बेहरे शिब्ली शेरे हक़ दुनिया के कुत्तों से बचा एक का रख अब्दे वाहिद बेरिया के वास्ते

आपकी विलादत बा सआदत :- आपकी विलादत बा सआदत दो सो सैंतालीस (247) हिजरी मुताबिक़ आठ सो इकसठ (861) ईस्वी में बामक़ाम सामराह बग़दाद में हुई |

आपका इस्म नामे मुबारक व कुन्नियत :- आपका नामे नामी इसमें गिरामी “ज़ाफर” है और कुन्नियत “अबू बक़र” है और आपके नाम के सिलसिले में एक क़ौल ये है के आपका नाम इस तरह है “दुलफ़ बिन ज़ाफर और दुलफ़ बिन हजदर है” मगर आप के मज़ारे मुबारक पर आपका नाम “ज़ाफर बिन यूनुस लिखा हुआ है” और आपका लक़ब मुजद्दिद था | और आप शैख़ शिब्ली के नाम से मशहूर हैं |

आप को शैख़ शिब्ली क्यों कहा जाता है? :- आपको शिब्ली इस वजह से कहते हैं के आप “शिब्ला या शबीला” गांव के रहने वाले थे |

आप तीस साल तक इल्मे दीन हासिल करते रहे :- आप खुद इरशाद फरमाते हैं के में तीस साल तक इल्मे फ़िक़्हा व हदीस पढ़ा यहाँ तक के इल्मे दीन हासिल करते करते इल्म का दरिया मेरे सीने में मोजीज़न (मोजेमारना हासिल करना) हो गया | फिर में तरीक़त के उस्तादों की खिदमत में गया और उन से कहा के मुझे इल्मे इलाही की तालीम दो? मगर कोई शख्स भी न जनता था बल्कि उन्होंने कहा के किसी चीज़ का निशान किसी चीज़ से मिलता है | लेकिन ग़ैब का कोई निशान नहीं होता | में उसकी बात सुनकर हैरान रह गया और कहा के आप लोग तो खुद अँधेरी रात में हैं और अल्हम्दु लिल्लाह में सुबहे रौशन में हूँ | फिर मेने अल्लाह पाक का शुक्र अदा किया और अपनी विलायत को एक चोर के सुपुर्द किया यहाँ तक के जो कुछ उसने मेरे साथ वो किया | |

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आप इमाम मालिक के मुकल्लिद थे :- आप अइम्मा अरबा में से हज़रत इमाम मालिक रहमतुल्लाह अलैह के मुकल्लिद थे और आपको हज़रत इमाम मालिक रहमतुल्लाह अलैह की किताब “मुअत्ता इमाम मालिक” आप को ज़बानी याद थी |

आप के फ़ज़ाइलो कमालात :- साहिबे इल्मो हाल उलूमे ज़ाहिरी व बातिनी, वाक़िफ़े रुमूज़े ख़फीओ जली हज़रत शैख़ अबू बक़र शैख़ शिब्ली बगदादी रहमतुल्लाह अलैह “आप सिलसिलाए आलिया क़दीरिया रज़विया के बारवें 12, इमाम व शैख़े तरीक़त हैं”

बैअत व खिलाफत :- आप मुरीद व खलीफा सय्यादुत ताइफ़ा हज़रत सय्यदना जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु के हैं | इबादत व मुजाहिदात व मुकाशिफ़ात में आपका मक़्क़ाम बहुत ही बुलंद है और आपके निकात व इबादत रुमूज़ो इशारात व रियाज़त व करामात एहाताए तहरीर से बाहर हैं जितने भी मशाइख आपके ज़माने में थे आपने उनकी ज़ियारत की और उनकी सुहबत में रहे आपने इल्मे तरीक़त को बहुत दर्जे का कमाल हासिल किया | जैसा के आपकी ज़बान से ऐसे असरार व रुमूज़ का इज़हाए होने लगा वो सब को मालूम है सुन लो के बादशाह हकिमुल हकिमीन ने मुझे अपनी दोस्ती व मारफ़त की खिलअत अता फ़रमाई | वो इस बात को पसंद करेगा के उसकी दी हुई खिलअत को मख्लूक़ की खिलअत से नापाक कर दूँ? आप ये कह कर बाहर निकल आए और ईमारत को खैर बाद कह दिया और हज़रत खैर नस्साज की मजलिस में आकर तौबा की |

शैख़े तरीक़त की बारगाह में आपकी हाज़री :- हज़रत खैर नस्साज रहमतुल्लाह अलैह ने आपको सय्यादुत ताइफ़ा हज़रत सय्यदना जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु के पास भेज दिया आप वहां हाज़िर हुए तो फ़रमाया के आशनाई दोस्त के गोहर का निशान आपके पास मिलता है या तो आप मुझे बख्श दें या बेच दें? सय्यादुत ताइफ़ा हज़रत सय्यदना जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु ने इरशाद फ़रमाया के अगर में उसे बेच दूँ तो हरगिज़ उसकी क़ीमत अदा नहीं कर सकोगे और अगर बख्श दूँ तो तुमको मुफ्त माल की कुछ क़द्रो क़ीमत न होगी और तुम उसे ज़ाए कर दोगे हाँ ये हो सकता है जवान मर्दों की तरह अपने सर को क़दम बनाओ और इस दरिया में कूद पड़ो यहाँ तक के सब्र व इन्तिज़ार करो के वो गोहर तुम्हारे हाथ आए? तो आपने फ़रमाया के अब आप ही इरशाद फरमाएं के मुझे करना क्या है? सय्यादुत ताइफ़ा हज़रत सय्यदना जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु ने इरशाद फ़रमाया के एक साल तक गंधक बेचो |
आपने ऐसा ही किया जब एक साल हो गया तो फिर फ़रमाया के जाओ एक साल तक दरियोज़ह गरी करो? (भीक मांगना, फ़क़ीर बनना) आपने ऐसा ही किया और साल भर आपने बग़दाद के तमाम बाज़ारों में दरियोज़ह गरी (भीक मांगना, फ़क़ीर बनना) करते रहे और किसी शख्स ने कुछ नहीं दिया यहाँ तक के पूरी कैफियत अपने शैख़ की बारगाह में अर्ज़ की तो आपके शैख़ ने इरशाद फ़रमाया के शायद तुमने अपनी क़द्रो क़ीमत को समझ लिया होगा के लोगों के नज़दीक तुम्हारी कोई क़द्रो क़ीमत नहीं है इस लिए मख्लूक़ में दिल नहीं लगाना और इस को किसी चीज़ पर भी फ़ौक़ियत मत देना इस के बाद शैख़ ने इरशाद फ़रमाया के तुमने शहर नेहा वंद में अमीरी और हकीमी के फ़राइज़ को अंजाम दिया है | इस लिए जाओ और नेहा वंद वालों से माफ़ी मांगों | आपने अपने शैख़ के हुक्म के मुताबिक़ तशरीफ़ लेगए और एक घर के सिवा बाक़ी सब लोगों के घर से माफ़ी मांगी क्यूंकि उस घर का आदमी वहां मौजूद न था इस लिए आपने उसके कफ़्फ़ारे में एक हज़ार दीनार सदक़ा किया उसके बावजूद भी आपके दिल को क़रार न हुआ यहाँ तक के चार साल इसी हालत में गुज़ार दिए |
फिर शैख़ की बारगाह में हाज़िर हुए तो इरशाद फ़रमाया के अभी तुम्हारे अंदर जाहे तलबी बाक़ी है इस लिए जाओ एक साल और गदाई करो? आप फरमाते हैं मेने एक साल और गदाई की इस हालत में जो कुछ मिलता वो शैख़ की खिदमत में लाता और शैख़ उसको लेकर फ़क़ीरों में बाँट देते और मुझे हर रत भूका ही रखते जब साल गुज़र गया तो शैख़ ने इरशाद फ़रमाया के अब तुम हमारी सुहबत के क़ाबिल हो गए | मगर इस शर्त पर के फ़क़ीरों की खिदमत करो? फिर आपने एक साल फ़क़ीरों की खिदमत फ़रमाई फिर उस के बाद आपके शैख़े तरीक़त ने सवाल किया ऐ अबू बक़र अब तुम्हारे नफ़्स की क़द्रो क़ीमत तुम्हारे नज़दीक किया है? आपने फ़रमाया के में आपने नफ़्स को तमाम जहान से कमतर देखता हूँ और जानता हूँ शैख़ ने फ़रमाया के अब जाओ तुम्हारा ईमान दुरुस्त हो गया है फिर आपने शरीअत व तरिकक़्त में कमाल हासिल किया |

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बारगाहे रिसालत में आपका मक़ाम :- “हज़रत अबू बक़र बिन मुजाहिद जो आपने वक़्त के अज़ीम मुहद्दिस व फ़क़ीह और बुज़रुग हैं” आप ही की मजलिस में उलमा, और फुक़्हा, का मजमा रहता था एक रोज़ हज़रत अबू बक़र शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु आपकी मजलिस में तशरीफ़ लेगए वो आपकी ताज़ीम के लिए खड़े हो गए और सीने से लगाया और पेशानी मुबारक को बोसा दिया | एक नावाक़िफ़ ने कहा के हज़रत ये तो दीवाना है और आप इस क़द्र एहतिराम कर रहे हैं? तो हज़रत अबू बक़र बिन मुजाहिद ने फ़रमाया के ऐ लोगों तुम्हे किया खबर मेने इन के साथ ऐसा ही किया है जैसा के मेने रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को उनके साथ करते हुए देखा फिर आपने ख्वाब का वाक़िया बयान फ़रमाया के मेने ख्वाब देखा के रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मजलिस मुबारक क़ाइम है फिर जिस वक़्त हज़रत अबू बक़र शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु इस मजलिस में तशरीफ़ लाए तो रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खड़े हो गए और उनकी पेशानी को बोसा दिया मेने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम शिब्ली पर इतनी शफ़क़त व महरबानी किस वजह से है तो रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया के हर नमाज़ के बाद “लक़द जा अकुम” पढता है और उसके बाद तीर बार कहता है “सल्लल्लाहु अलइका या रसूलल्लाह” |

आपका मज़ारे मुबारक इराक के मशहूर शहर बाग्दाद् शरीफ के मक़ाम सामराह में मर जए खलाइक़ है |

आपका इसमें आज़म से इश्क़ :- हज़रत अबू बक़र शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु की ये भी आदत थी के आप जिस जगह अल्लाह का नक़्श देखते तो बोसा देते और बड़ी ताज़ीम करते तो आवाज़ आती के कब तक इस्म के साथ मशगूल रहेगा अगर तू मर्दे तालिब है तो उसकी तलाश में क़दम रख यहाँ जब आपने आवाज़ सुनी तो आप पर इश्क़ ग़ालिब हो गया और इश्तियाक़ व दर्द ने इतना ग़लबा किया के आप वहां से उठे और आपने आपको दरियाए दजला में डाल दिया थोड़ी देर के बाद एक मौज आयी और उसने आपको किनारे पर फेंक दिया | फिर आपने आपको आग में डाला लेकिन आग ने भी आप को न जलाया | इसी तरह अपने आपको हलाकत में डाला | मगर अल्लाह पाक ने आपकी हिफ़ाज़ की जब आपकी बेक़रारी और ज़्यादा हो गई तो आपने फर्याद बुलंद की “अफ़सोस है उस शख्स पर जिसको न पानी हलाक करे और न आग न दरिंदे और न ही पहाड़ इस के जवाब में आपने ये आवाज़ सुनी जो हक़ का मक़तूल है उसको सिवाए उसके कोई हलक नहीं कर सकता |
आप दीवानगी शोक में इस मक़ाम पर पहुंच गए थे के दस बार ज़ंजीरों में बांधा गया लेकिन किसी तरह भी क़रार न लिया यहाँ तक के लोग कहते हैं के शिब्ली बिलकुल दीवाना है इस के जवाब में आप इरशाद फरमाते के में तुम्हारे नज़दीक दीवाना हूँ और तुम मेरे नज़दीक दीवाने हो खुदा करे मेरी दीवानगी ज़्यादा हो |

आपके क़ैद का वाकिया :- मशहूर वाक़िया है के हज़रत अबू बक़र शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु को दीवानगी के इलज़ाम में अस्पताल में दाखिल करके वहां आपको मुक़य्यद कर दिया गया | एक जमात आपकी ज़्यारत को आयी तो आपने इन लोगों से फ़रमाया तुम कौन लोग हो? उन्होंने कहा के हम आपके मुहिब्बीन हैं | तो आप ने इन लोगों के ऊपर पथ्थर मारा जिससे वो भागने लगे तो आपने फ़रमाया अगर तुम मेरे मुहिब्बीन हो तो मेरे मारने से क्यों भागते हो इस लिए के मुहिब्बीन दोस्त की बला से भागा नहीं करते | और एक वाक़िया ये भी है के एक मर्तबा आप ज़ख़्मी हो गए | इस दौरान खून का जो क़तरा इससे गिरता “अल्लाह का नक़्श” बन जाता |

तशरीह बंदगी :- एक मर्तबा का वाक़िया है के आपके दस्ते मुबारक में आग का शुअला था और हालते सुक्र में आपने फ़रमाया में चाहता हूँ के जाऊँ और काबा को जला दूँ ताके लोग हक़ की तरफ तवज्जु दें | दुसरे दिन आप के हाथ में एक लकड़ी थी जो दोनों तरफ से जल रही थी और फरमा रहे थे के में चाहता हूँ के जन्नत और दोज़ख को आग लगा दूँ ताके लोग लालच की बंदगी छोड़ दें इसी तरह एक रोज़ आप ने चूलेह में एक लकड़ी को जलते हुए इस तरह देखा के एक तरफ से जल रही थी और दूसरी तरफ से पानी निकल रहा था आप ये मंज़र देखकर रोपड़े और इरशाद फ़रमाया के लोगों अगर तुम भी आतिशे शोक में जलते हो और इस दावे में सच्चे हो तो तुम्हारी आँखों से आंसू क्यों नहीं बहते |

दौलत की हक़ीक़त :- एक बार आपने चार हज़ार (4000) अशरफियाँ दरियाए दजला में फेंक दीं लोगों ने कहा के हुज़ूर आपने ऐसा क्यों किया? आपने फ़रमाया के पथ्थर का पानी के साथ ही रहना ज़्यादा अच्छा है | लोगों ने कहा के उसे लोगों को क्यों नहीं बाँट देते? आपने इरशाद फ़रमाया के “सुबहान अल्लाह” आपने दिल से उसका हिजाब उठाकर मुस्लमान भाइयों के दिलों पर पर्दा डाल दूँ तो में खुदा को किया जवाब दूंगा क्यूंकि दीन की ये शर्त नहीं है के मुस्लमान भाइयों को बद समझो |

शैख़ की उनसीयत :- एक बार आपके शैख़े तरीक़त हज़रत जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु ख़िदमत में कुछ अस्हाबे इरादत जलवा अफ़रोज़ थे | और आपके शैख़ की गैर मौजूदगी में वो लोग आपकी तारीफ करने लगे के सिद्क़ और शोक व बुलंदी में शिब्ली जैसा कोई दूसरा आदमी नहीं है इतने में आपके शेख हाज़िर हुए और इस बात को सुनकर फ़रमाया के तुम लोग के तुम लोग गलती में गिरफ्तार हो वो तो मख़्ज़ूल वो तो ज़ियाँ कार है फ़ौरन शिब्ली को इस जगह से बाहर निकल दो? जब आप वहां से चले गए तो आपके शैख़ उन असहाब से फ़रमाया के शिब्ली की जो तारीफ तूने की है मेरे दिल में उससे ज़्यादा सौ गुनाह ज़्यादा इज़्ज़त है लेकिन उस के सामने इस तारीफ से तुमने तो उस पर तलवार चलादी इस लिए मजबूरन ये कह कर उसके पास ढाल लाना पढ़ा ताके वो हलाक न हो जाए |

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आपकी कशफो करामात

नसरानी तबीब का मुस्लमान होना :- हज़रत अबू बक़्र शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु एक बार बीमार हो गए तो आप को लोग इलाज के लिए ले गए और अली बिन ईसा वज़ीर ने खलीफा को खबर दी | तो खलीफा ने इलाज के लिए आपने अफसर हकीम को भेजा जो नसरानी था | उसने बहुत कुछ इलाज किया मगर कुछ भी फाईदा न हुआ | हकीम ने अर्ज़ किया के अगर में जनता के आपका इलाज मेरे जिस्म के टुकड़े में है तो मुझे इस के काटने में कुछ भी फ़र्क़ न होता | आपने इरशाद फ़रमाया के मेरी दवा तो किसी और चीज़ में है हकीम ने कहा वो किया चीज़ है? आपने फ़रमाया तू कुफ्र को छोड़ और मुस्लमान हो जा | तो हकीम ने फ़ौरन “कलमा शरीफ” पढ़ा खलीफा को जब इसकी खबर हुई तो उसकी आँखों से आंसू जारी हो गए और कहा के हमने हकीम को मरीज़ की तरफ भेजा था मगर ये नहीं जानते थे के मरीज़ को हकीम की तरफ भेजा है |

आपने दिल के हालात जान लिए :- हज़रत अमबाज़ी रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं के एक मर्तबा में हज़रत शैख़ शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु की खिदमत में एक रेशमी चादर ओढ़कर हाज़िर हुआ | वहां पहुँच कर मेने ये देखा के आप एक बहुत ही अच्छी टोपी पहने हुए हैं मेने आपने दिल में कहा के ये तो हमारे पहिनने के क़ाबिल है अगर शैख़ ये टोपी मुझे अता फ़रमा दें तो किया ही अच्छा होता? इस ख्याल का आना ही था के शैख़ ने कहा अपनी चादर मुझे दे दो? मेने वो चादर फ़ौरन शैख़ के हवाले करदी इस के बाद शैख़ ने मेरी चादर और अपनी इस टोपी को फ़ौरन आग लगा में डाल दिया | इरशाद फ़रमाया दीदारे इलाही के सिवा कोई दूसरी आरज़ू दिल में रखने के लाइक नहीं |

आपका मज़ारे मुबारक इराक के मशहूर शहर बाग्दाद् शरीफ के मक़ाम सामराह में मर जए खलाइक़ है |

आप चेहरा देख कर पहचान लेते ये नेक है या बद (बुरा) :- हज़रत शैख़ शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु को अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने बहुत अज़ीम मर्तबा अत फ़रमाया था और हिजाबात (परदे) आपकी आँखों से हटा दिए गए थे यही वजह है के आप खुद फरमाते हैं के में जब बाजार से गुज़रता हूँ तो तमाम और बद यानि बुरों को पहचान लेता हूँ और लोगों की पेशानी पर “सईद”
व “शक़ी” बद बख्त लिखा हुआ देखता हूँ |

आपका तसर्रुफ़ :- मन्क़ूल है के आप से लोगों ने कहा ऐ अबू तुराब तुम जंगल में भूके ही रहते हो? ये सुनकर आपने अपनी निगाह उठाई तो वो तमाम जंगल खाना ही खाना नज़र आने लगा |

आपके मलफ़ूज़ाते शरीफा :- हज़रत शैख़ अबू बक़्र शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु ने अपने मुरीदीन से इरशाद फ़रमाया के अगर एक जुमा से दुसरे जुमा तक तुम मेरे पास आओ | और इस अरसे में तेरे दिल में सिवाए हक़ तआला के कोई दूसरा ख्याल गुज़रे तो समझ ले के अभी दुनिया की तलब तेरे दिल में बाक़ी है | और दुनिया का तलबगार आख़िरत के लिए किया कमा सकता है | इस लिए दुनिया में जितने दिन ज़िंदह रहो आख़िरत के लिए खेती करो | फरमाते हैं के कभी ऐसा नहीं हुआ के में भूका अल्लाह तआला के लिए रहा और हक़ तआला मेरे क़ल्ब में असरार व रुमूज़ का नूर दाखिल न किया हो के फरमाते हैं के हज़रत रसूले मक़बूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशादे गिरामी है के बहुत सैर हो कर न खाया करो ऐसा न हो के तुम्हारी शिकम परवरी की वजह से नूरे मारफअत तुम्हारे दिल से निकल जाए | फरमाते हैं के तसव्वुफ़ क़वी है, और सूफी वो है जो लोगों से अलग हो और अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से मिल जाए |
फरमाते हैं के जो शेख मुहब्बत का दावा करता है और मेहबूब के सिवा दूसरी तरफ लग जाता है वो हबीब का नहीं बल्के किसी और चीज़ का तलबगार होता है और वो गोया अपने मेहबूब का मज़ाक़ उड़ाता है |
फरमाते हैं आरिफ वो है जो कभी तो एक मच्छर की ताब न ला सके और कभी सातों ज़मीनो और आसमानो को नोके पालक पर उठाकर फेंक दे |
और फरमाते हैं के मुहब्बत ये है के हर चीज़ को दोस्त पर निसार कर दे |
लोगों ने आप से पूछा हुज़ूर सुन्नत क्या है? अपने जवाब दिया के दुनिया का छोड़ना |
फिर ज़कात की मिक़्दार के मुतअल्लिक़ पूछा तो अपने इरशाद फ़रमाया के कुल माल को अल्लाह की राह में दे देना ही मेरे नज़दीक इसकी मिक़्दार है | तो साइल ने तअज्जुब होकर कहा के ये ठीक नहीं है इस लिए के क़ुरआन व हदीस से चालीसवां हिस्सा ज़कात है तो अपने कहा ये बखीलों के लिए है फिर लोगों ने दरयाफ्त किया आपके इस तरीके के इमाम कौन हैं? तो अपने कहा के हज़रत सय्यदना अबू बक़्र सिद्दीक़ रदियल्लाहु अन्हु जिन्होंने अल्लाह की राह में अपना तमाम माल खर्च कर दिया यहाँ तक के आपके पास एक कम्बल ही बाक़ी रह गया था | फिर साइल ने कहा के आपके पास क़ुरआन शरीफ से भी कोई दलील है तो अपने कहा हाँ अल्लाह तआला फरमाता है “तहक़ीक़ अल्लाह तआला ने उनके नफ़्सों और मालों को खरीद लिया है” मेने माल को बेचा है इस लिए उसे कुल माल को हवाले कर देना लाज़िम है |
आपने इरशाद फ़रमाया आरिफ वो है के सिवाए हक़ तआला के बिना और गोया न हो | सिवाए उसके अपने नफ़्स का मुहाफ़िज़ किसी दुसरे को न जाने और उसके गये से बात न सुने इस लिए के आरिफों का वक़्त बहार के ज़माने की तरह है जिस तरह के रअद गरजता है, अब्र हँसता है, बिजली चमकती है, हवा चलती है, शगूफे निकलते हैं, मुर्ग चहकते हैं, आरिफ का भी ऐसा ही हाल है के आँखें रोती हैं, लब हँसता है, दिल जलता है, सर के साथ नाज़ करता है, हमेशा वो दोस्त का नाम लेता है, और उसके दरवाज़े पर फिरता है |
फरमाते हैं के दावत की तीन क़िस्मे हैं दावते इल्म, दावते मारफत, दावते मुआइना, इल्म एक है वो ये के अपनी ज़ात से अपने नफ़्स को पहचाने, इबारत ज़बानी इल्म है और इशरते ज़बाने मारफअत, इल्मुल यक़ीन वो है के हमको पैगम्बरों की ज़बाने मुबारक से पहुंचा, और ऐनुल यक़ीन वो है जो नूरे हिदायत असरारे क़ुलूब में बेवास्ता पंहुचा, और हक़्क़ुल यक़ीन वो है के इस आलम में उसकी तरफ राह नहीं |
फरमाते हैं के “शरीअत” ये है के तू इस की पैरवी करे | “तरीक़त” ये है के तू उसको तालाब करे | और “हकीकत” ये है तू उसको देखे |

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आपके विसाल के वाक़िआत

आपकी वफ़ात :- जब आपके विसाल का वक़्त क़रीब आया तो आपकी दोनों आँखों में अन्धेरासा छा गया | और वक़्ते विसाल काफी बेक़रार थे फिर आप कुछ देर खामोश रहे फिर मुज़्तरिब हो गए और फरमाने लगे हवाएं चल रहीं हैं एक लुत्फ़ की और दूसरी क़हर की | तू जिस पर लुत्फ़ की हवा चलती है उसको मक़सूद तक पहुंचा देती है और जिस पर क़हर की हवा चलती है वो हिजाब में मुब्तिला हो जाता है | इस लिए अब देखिये कौन सी हवा चलती है अगर लुत्फ़ की हवा मुझ पर चलती हैतो में उसकी उम्मीद पर सख्तियां बर्दाश्त कर सकता हूँ लेकिन मआज़ अल्लाह क़हर की हवा चली तो में मर जाऊँगा और ये सब सख्तियां और बलाएँ उसके सामने क्या चीज़ हैं और विसाल के वक़्त अपने इरशाद फ़रमाया के मुझे वुज़ू कराओ आपको वुज़ू कराया गया तो लोग दाढ़ी में खलाल करना भूल गए अपने वुज़ू करने वालों को याद दिलाया तो उसके बाद खलाल करा गया जिस रात आपका विसाल हुआ पूरी रत ये पढ़ते रहे यानि “जिस घर में तू साकिन है वो चिराग सी मुस्तग़नी है तेरा वो हसीन चेहरा जिसकी उम्मीद की गई है हमारी हुज्जत होगा जबके लोग अपने साथ हुज्जते करते आएंगें” यहाँ तक के लोग आपको नमाज़े जनाज़ा के लिए लेगए लेकिन अभी आपने इन्तिक़ाल नहीं किया था अपने फिरासत से समझ लिया और इरशाद फ़रमाया तअज्जुब है के मुर्दों की जमाअत निजदों पर नमाज़ पढ़ने आयी है फिर लोगों ने आपको कलमा शरीफ पढ़ने के लिए कहा अपने इरशाद फ़रमाया जब उसका गैर है तू नफ़ी किस की करूँ लोगों ने कहा हुज़ूर शरीअत में इसी तरह है आप “कलमा पढ़ो” आपने इरशाद फ़रमाया के मुहब्बत का बादशाह कहता है के में रिश्वत नहीं लूँगा फिर एक शख्स ने बुलदं आवाज़ से शहादत की तलक़ीन की | अपने फ़रमाया के मुर्दा आया है ताके ज़िन्दों को तलक़ीन व नसीहत करे फिर कुछ देर के बाद लोगों ने कहा के हुज़ूर क्या हाल है? तो अपने इरशाद फ़रमाया के मेहबूब से मिल गया हूँ और आपका विसाल हो गया

आपके विसाल की तारीख :- आपका विसाले पुर मलाल (27) सत्ताईस ज़िल हिज्जा (334) तीन सौ चौतीस हिजरी मुताबिक़ नौ सौ पचपन (955) ईस्वी जुमे की रात (88) अठ्ठासी साल की उमर शरीफ में हुआ | और उस वक़्त “अल मुस्तक़फ़ी बिल्लाह का दौरे खिलाफत था |

आपके खुलफाए किराम :- हज़रात शैख़ अबू बक्र शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु के सिर्फ दो खुलफ़ा के आज़माए गिरामी दस्तियाब हुए हैं | (1) हज़रत ख़्वाजा अब्दुल वाहिद अबुल फ़ज़ल तमीमी रदियल्लाहु अन्हु, (2) हज़रत अबुल हसन निमालम रदियल्लाहु अन्हु |

विसाल के बाद भी आप ज़िंदह हैं :- आपके विसाल के बाद एक बुज़रुग ने आपको ख्वाब में देखा तो आप से मालूम किया हुज़ूर “नकी रैन” के साथ कैसी गुज़री? अपने जवाब दिया के जब “नकी रैन” मेरे पास आये और उन्होंने मुझ से सवाल किया के बता तेरा रब कौन है? तो मेने जवाब दिया मेरा रब वही है जिसने आदम अलैहिस्सलाम को पैदा किया और फिर फरिश्तों की जमाअत को हुक्म दिया के “आदम को सजदह करो तो सब फरिश्तों ने सजदह किया मगर इब्लीस ने सजदह नहीं किया और खुदा के हुक्म से मुँह मोड़ लिया और घमंड किया तो उस वक़्त में आदम अलैहिस्सलाम की पुश्त में था | इस जवाब पर “नकी रैन” बोले के इस ने तो तमाम औलादे आदम की तरफ से जवाब दे दिया और ये कह कर वो चले गए |

आपका मज़ारे शरीफ :- आपका मज़ारे मुबारक इराक के मशहूर शहर बाग्दाद् शरीफ के मक़ाम सामराह में मर जए खलाइक़ है |अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उनके सदक़े हमारी मगफिरत हो

(मसालीकुस सलीक़ीन,जिल्द अव्वल) (तज़किरातुल औलिया) (तारीख़ुल औलिया,जिल्द अव्वल) (शजरतुल कमिलीन) (ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द अव्वल) (राहे अक़ीदत) (कशफ़ुल मेहजूब) (रौज़ुर रियाहीन) (तज़किराये मशाइखे क़दीरिया बरकातिया रज़विया) (नफ़्हातुल उन्स) (मिरातुल असरार)

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