे रबीउल अव्वल 1293, हिजरी मुताबिक 1875, ईस्वी में हुई,

इसमें मुबारक व लक़ब :- अकीके में आप का नाम हस्बे दस्तूर खानदानी “मुहम्मद” रखा गया जिन के आदाद 92, हैं, और यही नाम आप का तारीखी हो गया और उर्फ़ी नाम “हामिद रज़ा” है और ख़िताब आप का “हुज्जतुल इस्लाम” है,

आप की तालीमों तरबियत :- आप की तालीमों तरबियत आप के वालिद माजिद “इमामे अहले सुन्नत मुजद्दिदे आज़म सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह” की आगोश में हुई, वालिद माजिद आप से बहुत मुहब्बत करते थे, जुमला उलूमो फुनून आप ने अपने वालिद माजिद सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह से पढ़ी, यहाँ तक के इल्मे हदीस, तफ़्सीरे क़ुरआन, इल्मे फ़िक़्ह व क़ुतुब माक़ूलो मन्क़ूल को पढ़ कर सिर्फ उन्नीस 19, साल की उमर शरीफ में फ़ारिगुत तहसील हो गए,

आप के पिरो मुर्शिद का क्या नाम है :- आप मुरीद व खलीफा हज़रत सय्यद शाह “अबुल हुसैन अहमदे नूरी” मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह के थे,

Read this also वारिसे उलूमे आला हज़रत सरकार ताजुश्शरिया की हालाते ज़िन्दगी

आप के फ़ज़ाइलो कमालात :- रईसुल उलमा, ताजुल अतक़िया, आफ़ताबे शरीअतो तरीकत, शैखुल मुहद्दिसीन, रासुल मुफ़स्सिरीन, मुफक्किरे इस्लाम, आलमे उलूमे इस्लाम हज़रत अल्लामा अश्शाह हुज्जतुल इस्लाम मौलाना अल हाज कारी मुहम्मद हामिद रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह, “आप सीसिलए आलिया क़दीरिया रज़विया 40, वे चालीस वें इमाम व शैख़े तरीकत हैं” और आप इमामे अहले सुन्नत मुजद्दिदे आज़म सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह के बड़े साहबज़ादे हैं, आप अपने वालिद माजिद की तमाम खूबियों के जामे थे, आप की शख्सियत हक़्क़ानीयते इस्लाम की बोलती तस्वीर थी, काफी गैर मुस्लिम आपके चेहरे मुबारक को देख कर हल्का बगोशे इस्लाम हुए, हुसने ज़ाहिरी का ये आलम था के एक नज़र में देखने वाला पुकार उठता था, के “ये हुज्जतुल इस्लाम यानि इस्लाम की दलील हैं”
और जब आप हरमैन तय्येबेन मदीना मुनव्वरा ज़ादाहल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा तशरीफ़ की हाज़री पर थे तो हज़रत शैख़ सय्यद हुसैन दब्बाग, और सय्यद मालकी तुरकी ने आप की क़ाबिलियत को खिराजे तहसीन पेश करते हुए फ़रमाया के,
“हमने हिंदुस्तान के अतराफो अकनाफ़ यानि चरों तरफ में हुज्जतुल इस्लाम जैसा फसीह व बलीग़ नहीं देखा”
आप कमालाते बातनी के जमे थे, अपने अहिद के ला सानी और बे नज़ीर मुदर्रिस (टीचर) थे, इल्मे हदीस व तफ़्सीर का दरस खास तौर पर मशहूर था, और अरबी अदब में मुनफ़रिद आला हैसियत के मालिक थे, शेरो अदब का बहुत नाज़ुक और पाकीज़ा ज़ौक़ दिलचस्पी रखते थे, आप ने मसलके अहले सुन्नत व सिलसिलए आलिया क़दीरिया रज़विया की बे मिसाल खिदमत अंजाम दीं, और सारी उमर मुसलमानाने इस्लाम की फलाहो तरक़्क़ी में कोशिश करते रहे,

आप की आदाते करीमा :- आप अपने अस्लाफ व आबओ अजदाद के मुकम्मल नमूना थे, अख़लाक़ व आदात के जामे थे, आप जब भी बात करते तो तबस्सुम फरमाते हुए, लहजा इंतिहाई मुहब्बत आमेज़ होता, बुज़ुरगों का एहतिराम छोटों पर शफ़क़त का बरताओ आप के नोमाया जौहर थे, नज़रे हमेशा नीचे रखते, दुरूद शरीफ का अक्सर विरद फरमाते यही वजह है के अक्सर आप को नींद के आलम में भी दुरूद शरीफ पढ़ते देखा गया, आप की तबियत इंतिहाई निफ़ासत पसंद थी, चुनाचे आप का लिबास आप की निफ़ासत का बेहतीरीन नमूना होता था, अंग्रेज़ और उस की माशिरत के आप अपने वालिद माजिद की तरह शदीद मुखालिफ रहे, और उस की मुखालिफत में नोमाया काम अंजाम दिए,

आप की इंकिसारी :- हुज्जतुल इस्लाम हज़रत मौलाना मुहम्मद हामिद रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह उलूमो फुनून के शहंशाह, ज़ुहदो तक़वा में यगाना और खिताबत के शहसवार थे, आप अपने अख़लाक़ व किरदार से अपने अस्लाफ का जो नमूना क़ौम के सामने छोड़ा है, वो एक ऐनी शाहिद की ज़बानी मुलाहिज़ा हो,
शैखुद दलाइल मदनी रहमतुल्लाह अलैह इरशाद फरमाते हैं के हुज्जतुल इस्लाम नूरानी शक्लो सूरत वाले हैं, मेरी इतनी इज़्ज़त करते की जब में मदीना मुनव्वरा ज़ादाहल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा से उन के यहाँ गया, कपड़ा लेकर मेरी जूतियां तक साफ़ करते अपने हाथ से खाना खिलाते हर तरह खिदमत करते कुछ रोज़ के क़याम के बाद जब में बरेली शरीफ से वापस मदीना होने लगा तो हज़रत हुज्जतुल इस्लाम ने फ़रमाया मदीना मुनव्वरा ज़ादाहल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा में सरकारे आज़म में मेरा “सलाम” अर्ज़ करना और आपने ये शेर फ़रमाया,

Read this also हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलम की हालात ऐ ज़िन्दगी

अब तो मदीने ले बुला गुम्बदे सब्ज़ दे दिखा
हामिदो मुस्तफा तेरे हिन्द में गुलाम दो

आप की हुसने सीरतो सीरत :- जिस तरह हुज्जतुल इस्लाम का चेहरा खूबसूरत था, इसी तरह उन का दिल भी हसीन था वो हर एक से हसीन थे, सूरतो सीरत अख़लाक़ व किरदार, गुफ़्तार व रफ़्तार इल्मों फ़ज़ल तक़वा व ज़ुहद सब हसीन व खूबसूरत हुज्जतुल इस्लाम बुलंद पाया किरदार और पाकीज़ा अख़लाक़ के मालिक थे, और ख़लीक़ व महिरबान रहीमो करीम अपने तो अपने बेगाने भी उन के हुसने सीरत और अख़लाक़ की बुलंदी के मानने वाले थे, अलबत्ता आप दुश्मनाने दिनों सुन्नत और गुस्ताखाने दिनों सुन्नत के लिए नग्गी तलवार थे, और गुलामाने मुस्तफा के लिए शाखे गुल की तरह लचक दार और नरम थे,
शबे बरात आती तो सब से पहले माफ़ी मांगते यहाँ तक के छोटे बच्चों खादिमो खादिमाओ और मुरीदों से भी फरमाते के अगर मेरी तरफ से कोई बात हो गई हो तो माफ़ कर दो और किसी का हक़ रह गया हो तो बता दो,
आप अपने शागिर्दों और मुरीदों से भी बड़े लुत्फ़ो करम से पेश आते थे, और हर मुरीद और शागिर्द यही समझता था के इसी से ज़्यादा मुहब्बत करते हैं, “एक बार का वाकिया” है के आप लम्बे सफर से बरेली वापस आए, अभी घर पर उतरे भी नहीं थे और तांगे पर बैठे हुए थे, के बिहारी पुर बरेली के एक शख्स ने जिस का बड़ा भाई आप का मुरीद था, और उस वक़्त बीमारी की वजह से बिस्तर पर पड़ा हुआ था, आप से अर्ज़ किया हुज़ूर रोज़ ही आकर देख जाता हूँ लेकिन चूंकि हुज़ूर सफर पर थे, इस लिए घर पर मालूम कर के नाउम्मीद लौट जाता था मेरे भाई सरकार के मुरीद हैं और सख्त बीमार हैं चल फिर नहीं सकते उनकी बड़ी तमन्ना है के किसी सूरत से अपने मुर्शिद का दीदार करलें इतना कहना था के आप ने घर के सामने तांगा रोक कर इसी पर बैठे अपने छोटे साहबज़ादे को आवाज़ दी और कहा के सामान उतर वालो, में बीमार की इयादत कर के अभी आता हूँ और आप फ़ौरन अपने मुरीद की इयादत के लिए चले गए,
बनारस के एक मुरीद आप के बहुत मुँह चढ़े थे, और आप से बहुत मुहब्बतों अक़ीदत भी रखते थे, और काफी मुहब्बत भी थी, एक बार उन्होंने दावत की मुरीदों में घिरे रहने की वजह से आप उन के यहाँ वक़्त से खाने में न पहुंच सके, उन साहब ने काफी इन्तिज़ार किया और जब आप नहीं पहुंचे तो घर में ताला लगा कर और बच्चों को लेकर कहीं चले गए, आप जब उन के मकान पर पहुंचे तो देखा के ताला बंद है मुस्कुराते हुए लोट आये, बाद में उन्होंने मुलाकात होने पर उन्होंने नाराज़गी भी ज़ाहिर की, और रूठ्ठने की वजह भी बताई, आप ने बजाए नाराज़ होने या उसे अपनी हतक समझते हुए उन्हें उल्टा मनाया और दिल जोई की,
आप खुल्फ़ए आला हज़रत और अपने हम असर उलमा से न सिर्फ मुहब्बत करते थे, बल्के उन का एहतिराम भी करते थे, जब के बेश्तर आप से उमर और तक़रीबन सभी इल्मों फ़ज़ल में आप से छोटे और कम पाए के थे,
सादाते किराम ख़ुसूसन “महरहरा शरीफ” के मखदूम ज़ादगान के सामने तो बिछ जाते थे, और आकाओं की तरह उन का एहतिराम करते थे,
“हुज़ूर अशरफी मियां किछौछवी रहमतुल्लाह अलैह” से आप को बड़ी उनसीयत (मुहब्बत) थी, और इन दोनों में अच्छे और गहरे मरासिम भी थे, उन को आप ही ने “शबीहे गौसे आज़म” कहा आप हर जलसा और ख़ुसूसन बरैली शरीफ की तक़रीबात में उन का बहुत शानदार तआर्रुफ़ करते थे, मुहद्दिदसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह से भी अच्छे मरासिम (तअल्लुक़ात) थे,
सदरुला फ़ाज़िल मौलाना सय्यद नईमुद्दीन मुरादाबादी और हुज़ूर सद रूश्शरिया हज़रत अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद अमजद अली साहब को बहुत मानते और चाहते थे, शेर बेशाए अहले सुन्नत हज़रत मौलाना हशमत अली खान साहब से बड़े लुत्फ़ो इनायत के साथ पेश आते थे, आप की शादी में हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम रहमतुल्लाह अलैह ने शिरकत की,
हाफ़िज़े मिल्लत हज़रत मौलाना शाह अब्दुल अज़ीज़ साहब बानी “अलजामीअतुल अशरफिया मुबारक पुर आज़म गढ़ उत्तर प्रदेश” पर भी खुसूसी तवज्जु फरमाते थे,
उन की दावत पर अपने सब से छोटे साहबज़ादे हज़रत नोमान के साथ 1334, हिजरी में आप मुबारक पुर आज़म गढ़ तशरीफ़ ले गए, आप को अपने दामाद व शागिर्द और खलीफा हज़रत मौलाना तक़ददुस अली खान से भी बड़ी मुहब्बत थी, मौलाना तक़ददुस अली खान सफर में आप के साथ रहते थे,

आप का ज़ुहदो तक़वा :- हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम रहमतुल्लाह अलैह निहायत ही मुत्तक़ी और परहेज़गार थे, इल्मी व तब्लीगी कामो से फुरसत पाते तो ज़िक्रे इलाही और दुरूद शरीफ के विरद में मसरूफ हो जाते, आप के जिसमे अक़दस पर एक फोड़ा हो गया था, जिस का ऑपरेशन बहुत मुश्किल था, डाक्टर ने बेहोशी का इंजक्शन लगाना चाहा तो मना फरमा दिया, और साफ़ कह दिया में नशे वाला टीका नहीं लगवाऊंगा, होश की हालत में दो तीन घंटे तक ऑपरेशन होता रहा, दुरूद शरीफ का ज़िक्र करते रहे, और किसी भी दर्द बेचैनी का इज़हार नहीं होने दिया, डॉक्टर आप की हिम्मत और इस्तिक़ामत और तक़वा पर हैरान व शुश्दर रह गया,

Read this also सरकार मुफ्तिए आज़म हिन्द मुहम्मद मुस्तफा रज़ा खान नूरी रहमतुल्लाह अलैह की हालाते ज़िन्दगी (Part-1)

आप के इल्मी व तब्लीगी कार नामे :- हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम रहमतुल्लाह अलैह एक बुलंद पाया खतीब, माया नाज़ अदीब, और यगानए रोज़गार आलिम व फ़ाज़िल थे, दीने मतीन की खिदमत व तब्लीग नामूसे मुस्तफा की हिफाज़त, क़ौम की फलाहो बहबूद उन की ज़िन्दगी के असल मक़ासिद थे, और यही सच है के वो गलबाए इस्लाम की खातिर ज़िंदह रहे, और आखरी दम तक तो परचमे इस्लाम बुलंद कर के इस दुनिया से सुर्खरू कामरान कामयाब हो कर गए, इस सदी के वालिद मुहतरम सय्यदना आला हज़रत ने खुद उनकी इल्मी व दीनी खिदमत को सराहा है, और आप पर नाज़ किया है, मसलके अहले सुन्नत व जमाअत की तरवीजो इशाअत की खातिर आप ने बर्रे सगीर के मुख्तलिफ अलग अलग शहरों और क़स्बों के दौरे किए, गुस्तख़ाने रसूल वहाबिया से मुनाज़िरे किए हैं, सियासत दानो के फरेब से मुसलमानो को निकाला है, शुधी तहरीक को पस्पा करने के लिए जी तोड़कर कोशिश की है, और हर जिहत हर सम्त से बातिल और बातिल परस्तों का रद और इंसिदाद रोक थम की,

हुज्जतुल इस्लाम रहमतुल्लाह अलैह की सियासी बसीरत और हक़्क़ की हिमायत :- हुज्जतुल इस्लाम रहमतुल्लाह अलैह सियासत दानो की चालों को खूब सझते थे और अपने ज़माने के हाल से पूरी तरह बाख़बर रह कर मुसलमानो को सियासत व रियासत के चंगुल से बचाने की हर मुमकिन कोशिश करते रहते थे, साथ ही साथ इस आंधी में उड़ाने वाले मुस्लिम उलमा क़ाइदीन और दानिशवरों से इफ़्हामो तफ़हीम और हक़ न कबूल करने पर उन से हर तरह की नबरद जंग आज़माई के लिए भी तय्यार थे,
मौलाना अब्दुल बारी फिरंगी महल्ली साहब पर उन की कुछ सियासी हरकात और तहरिरात की बिना पर सय्यदना आला हज़रत ने उन पर फतवा सादिर फ़रमाया, मौलाना अब्दुल बारी फिरंगी महल्ली साहब ने नजदियों के ज़रिए हरमैन शरीफ़ैन के क़ुब्बा जात गिराने और बेहुरमती करने के सिलसिले में लखनऊ में एक कॉन्फरन्स बुलाई, हज़रत हुज्जतुल इस्लाम साहब “जमाअत रज़ाए मुस्तफा” की तरफ से चंद मशहूर उलमा के साथ लखनऊ तशरीफ़ ले गए, वहां मौलाना अब्दुल बारी फिरंगी महल्ली साहब और उन के मुतअल्लिक़ीन व मुरीदीन ने ज़बरदस्त इस्तकबाल किया और जब मौलाना अब्दुल बारी ने हुज्जतुल इस्लाम रहमतुल्लाह अलैह से मुसाफा करना चाहा तो आप ने हाथ खींच लिया, और फ़रमाया के जब तक मेरे वालिद गिरामी का फतवा है और जब तक आप तौबा नहीं कर लेंगे में आप से नहीं मिल सकता,
मौलाना अब्दुल बारी फिरंगी महल्ली साहब का लक़ब सूरातुल इमान था, उन्होंने हक़ को हक़ समझ कर खुले दिल से तौबा करली और फ़रमाया लाज रहे या न रहे, में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के खौफ से तौबा कर रहा हूँ, मुझ को उसी के दरबार में जाना है, मौलाना अहमद रज़ा खान बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह ने जो लिखा है सही लिखा है,

इस्लामी कानून की हिमायत में जिरह और बेबाकी :- लखनऊ ही में मुसलमानो के निकाह व तलाक के मुआमले में कानून बनाए जाने पर एक कांफ्रेंस के मोके पर हज़रत हुज्जतुल इस्लाम रहमतुल्लाह अलैह और सद रुल्ला फ़ाज़िल मुफ़्ती नईमुद्दीन मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह और मौलाना तक़ददुस अली खान रहमतुल्लाह अलैह बरेली शरीफ से शिरकत के लिए गए थे, इस कॉन्फरन्स में शीआ और नदवी मौलवियों के अलावा शाह सुलेमान चीफ जस्टिस हाई कोर्ट और हज़रत मौलाना अब्दुल बारी फिरंगी महल्ली रहमतुल्लाह अलैह के दामाद दो भतीजे अब्दुल वली भी थे, हुज्जतुल इस्लाम रहमतुल्लाह अलैह ने जिरह में सब को उखाड़ दिया और फैसला आप ही के हक़ में हुआ, हिमायती इस्लाम और शरीअते मुस्तफा व नामूसे रिसालत के मुआमले में हुज्जतुल इस्लाम रहमतुल्लाह अलैह ने हमेशा हक़ गई से काम, लिया, और किसी भी मस्लिहत को भटकने नहीं दिया,

Read this also मुजद्दिदे बरकातियत सय्यद शाह अबुल क़ासिम इस्माईल हसन बरकाती अल मारूफ “शाह जी मियाँ” रहमतुल्लाह अलैह की हालाते ज़िंदगी

आप की मुस्लिहाना शान :- 1935, ईस्वी में मुसलमानो के मज़हबी, क़ौमी, सियासी समाजी और मुआशी इस्तेहकाम के सिलसिले में एक रजिस्टर तय्यार करने की गरज़ से मुरादाबा में चार रोज़ कन्फरन्स मुनअकिद की गई थी, जिस के इजलास की सदारत हुज्जतुल इस्लाम रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाई थी, और इस मोके पर जो फसीह व बलीग़ पुर मगज़ पुर तदबीर खुत्बा दिया था वो उन की सियासी बसीरत इल्मी जाहत क़ियादत व सियादत मिल्ली व क़ौमी हम दर्दी और दीनी हिमायत की एक शानदार मिसाल है, और जिससे उन के आलिमाना, मुस्लिहाना, व मुफक्किराना, शानो अज़मत का भरपूर इज़हार होता है, ये खुत्बा अवाम व ख्वास उलमा व तलबा हर एक के लिए लाइके मुतालआ है, इस ख़ुत्बे से हुज्जतुल इस्लाम की अदबी शान भी झलकती है,

आप की ज़बानो अदब पर महारत :- हुज्जतुल इस्लाम रहमतुल्लाह अलैह की ज़बान दानी उन की फ़साहतो बलाग़त नस्र निगारी व शायरी ख़ुसूसन अरबी ज़बानो अदब पर उबूर और महारत की तारीफ मुल्के अरब के उलमा ने भी की है, हुज्जतुल इस्लाम के दूसरे हज व ज़्यारत (1342,) हिजरी के मोके पर अरब के मारूफ अरबी जानने वाले “हज़रत शैख़ सय्यद दब्बाग और सय्यद मलिकी तुरकी” ने आप की अरबी दानी और क़ाबिलियत को खिराजे तहसीन पेश करते हुए इस तरह ऐतिराफ़ किया है,
“हमने हिंदुस्तान के अकनाफ़ व अतराफ़ चरों तरफ हुज्जतुल इस्लाम जैसा फसीह व बलीग़ दूसरा नहीं देखा जिसे अरबी ज़बान में इतना उबूर हासिल हो”
हुज़ूर आला हज़रत ही की हयात में हज़रत मौलाना ज़ियाउद्दीन पीलीभीती रहमतुल्लाह अलैह ने एक बार आप ने रिसाले पर जिसे उन्होंने इल्मे गैब के मसले पर लिखा था, हुज्जतुल इस्लाम से तक़रीज़ लिखने की फरमाइश की हज़रत ने क़लम बर्दाशता उन के सामने अरबी ज़बान में एक वसी तक़रीज़ तहरीर फ़रमाई,
हुज़ूर आला हज़रत की अरबी ज़बान की किताब “अद्दौलतुल मक्किया” और “किफलुल फकीहिल फाहिम” छपवाने के वक़्त हुज़ूर आला हज़रत के हुक्म पर उसी वक़्त अरबी ज़बान में तमहिदात तहरीर करदीं जिन्हें देख कर हुज़ूर आला हज़रत बहुत खुश हुए खूब सराहा और दुआएं दीं,

हुज्जतुल इस्लाम रहमतुल्लाह अलैह की अरबी दानी का एक अहम वाकिअ :- हुज्जतुल इस्लाम रहमतुल्लाह अलैह को एक बार “दारुल उलूम मुईनिया” अजमेर शरीफ में तलबा (स्टूडेंटस) का इम्तिहान लेने और दारुल उलूम के मुआइने के लिए दावत दी गई, तलबा के इम्तिहान वगैरह से फारिग हो कर जब आप चलने लगे तो मौलाना मुईनुद्दीन साहब अजमेरी ने दारुल उलूम के मुआइने के सिलसिले में कुछ लिखने की फरमाइश की, आप ने फ़रमाया फ़क़ीर तीन ज़बाने जनता है अरबी, फ़ारसी, और उर्दू, आप जिस ज़बान में कहें लिख दूँ मौलाना मुईनुद्दीन साहब उस वक़्त आला हज़रत और हुज्जतुल इस्लाम से इतने मुतअस्सिर नहीं थे, जितना होना चाहिए, उन्होंने कह दिया के अरबी में तहरीर कर दीजिए,
हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम रहमतुल्लाह अलैह ने क़लम बर्दाश्ता कई सफ्हे का निहायत ही फसीहो बलीग़ अरबी में मुआइना तहरीर फरमा दिया हुज्जतुल इस्लाम के इस कलम बर्दाश्ता लिखने पर मौलाना मुईनुद्दीन साहब मौसूफ़ हैरत ज़ादाह भी हो रहे थे, और सोच भी रहे थे,
के जाने क्या लिख रहे हैं क्यूंकि उनको भी अपनी अरबी दानी पर बड़ा नाज़ था, जब मुआइना लिख कर हुज्जतुल इस्लाम चले आये तो बाद में उस के तर्जुमे के लिए मौलाना मरहूम बैठे तो उन्हें हुज्जतुल इस्लाम रहमतुल्लाह अलैह की अरबी समझने में बड़ी दिक्क्त पेश आई बमुश्किल तमाम लुगत देख देख कर तर्जुमा किया और वो भी तर्जुमा पूरा नहीं कर सके और बाज़ अल्फ़ाज़ उन्हें लुग़त में भी नहीं मिले बाद में उन्हें अरब उलमा की ज़बान और उन की क़ुतुब से हासिल हुए तब जाकर उन्हें इन अल्फ़ाज़ और मुहावरों का इल्म हुआ,

Read this also मुजद्दिदे आज़म इमाम अहमद रज़ा खान सरकार आला हज़रत फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह की हालाते ज़िन्दगी part 1

गोवालियर के राजा की अक़ीदत :- आप के हुसनो जमाल का ये आलम था, के सिर्फ सूरत देख कर लोग आशिक व शैदा बन जाते थे, चुनाचे आप एक बार गोवालियर तशरीफ़ ले गए आप का जब तक वहां क़याम रहा हर रोज़ वहां का “राजा” सिर्फ आप की ज़्यारत के लिए हाज़िर होता था, और आप के हुसनो जमाल को देख कर हैरान होता था,
इसी तरह चित्तोड़ गढ़ उदय पुर के राजगान आप के बड़े शैदाई रहे, यूं ही एक बार आप सफर से तशरीफ़ लाए, स्टेशन पर आप जिस वक़्त उतरे तो उसी वक़्त अताउल्लाह बुखारी भी उतरा, उस ने लोगों से पूछा ये कौन बुज़रुग हैं? लोगों ने बताया के आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह के जानशीन हज़रत मौलाना हामिद रज़ा खान हैं, ये सुन कर कहने लगा के मेने तो मौलवी तो बहुत देखे मगर इन से ज़्यादा “हसीन खूबसूरत” किसी मौलवी को नहीं पाया,

आप की हज्जो ज़्यारत :- आप ज़्यारते हरमैन शरीफ़ैन मदीना मुनव्वरा ज़ादाहल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा से भी मुशर्रफ हुए, चुनाचे 1323, हिजरी मुताबिक 1905, ईस्वी में अपने वालिद मुहतरम इमामे अहले सुन्नत सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह के साथ हज को तशरीफ़ ले गए, ये हज आप का इल्मी व तहक़ीक़ी मैदान में अज़ीम था, और जो कार हाए नोमाया आप ने इस हज में अदा फ़रमाया वो “अद्दौलतुल मक्किया” की तरतीब है जिसे फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह ने सिर्फ आठ घंटे की कम मुद्दत में कलम बर्दाश्ता लिख दी, मज़कूरा किताब के अज्ज़ा हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम को देते जाते, आप उन को साफ करते जाते थे, फिर इस का तर्जुमा भी आप ही ने किया, ये तर्जुमा बहुत ही अहम है जो देखने से तअल्लुक़ रखता है, ज़्यारत सरकारे मदीना सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इश्तियाक़ किस दरजा आप को था, इस का सही अंदाज़ा आप के मन्दर्जा ज़ैल शेर से होता है,

इसी तमन्ना में दम पड़ा है यही सहारा है ज़िन्दगी का
बुला लो मुझ को मदीने सरवर नहीं तो जीना हराम होगा

और दूसरा हज आप ने 1334, हिजरी में अदा फ़रमाया,

हुज्जतुल इस्लाम रहमतुल्लाह अलैह का पाकिस्तान में तशरीफ़ लाना :- क़यामे पाकिस्तान से पहले आप 1925, ईस्वी में “अंजुमन हिज़्बुल अहनाफ़” के सालाना जलसे में शरकत की गरज़ से लाहौर तशरीफ़ ले गए चुनाचे इसी दौरान सर गिरोह दया बिना को मुनाज़िरह का चैलेंज दिया गया, और मुनाज़िरह की गरज़ से आप के साथ अकाबिर उल्माए अहले सुन्नत तशरीफ़ ले गए, लेकिन ऐन वक़्त पर फरीके मुखालिफ ने उज़रे लंग पेश कर के जलसा गाह में आने से इंकार कर दिया, जैसा के सय्यद अय्यूब अली साहब अपनी एक मनकबत में इसी मुनाज़िरे की तरफ इशारा करते हुए फरमाते हैं,

Read this also सरदारे औलिया महबूबे सुब्हानी क़ुत्बे रब्बानी सय्यदना शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी गौसे आज़म बगदादी की हालाते ज़िन्दगी (Part-1)

हिंदुस्तान में धूम है किस बात की मालूम है
लाहौर में दूलह बना हामिद रज़ा हामिद रज़ा

समझते थे क्या और क्या हुआ अरमान दिल में रह गया
तेरे ही सर सेहरा रहा बना हामिद रज़ा हामिद रज़ा

अय्यूब किस्सा मुख़्तसर आया न कोई वक़्त पर
तेरे मुकाबिल मनचला हामिद रज़ा हामिद रज़ा

इसी मुनाजिरे के मोके पर :- हुज्जतुल इस्लाम रहमतुल्लाह अलैह की मुलाकात डॉक्टर इक़बाल से भी हुई और अल्लामा इक़बाल को भी जब हुज्जतुल इस्लाम रहमतुल्लाह अलैह ने देओबंदी मौलवी की गुस्ताखाना इबारते सुनाईं, तो वो सुन कर हैरत ज़दाह रह गए और बेसाख्ता बोले के मौलाना ये ऐसी इबारात गुस्ताखाना हैं के इन लोगों पर आसमान क्यों नहीं टूट पड़ा, इन पर तो आसमान टूट जाना चाहिए,
इस जलसे से सब से बड़ा फायदा जो दुनियाए सुन्नियत को हुआ वो हज़रत मुहद्दिदे आज़म पाकिस्तान अल्लामा मौलाना सरदार अहमद साहब रहमतुल्लाह अलैह जैसी बुज़रुग हस्ती का हुसूल है,
“वाकिअ” इस तरह मन्क़ूल है के हुज्जतुल इस्लाम रहमतुल्लाह अलैह “अंजुमन हिज़्बुल अहनाफ़” के जलसे में लाहौर तशरीफ़ ले गए, वहां चंद रोज़ आप का क़याम रहा, जलसा गाह में दूसरे लोगों की तरह मौलाना सरदार अहमद साहब भी आये, और हज़रत हुज्जतुल इस्लाम की ज़्यारत से मुशर्रफ हुए, मौलाना सरदार अहमद साहब उस वक़्त अंग्रेज़ी तालीम हासिल कर रहे थे, हज़रत की ज़्यारत ने आप के क़ल्ब पर जो असरात छोड़े उन्हें आप से ज़्यादा कोई नहीं जानता, उस रोज़ बराबर हज़रत की क़याम गाह पर पहुंचते रहे, दूसरे लोग आते रहे और अपनी अपनी हाजतें बयान करते,
लेकिन मौलाना सरदार अहमद साहब रहमतुल्लाह अलैह शूरे से आखिर तक खामोश अदब के साथ बैठे रहे, और जब हज़रत के आराम का वक़्त होता तो लोगों के साथ चले जाते इसी तरह कई दिन गुज़र गए, और हज़रत की वतन वापसी में एक या दो दिन बाक़ी रह गए, चुनाचे एक रोज़ खुद हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम रहमतुल्लाह अलैह ने आप से पूछा के साहबज़ादे क्या वजह है के आप रोज़ आते हैं लेकिन खामोश बैठ कर चले जाते हैं? मौलाना सरदार अहमद रहमतुल्लाह अलैह ने इल्मे दीन हासिल करने की गरज़ से आप के साथ चलने का इरादा ज़ाहिर फ़रमाया हज़रत ने ख़ुशी के साथ क़बूल कर लिया, और अपने साथ बरेली शरीफ लाए, चुनाचे हज़रत की बा करामत सुहबत से अपने वक़्त के अज़ीम मुहद्दिस और कामयाब मुदर्रिस बने, और तक़सीमे पाकिस्तान यानि हिंदुस्तान पाकिस्तान के बटवारे के बाद लाहौर में सुन्नी मुसलमानो की क़ियादत आप के हिस्से में आई, और पाकिस्तान का शहर आप ही के नाम से “सरदाराबाद” कहा जाता है,

आप की मिल्ली खिदमात :- आप ने बर्रे सगीर के मुसलमानो की मुआशरती हालत को बेहतर बनाने के लिए 1925, ईस्वी में “ऑल इण्डिया कॉन्फरन्स” मुनअकिदह मुरादाबाद में चन्द तजवीज़ का ज़िक्र अपने ख़ुत्बाए सदारत में किया है, मगर गौर से देखा जाए तो ये एक ऐसा दस्तूरुल अमल है के अगर इस के मुताबिक काम हुआ होता तो आज मुसलमानो की हालत कुछ और ही होती और मुआशी तिजारती हर दीनी व दुनियावी उमूर में मुस्लमान किसी भी क़ौम से पीछे नहीं होता, इसी ख़ुत्बाए सदारत में मुलाज़िमत की हौसला शिकनी कर के सनअती और तालीमी व तिजारत पर ज़ोर दिया है, मुलाज़िमत का हाल यूं बयान फरमाते हैं,
हमारा ज़रिए मुआश सिर्फ नौकरी और गुलामी है और इस की भी ये हालत के हिन्दू नवाब मुसलमान को मुलाज़िम रखने से परहेज़ करते हैं, रहीं गोरमेंट मुलाज़िमतें इस का हुसूल लम्बा अम्ल है, अगर रात दिन की मेहनत की नौबत आती है बरसों बाद जगह मिलने की उम्मीद पर रोज़ाना खिदमत मुफ्त अंजाम दिया करो अगर बहुत बुलंद हिम्मत हो और क़र्ज़ पर बसरो औकात कर के बरसों के बाद कोई मुलाज़िमत हासिल भी की तो इस वक़्त तक क़र्ज़ का इतना अम्बार हो जाता है जिस को मुलाज़िमत की आमदनी से अदा नहीं कर सकते, फिर हिन्दुओं के अक्सरियत की बाइस आँखों में खटकते रहते हैं,
हमें ये नहीं समझना चाहिए के हमारी रोज़ी नौकरी में मुन्हसिर है हमें दस्तकारी पेशे सीखना चाहिए,
अब इस की ताम काबिलीयतें हैंच हैं, सनादें बेकार हैं, ज़िन्दगी वबाल है, औलाद की तरबियत इसी नादारी में क्यूँकर हो सके खुद तबाह नस्ल बर्बाद, लेकिन पेशावर होता, हाथ में कोई हुनर रखता तो इस तरह मुहताज न होता, नौकरी गई बला से इस का ज़रिए मुआश इस के साथ होता, हमे नौकरी का ख्याल ही छोड़ देना चाहिए नौकरी किसी क़ौम को मेराज तरक़्क़ी तक नहीं पहुंच सकती दस्तकारी और पेशे और हुनर से तअल्लुक़ पैदा करना चाहिए,

Read this also इफ्तार के वक़्त दुआ क़बूल होती है और दुआ मांगना सुननत है

आप ने शुधी तहरीक का खत्म किया :- आप ने मुसलमानो की हिफाज़त व तब्लीग की वो खिदमात अंजाम दीं जिन्हें कभी फरामोश नहीं किया जा सकता, हिंदुस्तान में शुधी तहरीक ने बड़ा फितना बरपा किया था और मुस्लमान को इस के मज़हब से फेरने की बड़ी बड़ी इस्कीमे बनाई थीं, जिस की तरफ इशारा करते हुए आप इरशाद फरमाते है,
अब तक तो शुद्धी ही की कोशिशें राजपूताना ही में थीं, लेकिन अब उन्होंने अपना मैदाने अमल वसी कर दिया है और तमाम हिंदुस्तान में जहाँ मौका मिलता है हाथ मारते हैं, क़ौमो की क़ौमे उन के ज़ुल्मो सितम से तबाह हो रही हैं, मुसलमानो की मज़हबी अंजुमने हर जगह नहीं हैं जो हैं उन में राब्ता नहीं, जिस सरज़मीन को ख़ाली देखा, वहां आरिया दौड़ पड़े, जब तक उल्माए इस्लाम को किसी हिस्साए मुल्क से बुलाए तब तक कितने गरीब शिकार हो चुकते हैं, राजपूताना में हमें तजुर्बा हो चुका है के आरियों के ज़ोर ज़ोर छापना और दबाओ वगैरह की तमाम क़ुव्वतें इस्लामी फुज़्ला की दावते हक़ के मुकाबिल बेकार हो जाती हैं,
जाहिल नादारों के सामने हज़ारों रूपया पेश किया जाता था, और उन्हें मुर्तद हो जाने पर बहुत वलवला अंगेज़ मुज़्दे सुनाए जाते थे, वहां हमारे पास इस्लामी ज़ाहिद और बुज़ुरगों के ज़िक्र के सिवा कोई नुस्खा ऐसा बेखिताब असर करता था, के दिहाती नो जवान अपनी सर मस्ती से होश में आ कर दिल लुभाने वाली सूरत और मालो मनाल के लालच दोनों को नफरत के साथ ठोकर मार कर इताअते इलाही के लिए कमर बस्ता हो जाता था,
दो फ़रीक़ों के साथ इत्तिहाद के नुकसान और उस के नतीजे पर तब्सिरा करते हुए इरशाद फरमाते हैं, हमारे सुन्नी हज़रात के दिल में जब कभी इत्तिफ़ाक़ की उम्मंगें पैदा होतीं तो उन्हें अपने से पहले मुखालिफ याद आये जो रात दिन इस्लाम को ख़त्म करने के लिए बे चैन हैं, और सुन्नियों की जमात पर तरह तरह के हमले कर के अपनी तादाद बढ़ाने के लिए बेचैन और मजबूर हैं, हमारे भाई इन की इस रविश ने इत्तिहाद व इत्तिफ़ाक़ की तहरीक को भी कामयाब न होने दिया, क्यूंकि अगर वो फ़िरक़े अपने दिलों में इतनी गुंजाईश रखते के सुन्नियों से मिल कर सीखें तो अलाइदा डेढ़ ईट की तामीर कर के नया फिरका ही क्यों बनाते और मुसलमानो के मुखालिफ एक जमात क्यों बनाते वो तो हकीकतन मिल ही नहीं सकते और सूरतन मिल भी जाएं तो मिलना किसी मतलब से होता है जिस के हुसूल के लिए हर दम ज़नी जारी रहती है और उस का अंजाम जिदाल व फसाद ही निकलता है ये तो ताज़ा तजुर्बा है के खिलाफत कमेटी के साथ एक जमाअत “जमीअतुल उलमा” के नाम से शामिल हुई जिस में तक़रीबन सब के सब या ज़्यादा वहाबी और गैर मुक़ल्लिद हैं नादिर ही कोई दूसरा शख्स हो तो हो इस जमाअत ने खिलाफत की ताईद को तो उन्वान बनाया, अवाम के सामने नुमाइश के लिए तो ये मकसद पेश किया मगर काम अहले सुन्नत के रू, और उन की बेचैनी का अंजाम दिया, अपने मज़हब की तरवीज इसी परदे में खूब की मेरे पास जनाब मौलवी अहमद मुख़्तार साहब सदर “जमीअतुल उलमा” सूबा मुंबई का एक खत आया है जो उन्होंने मद्रास का दौरा करते हुए तहरीर फ़रमाया है इस में लिखते हैं के वहाबी इस सूबे में इस क़ौमी रुपये से जो तुरकों के दर्दनाक हालात बयान कर के वुसूल किया गया था, अब तक दो लाख “तक़वीयतुल इमान” छपा कर मुफ्त तकसीम कर चुके हैं, अब बताईए के इन जमाअतों का मिलाना “ज़र दादन दर्दे सर ख़रीदन” हुआ या नहीं अपने ही रुपये से अपने ही मज़हब का नुकसान हुआ,

औरतों की तालीम पर आप का ज़ोर :- औरतों की तालीम पर आप ने ख़ुत्बाए सदारत में काफी ज़ोर दिया है बल्के लड़कियों की तालीम और उस की फ़लाहो तरक़्क़ी के लिए भी आप बेहद कोशिश में रहे, और सनफ नाज़ुक की बक़ा व इस्तेहकाम नीज़ इस के तालीम के फायदे पर आप बड़ी गहरी नज़र रखते थे, चुनाचे आप के कितने दौरे मुल्क गीर दौरे इसी मकसद के तहत हुए आप के ठोस तासुरात व तजवीज़ जो कॉन्फिरनसों में पास हो ते जिन को पढ़ कर अंदाज़ा होता है के क़ुदरत ने आप के दिल में क़ौमे मुलिम की बक़ा व तरक़्क़ी का कितना दर्द वदीअत फ़रमाया था,
ज़ेल में कॉन्फिरेनस मुरादाबा की तजावीज़ इस की रोशन दलील है फरमाते हैं,
“लड़कियों की तालीम का इंतिज़ाम भी निहायत ज़रूरी है और इस में दीनियात के अलावा सूज़न कारी यानि सिलाई का काम और मामूली ख़ानादारी (घरेलू) की तालीम बेहद इम्काने लाज़मी है, परदे का खास एहतिमाम (इंतिज़ाम) करना चाहिए”
अल मुख़्तसर ये के ख़ुत्बए सदारत मुरादाबाद आप की ज़हानत और क़ाइदाना सलाहियत की भरपूर रोशन दलील है जिस का मुतालआ हर ज़ी इल्म और क़ौमी व इल्मी काम करने वालों के लिए बहुत ज़रूरी है जिस में समंदर को कूज़े में भर दिया है,

Read this also मुजद्दिदे इस्लाम हज़रत शैख़ अबू बक़र शैख़ शिब्ली बगदादी की हालाते ज़िन्दगी

आप की ज़ोक़े शायरी :- आप अरबी, फ़ारसी उर्दू नज़्म व नस्र में मुनफ़रिद उस्लूब बयान रखते थे, हम्दो नअत व दीगर असनाफ शायरी के पेश्तर अशआर आप के दीवान में मेहफ़ूज़ हैं, ज़ेल में चन्द कलाम से कुछ अश्शआर पेश किए जाते हैं जिससे आप का अदबी ज़ोक व क़ाबिलियत व इश्क़े रसूल का बखूबी अंदाज़ा हो सकता है,

मुहम्मद मुस्तफा नूरे खुदा नामे खुदा तुम हो
शहे खैरुल वरा शाने खुदा सल्ले अला तुम हो

शकीबे दिल करारे जां मुहम्मद मुस्तफा तुम हो
तबीबे दर्दे दिल तुम हो मेरे दिल की दवा तुम हो

गरीबों दर्द मंदों की दवा तुम हो दुआ तुम हो
फ़क़ीरों बे नवाओं की सदा तुम हो निदा तुम हो

हबीबे किबरिया तुम हो इमामुल अम्बिया तुम हो
मुहम्मद मुस्तफा तुम हो मुहम्मद मुज्तबा तुम हो

न कोई माहे विश तुमसा न कोई मेह जबीं तुमसा
हसीनों में हो तुम ऐसे के महबूबे खुदा तुम हो

में सदक़े अम्बिया के यूं तो सब मेहबूब हैं लेकिन
जो सब प्यारों से प्यारा है वो महबूबे खुदा तुम हो

तुम्हारे हुसने रंगीं की झलक है सब हसीनों में
वो खुरशीद सय्यारों सितारों की ज़िया तुम हो

ज़मी में है चमक किस की फलक पर है झलक किस की
बहारों की बहारों में बहारे जां फ़िज़ा तुम हो

वो ला सानी हो तुम आक़ा नहीं सानी कोई जिस का
अगर बे दूसरा कोई तो अपना दूसरा तुम हो


न हो सकते हैं दो अव्वल न हो सकते हैं दो आखिर
तुम अव्वल और आखिर इब्तिदा तुम इंतिहा तुम हो

खुदा कहते नहीं बनती जुदा कहते नहीं बनती
खुदा पर इस को छोड़ा है वही जाने के किया तुम हो


अना मिन हमीदो हामिद रज़ा मिंनी के जलवों से
बी हमदिल्लाह रज़ा हामिद में और हामिद रज़ा तुम हो

मआख़िज़ व मराजे :- तज़किराए मशाइखे क़ादिरया बरकातिया रज़विया, तज़किराए उल्माए अहले सुन्नत, फकीहे इस्लाम सफा नंबर 237, फाज़ले बरेलवी उल्माए हिजाज़ की नज़र में सफा नंबर 82, माह नामा आला हज़रत जून 1963, सफा नंबर 18, दावते फ़िक्र सफा नंबर 35, खुत्बा हुज्जतुल इस्लाम सफा नंबर 51, 52, माह नामा आला हज़रत अप्रेल 1986, ईस्वी सफा नंबर 25, माह नामा हिजाज़ जदीद दिल्ली अप्रेल 1989, ईस्वी सफा नंबर 52,

Read this also सुल्तानुल हिन्द ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की हालाते ज़िंदगी और आपकी करामात

Share Zarur Karein – JazakAllah

Read this also – हज़रत आदम अलैहिस्सलाम कौन हैं? आपके बारे में पूरी जानकारी