विलादत बा सआदत :- सय्यदुल औलिया, रईसुल फुक़्हा, वल मुज्तहदीन, वल मुहद्दिसीन, इमामुल अइम्मा, सिराजुल उम्माह, काशिफ़ुल गुम्मह, इमामे आज़म अबू हनीफा नोमान बिन साबित ज़ूता कूफ़ी रदियल्लाहु अन्हु” आप अस्सी 80, हिजरी में कूफ़ा में पैदा हुए, “नुज़हतुल कारी शरह सहीहुल बुखारी में है: हज़रत इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु की पैदाइश किस सन में हुई इस बारे में दो क़ौल मशहूर हैं, 70, हिजरी या अस्सी 80, हिजरी ज़्यादातर लोग अस्सी 80, हिजरी को तरजीह देते हैं, लेकिन बहुत से मुहक़्क़िक़ीन ने 70, हिजरी को तरजीह दी है, मुफ़्ती शरीफुल हक़ अमजदी रहमतुल्लाह अलैह के नज़दीक भी यही सही है,

आप का नाम :- आप का नामे नामी इसमें गिरामी “नोमान” है, और वालिद का नाम “साबित” और दादा का नाम ज़ूता है, और आप की कुन्नियत “अबू हनीफा” है, आप के पोते हज़रत इस्माईल बिन हम्माद रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं: में इस्माईल बिन हम्माद बिन नोमान बिन साबित बिन नोमान मर्ज़बान हूँ, हमारे दादा “इमाम अबू हनीफा” अस्सी 80, हिजरी में पैदा हुए, उनके दादा अपने नोमोलूद बेटे साबित को हज़रत सय्यदना अली कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम की खिदमत में हाज़िर हुए तो मौला अली रदियल्लाहु अन्हु ने उन के लिए और उन की औलाद के लिए बरकत की दुआ फ़रमाई, और अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से उम्मीद रखते हैं के उस ने हज़रत मौला अली रदियल्लाहु अन्हु की दुआ हमारे हक़ में ज़रूर क़बूल फ़रमाई है, (तबीज़ुस सहीफ़ा)

हज़रत नोमान बिन साबित रदियल्लाहु अन्हु को इमामे आज़म “अबू हनीफा” क्यों कहते हैं? :- हज़रत इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु के तमाम तज़किरा निगार इस बात पर मुत्तफ़िक़ हैं के आप की कुन्नियत “अबू हनीफा” थी, ज़्यादातर तज़किरा निगार लिखते हैं के इमामे आज़म रहीमाहुल्लाह के सिर्फ एक बेटे थे, इन के अलावा आप के कोई औलाद न थी, (और बाज़ो ने कहा के आप की साहबज़ादी का नाम हनीफा था ये सही नहीं है इसलिए के आप के सिर्फ एक बेटे के सिवा कोई औलाद नहीं थी) वो आप की कुन्नियत अबू हनीफा की मन्दर्जा ज़ेल तौजीहात (वजाह) बयान करते हैं:
“हनीफा” हनीफ का तानीस है जिस के माने हैं, इबादत करने वाला और दीन की तरफ रागिब होने वाला,
आप का हल्काए दरस बहुत बड़ा था और आप के शागिर्द क़लम दवात रखा करते थे, चूंकि अहले इराक दवात को हनीफा कहते हैं, इस लिए आप को “अबू हनीफा” कहा गया यानि दावत वाले,
आप की कुन्नियत वज़ई माने के एतिबार से है यानि “अबुल मिल्लता हनीफा” क़ुरआन मजीद में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने मुसलमानों से फ़रमाया है, ” فَاتَّبِعُوْا مِلَّةَ اِبْرَہِیْمَ حَنِیْفَا “ (सूरह आले इमरान आयत नंबर 55,) इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु ने इसी निस्बत से अपनी कुन्नियत “अबू हनीफा”इख़्तियार की, और इस का मफ़हूम है “बातिल अदयान को छोड़ कर दीने हक़ इख़्तियार करने वाला” (अल खैरातुल हिसान सफ़ा नंबर 71)
इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु का ज़िक्र इसी कुन्नियत के साथ “तौरेत” में आया है,
शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिसे देहलवी रहिमाहुल्लाह फरमाते हैं, बाज़ उलमा ने बयान किया है के हज़रत कअब बिन अहबार रदियल्लाहु अन्हु से मरवी है के अल्लाह पाक ने जो “तौरेत” हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम पर नाज़िल फ़रमाई उस में हमें ये बात मिलती है के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने फ़रमाया “रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्मत में एक नूर होगा जिस की कुन्नियत अबू हनीफा होगी” इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु के लक़ब सिराजुल उम्माह से इस की ताईद होती है,

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आप के फ़ज़ाइल व रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की बशारत :- अल्लामा मौफिक़ बिन अहमद मक्की रहिमाहुल्लाह रिवायत करते हैं के हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु से मरवी है के रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:
“मेरी उम्मत में एक मर्द पैदा होगा जिस का नाम अबू हनीफा होगा, वो क़यामत में मेरी उम्मत का चिराग है”
आप ने ये रिवायत भी तहरीर की है के हज़रत जिब्राइल अलैहिस्सलाम रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में हाज़िर हुए और अर्ज़ की या रसूलल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम हज़रत लुक़मान के पास हिकमत का इतना बड़ा ज़खीरा था के अगर वो अपने खिरमने हिकमत से एक दाना बयान फरमाते तो पूरी दुनिया की हिकमते आप के सामने दस्त बस्ता खड़ी होतीं, ये सुन कर हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम को ख्याल आया के काश मेरी उम्मत में कोई ऐसा शख्स होता जो हज़रते लुक़मान की हिकमत का सरमाया होता,
हज़रत जिब्राइल अलैहिस्सलाम दोबारा हाज़िर हुए और अर्ज़ की या रसूलल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम आप की उम्मत में एक ऐसा मर्द होगा जो हिकमत के ख़ज़ाने से हज़ारों हिकमतें बयान करेगा और आप की उम्मत को आप के एहकाम से आगाह (ख़बरदार) करेगा, रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ये सुन कर हज़रते अनस रदियल्लाहु अन्हु को अपने पास बुलाया और उनके मूँह में अपना लुआबे दहन इनायत फ़रमाया और वसीयत की के अबू हनीफा के मूँह में ये अमानत डालना, रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की ये अमानत यानि लुआबे दहन इमामे आज़म को हज़रते अनस रदियल्लाहु अन्हु के ज़रिए मिला,
हज़रते अनस रदियल्लाहु अन्हु से मरवी है के रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया मेरी उम्मत में ऐसा शख्स पैदा होगा जिसे नोमान कहा जाएगा और उस की कुन्नियत अबू हनीफा होगी, वो अल्लाह तआला के दीन और मेरी सुन्नत को ज़िंदा करेगा,
इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के वो मक़बूल बन्दे हैं जिन की पैदाइश से पहले रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सत्तर 70, साल पहले बशारत सुनाई,
इमाम जलालुद्दीन सीयूती शाफ़ई रहिमाहुल्लाह फरमाते हैं, रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक हदीस में इमाम मालिक रदियल्लाहु अन्हु के लिए ये बशारत दी एक ज़माना आएगा के लोग ऊंटों पर सवार हो कर इल्म की तलाश में निकलेगें मगर मदीना शरीफ के एक आलिम से बढ़ कर किसी को न पाएंगें,
और एक हदीस में इमाम शाफ़ई रहिमाहुल्लाह के लिए ये बशारत दी के “क़ुरैश को बुरा न कहो क्यूंकि उनमे का एक आलिम ज़मीन को इल्म से भर देगा”
और में कहता हूँ रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु के लिए इस हदीस में बशर्त दी है, हाफ़िज़ अबू नोएम ने “हिलयतुल औलिया” में हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत की है, के रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया अगर इल्म सुरय्या के पास हो तो फ़ारस के जवान मरदों में से एक मर्द ज़रूर उस तक पहुंच जाएगा,
और हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु की वो हदीस है जो (सही बुखारी व मुस्लिम) में इस तरह है “अगर ईमान सुरय्या के पास हो तो कुछ लोग उस को ज़रूर हासिल कर लेगें”
और सही मुस्लिम की एक रिवायत के अल्फ़ाज़ इस तरह हैं: अगर ईमान सुरय्या के पास हो तो मरदाने फारस में से एक शख्स उस तक पहुंच जाएगा और उस को हासिल कर लेगा,
नीज़ मुअजम कबीर: में हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदियल्लाहु अन्हु से मरवी है के रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया अगर दीन आसमान के पास हो तो यक़ीनन फारस के कुछ लोग उसे ज़रूर हासिल कर लेंगें,
सही बुख़ारीओ मुस्लिम में:
हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु से मरवी है के रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सूरह जुमा की आयत “व आखिरीना मिन्हुम लम्मा यलहकू” तिलावत फ़रमाई तो किसी ने दरयाफ्त किया “आक़ा” ये दूसरे लोग कौन हैं जो अभी तक हम से नहीं मिले? आप जवाब में खामोश रहे, जब बार बार सवाल किया गया तो आप ने हज़रत सलमान फ़ारसी रदियल्लाहु अन्हु के कंधे पर अपना मुबारक हाथ रख कर फ़रमाया “अगर ईमान सुरय्या के पास भी होगा तो उस की क़ौम के लोग उस को ज़रूर हासिल कर लेंगे”
अल्लामा जलालुद्दीन सीयूती और दूसरे अइम्मए मुहद्दिसीन रहीमाहुमुल्लाहू तआला ने बुखारी व मुस्लिम की इन हदीस से इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु ही को मुराद लिया है क्यूंकि फारस के इलाके से कोई एक शख्स भी इमामे आज़म जैसे इल्मों फ़ज़ल का हामिल न हुआ और न ही किसी को आप जैसा बुलंद मक़ाम नसीब हुआ, ये बात भी तवज्जुह के लाइक है के इमाम जलालुद्दीन सीयूती, इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु के मुक़ल्लिद नहीं बल्के इमाम शाफ़ई के मुक़ल्लिद हैं, नीज़ हाफ़िज़ इबने हजर हैतमी मक्की भी हनफ़ी नहीं बल्के इमाम शाफ़ई के मुक़ल्लिद हैं, और इन दोनों बुज़ुर्गों ने इमामे आज़म की फ़ज़ीलत पर तरतीब के साथ किताबें लिखीं “तबीज़ुस सहीफ़ा” और अल खैरातुल हिसान” और बुखारी व मुस्लिम की मज़कूरा हदीस का मिस्दाक़ “इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु ही को क़रार दिया”
अल्लामा इबने हजर मक्की शाफ़ई रहिमाहुल्लाह फरमाते हैं इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु की शान में रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के इस इरशाद से भी इस्तदलाल हो सकता है के “दुनिया की ज़ीनत सन 150, हिजरी में उठाली जाएगी” इस हदीस की शरह में शमशुल अइम्मा इमाम करदारी रहिमाहुल्लाह ने फ़रमाया के ये हदीस इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु पर सादिक़ आती है क्यूंकि आप का ही इन्तिकाल इस सन में हुआ,

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इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु “ताबई” हैं :- अल्लामा इबने हजर मक्की शाफ़ई रहिमाहुल्लाह फरमाते हैं अल्लामा ज़हबी से मन्क़ूल सही रिवायत से साबित है के इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु ने बचपन में हज़रत अनस बिन मालिक रदियल्लाहु अन्हु का दीदार किया था, एक और रिवायत में है के इमामे आज़म ने फ़रमाया “मेने कई बार हज़रत अनस बिन मालिक रदियल्लाहु अन्हु की ज़्यारत की, वो सुर्ख ख़िज़ाब लगाते थे, अक्सर मुहद्दिसीन का इत्तिफ़ाक़ है के ताबई वो है जिस ने किसी सहाबी का दीदार किया हो,
हज़रत अनस रदियल्लाहु अन्हु का विसाल 95, हिजरी में और एक क़ौल के मुताबिक़ 93, हिजरी में हुआ,
इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु के ताबई होने के मुतअल्लिक़ जब शैखुल इस्लाम हाफ़िज़ इबने हजर शाफ़ई रहिमाहुल्लाह से पुछा गया तो उन्होंने ये जवाब दिया,
इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु ने सहाबए किराम की एक जमाअत को पाया है आप की पैदाइश एक रिवायत के मुताबिक 80, हिजरी में कूफ़ा में हुई वहां उस वक़्त सहाबए किराम में से सय्यदना अब्दुल्लाह बिन अबी ओफा मौजूद थे, उनका विसाल 88, हिजरी में या उस के बाद हुआ, उसी ज़माने में बसरा में सय्यदना अनस बिन मालिक थे, उनका का इन्तिकाल 90, हिजरी में या उस के बाद हुआ, इबने सअद ने मज़बूत सनद के साथ बयान किया है के इमामे आज़म अबू हनीफा ने हज़रते अनस को देखा है इन दोनों सहबियों के अलावा भी बकसरत सहाबए किराम मुख्तलिफ शहरों में उन के बाद ज़िंदा मौजूद थे रदियल्लाहु अन्हुम,
बिला शुबा बाज़ उलमा ने इमामे आज़म की सहाबए किराम से मारवियात के बारे में रिसाले तसनीफ़ किए हैं, लेकिन उनकी इसनाद ज़ोअफ़ से खली नहीं मेरे नज़दीक मुस्तनद बात ये है के इमामे आज़म ने बाज़ सहाबए किराम को देखा और उन से मुलाकात की जैसा के मज़कूर हुआ ये बात इबने सअद ने भी कही है, इससे साबित हुआ के “इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु ताबईन के तबके में से हैं” और ये बात बिलादे इस्लामिया में उन के हम अस्र किसी इमाम के लिए साबित नहीं ख़्वाह मुल्के शाम में “इमाम ओज़ई” हों या बसरा में “हम्मा दीन” हों या कूफ़ा में “इमाम सुफियान सौरी” हों या मदीना में “इमाम मालिक” हों या मिस्र में “लैस बिन सअद” हों,
अल्लामा जलालुद्दीन सीयूती रहिमाहुल्लाह फरमाते के इमाम अबू मोआशर तबरी शाफ़ई रहिमाहुल्लाह ने एक रिसाले में सहाबए किराम से इमामे आज़म की मरवी अहादीस बयान की हैं और फ़रमाया है के इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु ने रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के उन सात सहाबए किराम से मुलाक़ात की है, (1) सय्यदना अनस बिन मालिक (2) सय्यदना अब्दुल्लाह बिन हारिस बिन जुज़ (3) सय्यदना जाबिर बिन अब्दुल्लाह (4) सय्यदना मआकल बिन यसार (5) सय्यदना वासला बिनुल असकआ (6) सय्यदना अब्दुल्लाह बिन उनैस (7) सय्यदह आएशा बिन्ते अजरिद रदियल्लाहु तआला अन्हुम अजमईन, इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु:
ने सय्यदना अनस से तीन हदीसें, सय्यदना वासला से दो हदीसें जबकि सय्यदना जाबिर सय्यदना अब्दुल्लाह बिन उनैस सय्यदह आएशा बिन्ते अजरिद और सय्यदना अब्दुल्लाह बिन जुज़ एक एक हदीस रिवायत फ़रमाई है आप ने अब्दुल्लाह बिन अबी ओफा से भी एक हदीस रिवायत फ़रमाई है और ये तमाम अहादीस इन तरीकों के सिवा भी वारिद हुई हैं,
सात सहाबए किराम से अहादीस रिवायत करने का ज़िक्र खुद इमामे आज़म ने भी किया है आप फरमाते हैं,
में रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के सात सहाबए किराम से मिला हूँ और मेने उन से अहादीस सुनी हैं,
इन दलाइल से साबित हुआ के इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु को सात सहाबए किराम से बराहे रास्त अहादीस सुनने का शरफ़ हासिल है,
“दुर्रे मुख्तार” में है के इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु ने बीस 20, सहाबए किराम का दीदार किया है “खुलासए अकमाल फी अस्समाउर रिजाल” में है के “आप ने छब्बीस 26, सहाबए किराम को देखा है”
ये बात भी क़ाबिले गौर है के इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु ने अपनी उमर में “पचपन 55, हज” किए हैं,
हुज़ूर सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के मशहूर सहाबी हज़रत अबुल तुफैल आमिर बिन वासला रदियल्लाहु अन्हु जिन का विसाल 102, हिजरी में या दूसरी रिवायत के मुताबिक 110, हिजरी में मक्का शरीफ में हुआ जब के इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु ने पहला हज इमाम अबू युसूफ रहिमाहुल्लाह की मशहूर रिवायत के मुताबिक सोला 16, साल की उमर में 93, हिजरी में और अल्लामा कोसरि मिसरी रहिमाहुल्लाह की तहक़ीक़ के मुताबिक 87, हिजरी में किया,
अगर हम आप का सने विलादत 77, हिजरी मान लें तो इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु ने हज़रत आमिर बिन वासला की हयात (ज़िन्दगी) में दस हज किए और दूसरी रिवायत के मुताबिक अगर उन का सने विसाल 110, हिजरी माने तो अठ्ठारा 18, हज किए,
अगर हम उन सहाबी की मिसाल लें जिन की ज़्यारत व मुलाक़ात से ताबई होने का शरफ़ मिल रहा हो और इस सआदत का हुसूल मुश्किल भी न हो तो फिर ये कैसे मुमकिन है के इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु दस या अठ्ठारा 18, बार कूफ़ा से हज के लिए मक्का तशरीफ़ लाए हों और एक बार भी हज़रत आमिर बिन वासला रदियल्लाहु अन्हु की ज़्यारत की सआदत हासिल न की हो जब के उस ज़माने में सहाबा की ज़्यारत के लिए लोग दूसरे शहरों का सफर किया करते थे,
इस के अलावा ये बात भी साबित हो चुकी 77, हिजरी की पैदाइश के लिहाज़ से आप की उमर के पन्द्रवीं साल तक हज़रत अमर बिन हरीस रदियल्लाहु अन्हु आप का विसाला 85, हिजरी में हुआ और आप की उमर के दसवीं साल तक जब के 70, हिजरी की पैदाइश के लिहाज़ से सत्तरवीं साल तक हज़रते अब्दुल्लाह बिन अबी ओफा रदियल्लाहु अन्हु और आप का विसाल 87, हिजरी में हुआ आप कूफ़ा शहर में ही मौजूद थे,
चुनाचे उस ज़माने के दस्तूर के मुताबिक आप के घर वाले आप को उन सहाबए किराम की बरकत की दुआ हासिल करने के लिए उनकी बारगाह में ले गए होंगें,
आप के शरफ़े ताबईयत होने के लिए इतना ही काफी है लेकिन ये हकीकत भी साबित शुदा है आप ने न सिर्फ मुतअद्दिद सहाबए किराम की ज़्यारत की बल्कि उन से अहादीस भी रिवायत कीं, जैसा की इमाम जलालुद्दीन शाफ़ई, इमाम हजर मक्की शाफ़ई, और अल्लामा अलाउद्दीन हस्कफी रहिमाहुल्लाह तआला ने तहरीर फ़रमाया है,
खुलासा ये है के सय्यदना इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु “ताबई” हैं, और इन अहादीसे रसूल के मिस्दाक़ हैं,
मेरी उम्मत में सब से बेहतर मेरे ज़माने वाले हैं फिर वो जो उन के बाद हैं, (बुखारी व मुस्लिम)
उस मुस्लमान को आग नहीं छूएगी जिस ने मुझे देखा या मेरे देखने वाले को देखा, (मिश्कात, तिरमिज़ी)

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इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु का इल्मे दीन हासिल करना :- इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु शुरू की तालीम हासिल करने के बाद तिजारत की तरफ मुतावज्जेह हो गए और एक कामयाब ताजिर (बिजनिस मैन) की हैसियत से मशहूर हुए, लेकिन फिर आप के दिल में और ज़्यादा इल्मे दीन हासिल करने का शोक पैदा हुआ,
आप इसे खुद बयान करते हुए फरमाते हैं,
में एक दिन बाज़ार जा रहा था के कूफ़ा के मशहूर हज़रत इमाम शोआबी रहिमाहुल्लाह से मुलाकात हो गई, उन्होंने मुझ से कहा बेटा क्या काम करते हो? मेने कहा बाज़ार में कारोबार करता हूँ,
आप ने फ़रमाया तुम उलमा की मजलिस में बैठा करो मुझे तुम्हारी पेशानी पर इल्मों फ़ज़ल और दानिश मंदी के आसार नज़र आ रहे हैं, इन के इस इरशाद ने मुझे बहुत मुतअस्सिर किया और मेने इल्मे दीन के हुसूल का रास्ता इख़्तियार किया, (मनाक़िबुल इमामे आज़म)
इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु ने इल्मे कलाम का गहरा मुतालआ कर के इस में कमाल हासिल किया और और एक अरसा तक इस इल्म के ज़रिए बहसों मुनाज़िरा में मशगूल रहे फिर उन्हें इल्हाम हुआ के सहाबा और ताबाईने किराम ऐसा न करते थे हालांकि वो इल्मे कलाम के ज़्यादा जानने वाले थे, वो शरई और फ़िक़्ही मसाइल के हुसूल और उनकी तालीम में मशगूल रहते थे चुनाचे आप की तवज्जुह मुनाज़िरों से हटने लगी यहाँ कलाम से मुराद आज का मौजूदा इल्मे कलाम नहीं बल्के उस अहिद में मज़हबी बुनियादी इख़्तिलाफ़त पर क़ुरआन व हदीस से सही मौक़िफ़ की हिमायत और गलत नज़रिए की तरदीद है,
आप के इस ख्याल को मज़ीद तक़वियत यूं हुई के आप हज़रत इमाम हम्माद रहिमाहुल्लाह के हल्काए दरस के क़रीब रहते थे के आप के पास एक औरत आयी और उसने पूछा के एक शख्स ने अपनी बीवी को सुन्नत के मुताबिक तलाक देना चाहता है वो क्या तरीक़ा इख़्तियार करे? आप ने उसे हज़रत इमाम हम्माद रहिमाहुल्लाह की खिदमत में भेज दिया और फ़रमाया के वो जो भी जवाब दें मुझे बताकर जाना,
हज़रत इमाम हम्माद रहिमाहुल्लाह ने फ़रमाया वो शख्स औरत को उस तुहर में तलाक दे जिस में जिमा न किया हो और फिर उससे अलेहदा रहे यहाँ तक के तीन हैज़ गुज़र जाएं तीसरे हैज़ पर वो इख़्तिताम पर वो औरत ग़ुस्ल करेगी और निकाह के लिए आज़ाद होगी, ये जवाब सुन कर इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु उसी वक़्त उठे और हज़रत इमाम हम्माद रहिमाहुल्लाह के हल्काए दरस में शरीक हो गए,
इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु खुद फरमाते हैं के गुफ्तुगू अक्सर याद कर लिया करता और मुझे उन के अस्बाक मुकम्मल तौर पर हिफ़्ज़ हो जाते आप के शागिर्द जब कोई मस्ला बयान करते तो में उनकी गलतियों की निशानदही करता चुनाचे उस्तादे मुहतरम हज़रत इमाम हम्माद रहिमाहुल्लाह ने मेरी ज़हानत और लगन को देख कर फ़रमाया “अबू हनीफा पहली सफ में मेरे सामने बैठा करे इस दरियाए इल्म से सैराब होने का ये सिलसिला दस साल तक जारी रहा,
इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु ने इल्मे हदीस की तहसील का आगाज़ भी कूफ़ा ही से किया और उस वक़्त कूफ़ा में मौजूद तिरानवे 93, मशाइख से अहादीस लीं,
और इन मुहद्दिसीन में एक बड़ी तादाद ताबईन की थी कूफ़ा के अलावा इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु ने बसरा के भी तमाम मुहद्दिसीन से अहादीस हासिल कीं,
आप ने इन दोनों मरकज़ से “हज़ारों हज़ार” अहादीस हासिल कीं,
शरह बुखारी फरमाते हैं: मगर इमामे आज़म होने के लिए अभी बहुत कुछ ज़रुरत थी, ये कमी हरमैन शरीफ़ैन से पूरी हुई,
पहला सफर इमामे आज़म ने 96, हिजरी में किया था, “और आप ने उमर में 55, हज किए” 150, हिजरी में विसाल हुआ, तो इससे साबित हुआ के 96, हिजरी के बाद किसी साल हज नागा न हुआ,
इसी अहिद में “हज़रत अता बिन रबाह रदियल्लाहु अन्हु” मक्का मुअज़्ज़मा में मुहद्दिसीन के सरताज थे,
“और ये ताबई हैं दो सौ 200, सहाबए किराम की सुहबत का इनको शरफ़ हासिल है”
ख़ुसूसन हज़रत इबने अब्बास, इबने उमर, उसामा, जाबिर, ज़ैद बिन अरक़म, अब्दुल्लाह बिन साइब, अक़ील बिन राफे, अबू दरदा, हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हुम अजमईन से भी अहादीस सुनी हैं, ये मुहद्दिस होने के साथ साथ बहुत अज़ीम मुजतहिद भी थे, हज़रत अब्दुल्लाह इबने उमर फरमाते थे के “हज़रत अता बिन रबाह रदियल्लाहु अन्हु” के होते हुए लोग मेरे पास क्यों आते हैं, हज के दिनों में हुकूमत की तरफ से एलाने आम हो जाता था के अता के अलावा और कोई फतवा न दे,
बड़े बड़े मुहद्दिसीन इमाम ओज़ई, इमाम ज़हरी, इमाम अमर बिन दीनार उन्ही के शागिर्दी खास थे, इमामे आज़म अबू हनीफा जब इन की शागिर्दी के लिए हाज़िर हुए तो हज़रत अता ने उन का अक़ीदा पूछा इमामे आज़म ने कहा में अस्लाफ को बुरा नहीं कहता, गुनहगार को काफिर नहीं कहता ईमान बिल क़द्र रखता हूँ,
इस के बाद हज़रत अता ने आप को हल्काए दरस में दाखिल किया, दिन बदिन इमामे आज़म अबू हनीफा की ज़कावत (तेज़्फ़ेहमी) फतानत रौशन होती गई जिससे “हज़रत अता” इन को क़रीब से क़रीब करते रहे यहाँ तक के अता दूसरों को हटा कर इमामे आज़म अबू हनीफा को अपने पहलू में बिठाते थे,
हज़रत इमामे आज़म अबू हनीफा जब मक्का शरीफ हाज़िर होते तो ज़्यादातर हज़रत अता की खिदमत में हाज़िर रहते उन का विसाल 115, हिजरी में हुआ, तो साबित हुआ के तक़रीबन बाईस 22, साल उन से इस्तिफ़ादा (फाइदा) फ़ैज़ा बरकत हासिल करते रहे,
मक्का शरीफ में हज़रत इमामे आज़म अबू हनीफा ने एक और वक़्त के इमाम “हज़रत इकरमा” से भी उलूम को हासिल किया, इकरमा को कौन नहीं जानता ये हज़रत अली, अबू हुरैरा, इबने उमर, उक़्बा बिन अमर, सफ़वान, जाबिर, अबू क़तादा, इबने अब्बास रिदवानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन के शागिर्द हैं, तकरीबन 70, मशहूर ताबईन तफ़्सीरो हदीस में इन के शागिर्द हैं, (नुज़हतुल कारी जिल्द अव्वल पेज नंबर 121)

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“इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु के उस्ताद और आप का चार हज़ार मशाइख से अहादीस लेना”

इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु का इल्मे हदीस में मक़ामो मर्तबा इसी से मुतअय्यन हो जाता है :- के “आप ने चार हज़ार मशाइख से अहादीस ली हैं” और उनमे से तीन सौ ताबई थे जिन में बड़े बड़े मुहद्दिसीन व अइम्मए किराम सिरे फहरिस्त हैं, इमामे आज़म के उस्तादों में हज़रत सय्यदना इमाम मुहम्मद बाक़र रदियल्लाहु अन्हु भी हैं इमामे आज़म का आप से मुलाकात का दिलचस्प वाक़िया बाज़बान शरह बुखारी मुलाहिज़ा करें:
एक बार मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्ल्लाहु शरफऊं व ताज़ीमा की हाज़री में जब हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़र रदियल्लाहु अन्हु की खिदमत में हाज़िर हुए तो उन के एक साथी ने तआरुफ़ कराया के ये “अबू हनीफा” हैं, हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़र रदियल्लाहु अन्हु ने “इमामे आज़म” से कहा वो तुम ही हो जो क़यास से मेरे जद्दे करीम की अहादीस रद्द करते हो, इमामे आज़म ने अर्ज़ किया मआज़ अल्लाह हदीस को कौन रद्द कर सकता है हुज़ूर कुछ इजाज़त दें तो अर्ज़ करूँ इजाज़त के बाद इमामे आज़म ने अर्ज़ किया हुज़ूर मर्द ज़ईफ़ है या औरत? इरशाद फ़रमाया औरत, अर्ज़ किया, वरासत में मर्द का हिस्सा ज़्यादा है या औरत का? फ़रमाया मर्द का, अर्ज़ किया, नमाज़ अफ़ज़ल है के रोज़ा?
इरशाद फ़रमाया नमाज़, अर्ज़ किया क़यास ये चाहता है के जब नमाज़ रोज़े से अफ़ज़ल है तो हाइज़ा पर नमाज़ की क़ज़ा बदरजए ओला होनी चाहिए अगर अहादीस के खिलाफ क़यास से हुक्म करता तो ये हुक्म देता के हाइज़ा नमाज़ की क़ज़ा ज़रूर करे इस बात पर इमाम मुहम्मद बाक़र रदियल्लाहु अन्हु इतना खुश हुए के उठ कर उनकी पेशानी चूमली,
हज़रत इमामे आज़म अबू हनीफा ने एक मुद्दत तक इमाम मुहम्मद बाक़र रदियल्लाहु अन्हु ने की खिदमत में हाज़िर रह कर इल्मे फ़िक़हा व इल्मे हदीस की तालीम हासिल की, इसी तरह इमाम मुहम्मद बाक़र रदियल्लाहु अन्हु ने के साहबज़ादे “इमाम जफ़र सादिक़” से भी फैज़ पाया,
“हज़रत सय्यदना इमाम जफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु भी आप के उस्ताद हैं”
बल्के उन से आप ने शरीअत व तरीक़त दोनों उलूम हासिल किए, आप बेहद मुतक़्क़ी और मुस्तजाबुद दावात थे, आप की ये आदत थी के आप कभी बिला वुज़ू हदीस रिवायत नहीं करते,
उलमा ने फ़रमाया है के जिस तरह दाऊद ताई रहिमाहुल्लाह तरीक़त में हज़रत हबीब अजमी रहिमाहुल्लाह के मजाज़ और खलीफा हैं इसी तरह आप इमामे आज़म अबू हनीफा के भी मजाज़ और खलीफा हैं, और इसी तरह इमामे आज़म अबू हनीफा भी तरीक़त में इमाम जफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु के मजाज़ और खलीफा हैं, आप ने सुलूक व तरीक़त के मराहिल इमाम जफ़र सादिक़ रदियल्लाहु अन्हु से दो साल में तय किए हैं फिर फ़रमाया है:
अगर ये दो साल न होते तो नोमान हलाक हो जाता, शरीअत व तरीक़त कामिल होने के बाद इमामे आज़म अबू हनीफा ने गोशा नशिनी होने का इरादा फ़रमाया लेकिन एक दिन फिर आप का नसीब जागा और सरकारे दो आलम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़्यारत नसीब हुई रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आप को गोशा नशिनी को छोड़ने का हुक्म दिया:
चुनाचे हज़रत दाता गंज बख्श अली हजवेरी रहिमाहुल्लाह फरमाते हैं शुरू में इमामे आज़म ने गोशा नशीन होने का इरादा फ़रमाया था के दूसरी बार फिर इमामे आज़म रहिमाहुल्लाह रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़्यारत से मुशर्रफ हुए नूरे मुजस्सम रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ए अबू हनीफा तेरी ज़िन्दगी अहयाए सुन्नत यानि सन्नातों को ज़िंदा करने के लिए है तो आप ने गोशा नाशिनी छोड़ दीे, रसूले करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये फरमान सुन्कर आप ने गोशा नाशिनी छोड़ दी,
आग़ाज़े तदरीस:
इस तरह इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने अहयाए सुन्नत और हिदायत उम्मत की तरफ मुतावज्जेह हुए और अपने उस्ताद “हज़रत इमाम हम्माद रहिमाहुल्लाह” के विसाल के बाद आप मसनदे इल्मों फ़ज़ल पर जलवा अफ़रोज़ हुए, इमाम मौफिक़ बिन अहमद मक्की तहरीर फरमाते हैं: जब आप के उस्ताद इमाम हम्माद रहिमाहुल्लाह का विसाल हुआ तो लोगों ने उनके बेटे से इस्तिदा (दरख्वास्त, गुज़ारिश) की के वो अपने वालिद की मसनद पर तशरीफ़ लाएं मगर वो इस अज़ीम ज़िम्मेदारी के लिए राज़ी न हुए,
आखिर कार इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु की खिदमत में गुज़ारिश की गई तो आप ने फ़रमाया में नहीं चाहता के इल्म मिट जाए और हम देखते रह जाएं, चुनाचे आप अपने उस्तादे मुहतरम की मंस्दन पर बैठे, अहले इल्म का एक बड़ा हल्का आप के पास जमा होने लगा, आप ने अपने शागिर्दों के लिए इल्मों फ़ज़ल के दरवाज़े खोल दिए, मुहब्बत व शफ़क़त के दामन फैला दिए एहसानो कर्म की मिसालें काइम करदीं और अपने शागिर्दों को इस तरह ज़ेवरे इल्म से आरास्ता किया के ये लोग मुस्तक़बिल यानि आने वाले ज़माने में आसमाने इल्मों फ़ज़ल के आफ़ताबो महताब सूरज बन कर चमकते रहे, (मनाक़िबुल इमामे आज़म सफा नंबर 95,)
इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु ने मैदाने तदरीस संभालने के बाद इल्मों फ़ज़ल के ऐसे दरिया नायाब व नादिर गोहर लुटाए के ज़माना आज भी इससे सर शार हो रहा है इतने लोगों ने आप की बारगाहे इल्मों फैज़ में ज़ानूए अदब तय किया है जिनके शुमार को उलमा ने नामुमकिन क़रार दिया है,
चुनाचे अल्लामा इबने हजर मक्की रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं:
जिन हज़रात ने इमामे आज़म से इल्मे हदीस व फ़िक़हा हासिल किया उनका शुमार नामुमकिन है बाज़ अइम्मा का क़ौल है के किसी के इतने असहाब और शागिर्द नहीं हुए जिनते के इमामे आज़म के हुए और उलमा और अवाम को किसी से इस क़द्र फैज़ न पंहुचा जितना इमामे आज़म और उनके असहाब से मुश्तबा अहादीस की तफ़्सीर, अखज़ करदा मसाइल, जदीद पेश आने वाले मसाइल और क़ज़ा व एहकाम में फाइदा पंहुचा, खुदा उन हज़रात को जज़ाए खेर दे,
बाज़ मुतअख़्ख़िरीन मुहद्दिसीन ने इमामे आज़म के तज़किरे में उन के शागिर्दों की तादाद तक़रीबन आठ सौ 800, लिखी है और उन के नाम व नसब भी लिखे हैं,
हाफ़िज़ अबुल मुहासिन शाफ़ई रहिमाहुल्लाह ने 918, लोगों के नाम व नसब लिखे हैं जो इमामे आज़म के हल्काए दरस से फ़ैज़याब हुए, इमामे आज़म के शागिर्दों में मुहद्दिस फ़क़ीह, मुफ़्ती क़ाज़ी, हत्ता के मुजतहिद भी मौजूद हैं,
चुनाचे “हज़रत इमाम अबू युसूफ, इमाम मुहम्मद और इमाम ज़ुफर रदियल्लाहु तआला अन्हुम अजमईन दरजए इज्तिहाद पर फ़ाइज़ हैं” एक मोके पर इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु ने अपने खास शागिर्दों के मुतअल्लिक़ फ़रमाया: ये मेरे 36, असहाब हैं जिन में से 28, क़ाज़ी बनने की पूरी एहलियत है और 6, अफ़राद में फतवा देने की सलाहीयत है जब के मेरे दो शागिर्द हज़रत इमाम अबू युसूफ हज़रत इमाम ज़ुफर ये सलाहीयत रखते हैं के क़ाज़ियों और मुफ्तियों को मुहज़्ज़ब और मोअद्दब बनाए, (हयाते इमाम अबू हनीफा सफा नंबर 351)

मआख़िज़ व मराजे (रेफरेन्स) :- अल खैरातुल हिसान, तबीज़ुस सहीफ़ा फी मनाक़िबुल इमाम अबी हनीफा, इमामे आज़म रदियल्लाहु अन्हु, सवानेह इमामे आज़म अबू हनीफा, इमामुल अइम्मा अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु, इमामे आज़म हज़रत मुजद्दिदे अल्फिसानी की नज़र में, इमामे आज़म और इल्मे हदीस, शाने इमामे आज़म रहमतुल्लाह अलैह, सवानेह बे बहाए इमामे आज़म अबू हनीफा, अनवारे इमामे आज़म अबू हनीफा रदियल्लाहु अन्हु, हयाते इमाम अबू हनीफा, तज़किरातुल औलिया, ख़ज़ीनतुल असफिया, बुज़ुरगों के अक़ीदे, मिरातुल असरार, मनाक़िबुल इमामे आज़म,

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