क़ादरी कर क़ादरी रख क़दरियों में उठा
क़दरे अब्दुल क़ादिर क़ुदरत नुमा के वास्ते

सरदार औलिया गौसे पाक का ये फरमान मेरा ये क़दम हर वली की गर्दन पर इस का मतलब क्या है? :- हज़रत शैख़ बक़ा बिन बतू रहमतुल्लाह अलैह ने बयान किया है के इब्राहीम अल अगरब बिन शैख़ अबिल हसन अल ररिफाई बताही रहमतुल्लाह अलैह बयान करते हैं के मेरे वालिद माजिद ने मेरे मामू सय्यद शैख़ अहमद रिफाई से पूछा के शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह ने जो ऐलान किया के (मेरा ये क़दम हर वली की गर्दन पर है) तो क्या आप इस के कहने पर मामूर थे या नहीं? आप ने फ़रमाया बेशक वो इस के कहने पर मामूर थे,
शैख़ अबू बक्र हवार रहमतुल्लाह अलैह से बा इसनाद बयान किया गया है के एक रोज़ उन्होंने आप ने मुरीदों से बयान किया के अनक़रीब इराक में एक अजमी शख्स जो के खुदा तआला के और लोगों के नज़दीक मर्तबा आली रखता होगा ज़ाहिर होगा बग़दाद में सुकूनत इख्तियार करेगा और कहेगा (मेरा ये क़दम हर वली की गर्दन पर है) कहेगा और तमाम औलियाए ज़माना उसकी पैरवी करेंगें,
शैख़ अबुल इस्लाम शहाबुद्दीन अहमद बिन हजर अल अस्क़लानी रहमतुल्लाह अलैह से आप के इस क़ौल (मेरा ये क़दम हर वली की गर्दन पर है) इस के माना पूछे गए तो शैख़ मौसूफ़ ने फ़रमाया के इससे आप की करामात बकसरत ज़ाहिर होना मुराद है के जिन का बजुज़ नाहक़ पसंद शख्स के और कोई इंकार नहीं कर सकता,
बयान किया गया है के क़दम के यहाँ पर हक़ीक़ी माना मुराद नहीं हैं बल्कि यहाँ पर इस के मिजाज़ी माना मुराद हैं शाने अदब भी यही है क़दम से मिजाज़ी तरीक़ा भी मुराद होता है जैसा के कहा जाता है फुलां शख्स क़दम हमीद पर है यानि तरीक़ए हमीद पर है या इबादते अज़ीमा या अदब जमील पर है गरज़ क़रीब क़रीब इसी क़िस्म के माने मुराद होते हैं तो अब आपका क़ौल (मेरा ये क़दम हर वली की गर्दन पर है) यानि आप का तरीक़ा आप के फतूहात तमाम औलिया के तरीकों और फतूहात से आला व अरफ़ा है यानि इंतिहाई कमाल को पंहुचा हुआ है और क़दम के हक़ीक़ी माना तो खुदा ही खूब जनता है मुराद है या नहीं इस के हक़ीक़ी माना तो कई वुजूह से मक़ाम के मुनासिब भी नहीं हैं, अव्वल ये के रियायते अदब रखना एक ज़रूरी अम्र है क्यूंकि तरीक़त इसी पर मबनी है जैसा हज़रत जुनैद बगदादी रहमतुल्लाह अलैह वगैरह ने इसी की तरफ इशारा किया है,
दूसरी ये बात ज़्यादा मुनासिब है के आप जैसे आरिफो कामिल के कलाम को फसाहत व बलाग़त के आला नमूने पर मेहमूल करना चाहिए जैसा के हमने ऊपर बताया है सो इस के माना खुदा ही को मालूम हैं ज़ाहिर व मुताबादिल थे वो हमने बयान किये हैं बाक़ी खुफ़ियात व किनायात को खुदा ही खूब जनता है,

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शैख़ अदि बिन मुसाफिर रहमतुल्लाह अलैह का क़ौल :- शैख़ अबू मुहम्मद युसूफ बिन आकूली बयान करते हैं के में एक बार शैख़ अदि बिन मुसाफिर रहमतुल्लाह अलैह शरफ़े नियाज़ हासिल करने के लिए आप के पास गया तो आप ने पूछा आप कहाँ के रहने वाले हैं? मेने अर्ज़ किया में बग़दाद का रहने वाला हूँ और शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह के मुरीदों में से हूँ आप ने फरमाया खूब खूब वो क़ुत्बे वक़्त हैं के जब उन्होंने कहा (मेरा ये क़दम हर वली की गर्दन पर है) तो उस वक़्त तीन सौ 300, औलिया अल्लाह ने और सात सौ 700, रिजाले गैब ने के जिन में से कुछ ज़मीन पर बैठने वाले और कुछ हवा में चलने वाले थे अपनी गर्दनें झुकायीं ये मेरे नज़दीक बड़ी बात है,
फिर में एक मुद्दत के बाद शैख़ अहमद रिफाई की खिदमत में हाज़िर हुआ तो उस वक़्त शैख़ अदी बिन मुसाफिर का मन्क़ूल जो के मेने आप से सुना था बयान किया तो शैख़ मौसूफ़ ने फ़रमाया बेशक शैख़ अदी बिन मुसाफिर ने सच फ़रमाया,

शैख़ माजिद अल करवी रहमतुल्लाह अलैह का बयान :- आप फरमाते हैं के जब हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के (मेरा ये क़दम हर वली की गर्दन पर है) तो उस वक़्त कोई वलीउल्लाह ज़मीन पर बाक़ी न रहा के उसने अपनी गर्दन न झुकाई हो और न उस वक़्त सुल्हाये जिन्नात में से कोई ऐसी मजलिस न थी के जिस में इस अम्र का ज़िक्र न हुआ हो और तमाम आफ़ाक़ के सुल्हाये जिन्नात से गिरोह आप के दरवाज़े पर हाज़िर थे इन सब ने आप को सलाम अर्ज़ क्या और सब के सब हाथ पर तईब होकर वापस आगए,
शैख़ मुतिर ने इस क़ौल की ताईद की है के मेने आप के साहबज़ादे हज़रत शैख़ अब्दुल्लाह से मालूम किया के जिस मजलिस में आप के वालिद माजिद ने ये कहा (मेरा ये क़दम हर वली की गर्दन पर है) आप उस मजलिस में मौजूद थे आप ने फ़रमाया हाँ में उस मजलिस में मौजूद था और बड़े बड़े पचास 50, मशाइख मौजूद थे,
उस के बाद शैख़ मुतिर बयान करते हैं के आप के साहबज़ादे हज़रत शैख़ अब्दुल्लाह मकान के अंदर तशरीफ़ लेगए और हम दो तीन आदमी शैख़ मकारिम शैख़ मुहम्मद अल खालिस व शैख़ अहमद अल अरीनी बातें करते हुए बैठे रहे तो उस वक़्त शैख़ मकारिम ने फ़रमाया के में अल्लाह पाक को हाज़िरो नाज़िर जानकार कहता हूँ के जिस रोज़ आप ने फ़रमाया था के (मेरा ये क़दम हर वली की गर्दन पर है) तो उस रोज़ पूरी ज़मीन के सभी औलियाए किराम ने मुआइना किया के क़ुतबियत का झंडा आप के सामने गाड़ा गया है और ग़ौसियात का ताज आप के सर पर रखा गया है और आप तसर्रूफ़े ताम की खिलअत जो के शरीअतो हक़ीक़त के नक़्शो निगार से मुज़य्यन था जेब तन किये हुए फरमा रहे थे (मेरा ये क़दम हर वली की गर्दन पर है) उन सब ने ये सुन कर एक ही आन में अपने सर झुका कर आप के रुतबे को क़बूल किया यहाँ तक के दसों अबदलों ने भी जो के सलातीने वक़्त थे अपने सर झुकाए,
शैख़ मुतिर कहते हैं मेने शैख़ मकारिम से पुछा वो दस अब्दाल कौन हैं तो आप ने फ़रमाया के वो दस अब्दाल ये हैं, (1) शैख़ बक़ा बिन बतू रहमतुल्लाह अलैह (2) शैख़ अबू सईद कील्वी रहमतुल्लाह अलैह (3) शैख़ अली बिन हीती रहमतुल्लाह अलैह (4) शैख़ अदि बिन मुसाफिर रहमतुल्लाह अलैह (5) शैख़ मूसा अलज़ूली रहमतुल्लाह अलैह (5) शैख़ अहमद बिन रिफाई रहमतुल्लाह अलैह (6) शैख़ अब्दुर रहमान अल तफूंजी रहमतुल्लाह अलैह (7) शैख़ अबू मुहम्मद बसरी रहमतुल्लाह अलैह (8) शैख़ हयात बिन क़ैस अल हरानी रहमतुल्लाह अलैह (9) शैख़ अबू मदयन अल मगरबी रहमतुल्लाह अलैह (10),
तो ये सुनकर शैख़ मुहम्मद अल ख़ास व शैख़ अहमद अल अरीनी ने कहा बेशक आप सच फरमाते हैं और मेरे बिरादिरे मुकर्रम शैख़ अब्दुल जब्बार शैख़ अब्दुल अज़ीज़ ने भी आप की ताईद की रदियल्लाहु तआला अन्हुम,

रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आप की तस्दीक़ फरमाना :- शैख़ ख़लीफ़तुल अकबर फरमाते हैं के मेने जनाबे सरवरे कायनात अलैहिस्सलातु वस्सलाम को ख्वाब में देखा तो मेने आप से अर्ज़ किया या रसूलल्लाह शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी ने ये कहा तो आप ने फ़रमाया बेशक उन्होंने सच कहा और क्यों न कहते? वो क़ुत्बे वक़्त हैं और मेरी निगरानी में हैं,

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मज़ारे मुबारक सरदारे औलिया क़ुत्बुल अक़ताब शहंशाहे विलायत महबूबे सुब्हानी क़ुत्बे रब्बानी शैख़ मुहीयुद्दीन अब्दुल क़ादिर जिलानी बगदादी रदियल्लाहु अन्हु मज़ार बाग्दाद् शरीफ इराक

रूए ज़मीन के तीन सौ तेराह 313, औलिया अल्लाह का गर्दनें झुका देना :- शैख़ लूलू अल अरमनी मुखातिब बयान करते हैं के शैख़ अबुल खैर अता अल मिसरि ने जब मेरा मुजाहिदा व इज्तिहाद देखा तो मुझ से कहने लगे के मे औलिया अल्लाह में से किस की तरफ मंसूब करूँ? तो उस वक़्त मेने उन से कहा के मेरे शैख़ हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी सरदारे औलिया रहमतुल्लाह अलैह हैं के जिन्होंने ये फ़रमाया था (मेरा ये क़दम हर वली की गर्दन पर है) जब आप ने ये फ़रमाया तो उस वक़्त ज़मीन के तीन सौ तेराह 313, औलिया अल्लाह ने अपनी गर्दनें झुकाईं जिन की तफ्सील ये है सत्तरह हरमैन शरीफ़ैन में, और साठ इराक में, और चालीस अज्म में, और तीस मुल्के शाम में, और बीस मिस्र में, और सत्ताईस मगरिब में और गियारह हब्शा में, और ग्यारह याजूज माजूज में और सात बयाबान सर अनदप में, और सैतालीस कोहे काफ में और चौबीस जराइर बेहरे मुहीत में, और बहुत ज़्यादा तादाद बुज़ुर्गो की है शैख़ अदि बिन मुसाफिर रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ अबू सईद कील्वी रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ अली बिन हीती रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ अहमद बिन रिफाई रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ अबुल क़ासिम अल बसरी रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ हयात अल हरानी रहमतुल्लाह अलैह, वग़ैरहुम ने इस बात की शहादत और गवाही दी है के सरकार गौसे आज़म सरदारे औलिया हुज़ूर गौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह का ये फरमान (मेरा ये क़दम हर वली की गर्दन पर है) कहने पर मामूर थे जो कोई इसका इंकार करे उसके मअज़ूल करने का भी इख्तियार दिया गया था |

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जिन औलियाए किराम ने अपनी गर्दनें झुकायीं कुछ के नाम ये हैं :- शैख़ बक़ा बिन बतू रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ अहमद बिन रिफाई रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ अबू सईद कील्वी रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ अली बिन हीती रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ अब्दुर रहमान अल तफूंजी रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ अबू नजीब सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ अबू मुहम्मद बिन शैख़ अबू उमर रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ सवेद अल नज्जारी रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ अरसलान दमिश्क़ी रहमतुल्लाह अलैह ने गर्दन भी झुकाई और अपने मुरीदों और अहबाब को इस की खबर भी दी और शैख़ अबू मदयन मगरिबी रहमतुल्लाह अलैह ने मगरिब में अपनी गर्दन झुकाई और फ़रमाया बेशक में भी उन्ही लोगों में से के आप का क़दम जिन पर है ए परवर दिगार में तुझे और तेरे फरिश्तों को गवाह बनाता हूँ के मेने आप का क़ौल सुना (क़दमी हाज़ीही अला रक़ाबती कुल्ली वलीउल्लाह) और इस की तामील की और शैख़ इब्राहीम अल मगरबी रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ उस्मान बिन अल बताहि रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ मकारिम रहमतुल्लाह अलैह, शैख़ खलीफा रहमतुल्लाह अलैह शैख़ अदि बिन मुसाफिर रहमतुल्लाह अलैह वगैरह रदियल्लाहु तआला अन्हुम,

अताए रसूल ख़्वाजा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह का गर्दन झुकना :- अताए रसूल ख़्वाजा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह खुरासान के पहाड़ों में मुजाहिदात और रियाज़ात में मशगूल थे जब हुज़ूर गौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह ने बग़दाद शरीफ में मिंबर पर बैठ कर फ़रमाया के (मेरा ये क़दम हर वली की गर्दन पर है) तो अताए रसूल ख़्वाजा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह ने रूहानी तौर पर ये इरशाद सुन कर अपनी गर्दन इस क़द्र झुकाई के पेशानी ज़मीन को छूने लगी और अर्ज़ किया आप के दोनों क़दम मेरे सर आँखों पर हैं हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह ने ख़्वाजा साहब के इस इज़हारे नेयाज़मन्दी से खुश होकर फ़रमाया के गियासुद्दीन के बेटे गर्दन झुकाने में सबक़त की जिस के सबब अनक़रीब हिंदुस्तान की विलायत से सरफ़राज़ कर दिया, इसी की मंज़र कशी करते हुए ख़लीफ़ए सरकार आला हज़रत अल्लामा जमीले क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं,

दमे फरमा ख़ुरासा में मुईनुद्दीन चिश्ती ने
झुकाकर सर लिया आखों पे तलवा गौसे आज़म का

हज़रत ख़्वाजा बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह का इरशाद :- “तफ़रीहुल खातिर” में है एक बार हज़रत ख़्वाजा बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह की मजलिस में वलियों की गर्दनो पर हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह के क़दम मुबारक का ज़िक्र आया तो बाबा फरीद रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के आप का क़दम मुबारक मेरी गर्दन पर ही नहीं बल्कि मेरी आँख की पुतली पर है इस लिए के मेरे दादा पीर ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती उन मशाइख में से हैं जिन्होंने आप का क़दम मुबारक अपनी गर्दन पर रखा अगर में उस ज़माने में होता तो हक़ीक़ी माने में आप का क़दम मुबारक अपनी गर्दन पर रखता और फ़ख़्र से अर्ज़ करता के आप का क़दम मेरी आँख की पुतली पर भी है, इसी लिए मुजद्दिदे आज़म सरकार आला हज़रत फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं,

वाह क्या मर्तबा ए ग़ौस है बाला तेरा
ऊंचे ऊँचों के सरों से क़दम आला तेरा
सर भला क्या कोई जाने के है कैसा तेरा
औलिया मलते हैं आँखें वो है तलवा तेरा

शरह :- ए ग़ौसुल आज़म आप का दर्जा क्या खूब बुलंद है बड़े बड़े सरों वालों से भी आप का क़दम मुबारक बहुत ही ऊंचा है आप का मर्तबा तमाम औलिया व अक़ताब व अब्दाल के मरातिब से बुलंदो बाला है इस लिए तमाम औलियाए किराम के आप के पाऊँ के नीचे हैं, ख़लीफ़ए सरकार आला हज़रत अल्लामा जमीले क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं,

जो फ़रमाया के दौशे औलिया पर है क़दम मेरा
लिया सर को झुका कर सब ने तलवा गौसे आज़म का
न क्यों कर सल्तनत दोनों जहाँ की उन को हासिल हो
सरों पर अपने लेते हैं जो तलवा गौसे आज़म का

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मुसलमान और ईसाई के झगड़े पर मुर्दे को ज़िंदा करना :- एक रोज़ सरदारे औलिया हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह एक मोहल्ले से गुज़रे तो देखा के एक मुसलमान और एक ईसाई आपस में झगड़ रहे हैं आप ने वजह पूछी तो मुसलमान ने कहा ये ईसाई कहता है के ईसा अलैहिस्सलाम तुम्हारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अफ़ज़ल हैं और में कहता हूँ के हमारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हज़रत ईसा से अफ़ज़ल हैं सरदारे औलिया हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह ने ईसाई से कहा के तुम किस वजह से ईसा अलैहिस्सलाम को अफज़ल कहते हो उस ने कहा के ईसा अलैहिस्सलाम मुर्दों को ज़िंदा कर दिया करते थे, आप ने फ़रमाया के में रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का उम्मती हूँ अगर में मुर्दे को ज़िंदा कर दूँ तो रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की फ़ज़ीलत को मान लेगा उस ने कहा ज़रूर फिर आप ने उससे कहा क़ब्रिस्तान में कोई पुरानी क़ब्र बताओ जिस के मुर्दे को ज़िंदा करूँ और वो मुर्दा दुनिया में जो पेशा यानि जो काम करता था उस के साथ उठे उस ने एक पुरानी और बोसीदा क़ब्र की तरफ इशारा किया हुज़ूर गौसे आज़म ने फ़रमाया “क़ुम बी इज़ निल्लाह” यानि अल्लाह के हुक्म से उठ फिर क़ब्र शक हुई यानि क़ब्र खुल गयी और वो मुर्दा ज़िंदा हो कर गता हुआ बाहर निकला ये देख कर वो ईसाई मुसलमान हो गया, ख़लीफ़ए सरकार आला हज़रत अल्लामा जमीले क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं,

वो कह कर क़ुम बी इज़ निल्लाह जिला देते हैं मुर्दों को
बहुत मशहूर है अहयाए मोता गौसे आज़म का

सरदारे औलिया गौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह की बचपन की करामत :- ख़ानक़ाह में एक बा पर्दा खातून अपने मुन्ने की लाश चादर में लिपटाए, सीने से चिमटाए ज़ारो क़तार रो रही थी, इतने में एक “मदनी मुनना” दौड़ता हुआ आया और हम दर्द भरे लहजे में उस खातून से रोने का सबब पूछा वो रोते हुए कहने लगी बेटा मेरा शोहर अपने लखते जिगर के दीदार की हसरत लिए दुनिया से रुखसत हो गया है, ये बच्चा उस वक़्त पेट में था और अब यही अपने बाप की निशानी और मेरी ज़िंदगानी का सरमाया था ये बीमार हो गया में इसे इसी ख़ानक़ाह में दम करवाने ला रही थीं के रास्ते में इसने दम तोड़ दिया है में फिर भी बड़ी उम्मीद लेकर यहाँ हाज़िर हो गयीं के इस ख़ानक़ाह वाले बुज़रुग की विलायत की धूम धाम है और उनकी निगाहें करम से अब भी बहुत कुछ हो सकता है मगर वो मुझे सब्र की तसल्ली देकर अंदर तशरीफ़ लगाए,
ये कह कर वो खातून फिर रोने लगी “मदनी मुन्ने” का दिल पिघल गया और उस की रहमत भरी ज़बान से ये अल्फ़ाज़ निकले “मुहतरमा आप का मुनना (तीन चार साल का छोटा बच्चा) मरा हुआ नहीं बल्के ज़िंदह है देखो तो सही वो हरकत कर रहा है दुखियारी माँ ने बेताबी के साथ अपने मुन्ने की लाश पर से कपड़ा उठा कर देखा तो वो सच मुच में ज़िंदा था और हाथ पैर हिला कर खेल रहा था” इतने में ख़ानक़ाह वाले बुज़रुग अंदर से वापस तशरीफ़ लाये बच्चे को ज़िंदह देख कर सारी बात समझ गए और लाठी उठा कर ये कहते हुए “मदनी मुन्ने” की तरफ लपके यानि दौड़े और कहा के तूने अभी से तक़्दीरे खुदावन्दी के सर बस्ता राज़ खोलने शूरे कर दिए हैं मदनी मुनना वहां से भाग खड़ा हुआ वो बुज़रुग उस के पीछे दौड़ने लगे “मदनी मुनना” यकायक क़ब्रिस्तान की तरफ मुड़ा और बुलंद आवाज़ से पुकारने लगे ए क़ब्र वालों मुझे बचाओ तेज़ी से लपकते हुए बुज़ुरग अचानक ठिठक कर रुक गए क्यूँकि क़ब्रिस्तान से तीन सौ मुर्दे उठ कर उसी “मदनी मुन्ने” की ढाल बन चुके थे और वो “मदनी मुनना” दूर खड़ा अपना चांदसा चेहरा चमकाता मुस्कुरा रहा था, उन बुज़रुग ने बड़ी हसरत के साथ “मदनी मुन्ने” की तरफ देखते हुए कहा बेटा हम तेरे मर्तबे को नहीं पहुंच सकते इस लिए तेरी मर्ज़ी के आगे अपना सरे तस्लीम ख़म करते हैं,
प्यारे इस्लामी भाईयों: वो “मदनी मुनना” आप जानते हैं के वो कौन हैं वो कोई आम मुनना या बच्चा नहीं है वो “मदनी मुनना” कौन था उस मदनी मुन्ने का नाम अब्दुल क़ादिर था और आगे चलकर वो सरदारे औलिया हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह ग़ौसुल आज़म के लक़ब से मशहूर हुए, मुजद्दिदे आज़म सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं,

क्यों न क़ासिम हो के तू इबने अबिल क़ासिम है
क्यों न क़ादिर हो के मुख़्तार है बाबा तेरा

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मुश्किल मसअले का आसान जवाब :- हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह में बिलादे अज्म से एक सवाल आया के एक शख्स ने तीन तलाक़ों की क़सम इस तौर पर खायी है के वो अल्लाह पाक की ऐसी इबादत करेगा के जिस वक़्त वो इबादत में मशगूल हो तो लोगों में से कोई भी शख्स वो इबादत न कर रहा हो अगर वो ऐसा न कर सका तो उसकी बीवी को तीन तलाकें हो जाएंगी तो इस सूरत में कौन सी इबादत करनी चाहिए इस सवाल से इराक के उलमा हैरान और शुश्दर रह गए,
और इस मसले को उन्होंने हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में पेश किया तो आप ने इसका फ़ौरन जवाब दिया के “वो शख्स मक्का शरीफ चला जाए और तवाफ़ की जगह सिर्फ अपने लिए ख़ाली कराए और तनहा सात बार तवाफ़ कर के अपनी क़सम को पूरा करे” इस शफी जवाब से इराक के उलमा को निहायत ही तअज्जुब हुआ क्यूंकि वो इस सवाल से आजिज़ हो गए थे,

हुज़ूर गौसे आज़म सरदारे औलिया का अपने उस्ताद को अठ्ठारह पारे सुना दिए :- हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह पांच साल की उमर में जब पहली बार बिस्मिल्लाह शरीफ पढ़ने की रस्म के लिए किसी बुज़रुग के पास बैठे तो आप ने आऊज़ू और बिस्मिल्लाह पढ़ कर सूरह फातिहा और अलिफ़ लाम मीम से लेकर अठ्ठारह 18, पारे पढ़ कर सुना दिए उन बुज़रुग ने कहा बेटे और पढ़ो फ़रमाया बस मुझे इतना ही याद है क्यूंकि मेरे माँ को भी इतना ही याद था, जब में अपनी मां के पेट में था उस वक़्त वो पढ़ा करती थीं मेने सुन कर याद कर लिया था,
जब हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह बचपन में खेलने का इरादा फरमाते तो ग़ैब से आवाज़ आती ए अब्दुल क़ादिर हमने तुझे खेलने के वास्ते नहीं पैदा किया,
जब आप रहमतुल्लाह अलैह मदरसे में तशरीफ़ ले जाते तो आवाज़ आती अल्लाह के वली को जगा देदो,

मज़ारे मुबारक सरदारे औलिया क़ुत्बुल अक़ताब शहंशाहे विलायत महबूबे सुब्हानी क़ुत्बे रब्बानी शैख़ मुहीयुद्दीन अब्दुल क़ादिर जिलानी बगदादी रदियल्लाहु अन्हु मज़ार बाग्दाद् शरीफ इराक

ग़ौसुल आज़म रहमतुल्लाह अलैह का कुँआ :- एक बार बग़दाद शरीफ में ताऊन की बीमारी फ़ैल गयी और लोग इधर उधर मरने लगे लोगों ने आप की खिदमत में इस मुसीबत से निजात दिलाने की दरख्वास्त पेश की आप ने फ़रमाया हमारे मदरसे के इर्द गिर्द जो घास है वो खाओ और हमारे मदरसे के कूएँ का पानी पिओ जो ऐसा करेगा वो इंशा अल्लाह हर मर्ज़ से शिफा पाएगा, चुनांचे घास और कूँऐं के पानी से शिफा मिलनी शुरू हो गयी यहाँ तक के बग़दाद शरीफ से ताऊन ऐसा भागा के फिर कभी पलट कर नहीं आया,
“तबक़ाते कुबरा” में गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह का ये इरशाद भी नकल किया गया है के “जिस मुसलमान का मेरे मदरसे से गुज़र हुआ क़यामत के दिन उस के अज़ाब में तख़फ़ीफ़ होगी,
ख़लीफ़ए सरकार आला हज़रत अल्लामा जमीले क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं,

शिफा पाते हैं सदहा जां बल्ब अमराज़ मुहलिक से
अजब दारुश शिफा है आस्ताना गौसे आज़म का

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सरदारे औलिया हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह ने डूबी हुई बारात निकाल दी :- एक बार सरदारे औलिया हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह दरिया की तरफ तशरीफ़ लेगए वहां एक बुढ़िया को देखा जो ज़ारो क़तार रो रही थी एक मुरीद ने बारगे गैसियत में अर्ज़ की यानि आप से कहा या मुशिदि इस ज़ईफ़ का इकलौता बेटा था बेचारी ने उस की शादी रचाई दुलाह निकाह करके दुल्हन को इसी दरिया में कश्ती के ज़रिए अपने घर ला रहा था के कश्ती उलट गयी और दुलाह दुल्हन समीत सारी बारात डूब गयी, इस वाक़िआ को आज 12, बारह साल गुज़र चुके हैं बेचारी का गम जाता नहीं है ये रोज़ाना दरिया पर आती और बारात को न पाकर रोधोकर चली जाती है हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह को इस ज़ईफ़ यानि बूढ़ी औरत पर बड़ा तरस आया आप ने अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बारगाह में दुआ के लिए हाथ उठा दिए चंद मिनट तक कुछ बी ज़हूर नहीं हुआ बेताब होकर बारगाहे इलाही में अर्ज़ की या अल्लाह इस क़द्र ताख़ीर क्यों?
इरशाद हुआ ए मेरे प्यारे ये ताख़ीर ख़िलाफ़े तक़दीर व तदबीर नहीं है हम चाहते तो एक हुक्मे कुन से तमाम ज़मीन व आसमान पैदा कर देते मगर बा मुक़तज़ाए हिकमत छेह 6, दिन में पैदा किए बारात को डूबे 12, साल बीत चुके हैं अब न वो कश्ती बाक़ी रही न है उसकी कोई सवारी तमाम इंसानो का गोश्त भी दरिया के जानवर खा चुके हैं रेज़े रेज़े को अजज़ाए जिस्म में इकठ्ठा करवा कर दोबारा ज़िन्दगी के मरहले में दाखिल कर दिया है अब उनकी आमद का वक़्त है अभी ये कलाम इख़्तिताम को भी नहीं पंहुचा था के “यकायक वो कश्ती अपने तमाम तर साज़ोसामान के साथ दुलाह दुल्हन व बाराती पानी के ऊपर आ गयी और चंद ही लम्हो में किनारे आ लगी तमाम बाराती सरकारे बग़दाद गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह से दुआएं लेकर ख़ुशी ख़ुशी अपने घर पहुंचे इस करामात को सुनकर बेशुमार कुफ्फार ने आप के दस्ते हक़ परस्त पर इस्लाम क़बूल किया, शहज़ादाए सरकार आला हज़रत हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं,

निकाला है पहले तो डूबे हुओं को
और अब डूबतो को बचा गौसे आज़म
जो डूबी थी कश्ती वो दम्मे निकाली
तुझे ऐसी क़ुदरत मिली गौसे आज़म

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सरकार ग़ौसुल आज़म की अज़ीमुश्शान करामत :- अबुल मुज़फ्फर हसन नामी एक ताजिर ने हज़रत सय्यदना शैख़ हम्माद रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह में हाज़िर होकर अर्ज़ की हुज़ूर में तिजारत के लिए काफिले के साथ मुल्के शाम जा रहा हूँ आप से दुआ की दरख्वास्त है सय्यदना शैख़ हम्माद रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया आप अपना सफर मुल्तवी कर दीजिये अगर गए तो डाकू सारा माल भी लूट लेंगें और आप को क़त्ल भी कर डालेगें, ताजिर (तिजारत करने वाला बिजनिस करने वाला) ये सुन कर घबरा गया, इसी परेशानी के आलम में वापस आ रहा था के रास्ते में हुज़ूर ग़ौसुल आज़म रहमतुल्लाह अलैह मिल गए, पूछा क्यों परेशान हैं? उसने सारा वाक़िआ सुना दिया हुज़ूर ग़ौसुल आज़म रहमतुल्लाह अलैह ने इरशाद फ़रमाया परेशान न हो शोक से मुल्के शाम का सफर कीजिए इंशा अल्लाह सब बेहतर होगा,
चुनाचे वो काफिले के साथ रवाना हो गया उस को कारोबार में बहुत नफ़ा भी हुआ वो एक हज़ार 1000, अशर्फियों की थैली लिए मुल्के शाम के शहर “हल्ब” में पंहुचा, इत्तिफ़ाक़ से वो अशर्फियों की थैली कहीं रख कर भूल गया इसी फ़िक्र में नींद ने ग़लबा किया और सो गया उसने एक डराओना ख्वाब देखा के डाकुओं ने काफिले पर हमला करके सारा माल लूट लिया है और इसे भी क़त्ल कर डाला है खौफ के मारे इस की आँख खुल गयी, घबरा कर उठा तो वहां कोई डाकू वगैरह नहीं था, अब उसे याद आया के अशर्फियों की थैली उसने फुलां जगह रखी थी फ़ौरन वहां पंहुचा तो थैली मिल गयी ख़ुशी ख़ुशी बगदाद शरीफ वापस आया, अब सोचने लगा के पहले ग़ौसुल आज़म रहमतुल्लाह अलैह से मिलूं या शैख़ हम्माद रहमतुल्लाह अलैह से इत्तिफ़ाक़ से रास्ते में ही सय्यदना शैख़ हम्माद रहमतुल्लाह अलैह मिल गए और देखते ही फरमाने लगे पहले जा कर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह से मिलो के वो महबूबे रब्बानी हैं उन्होंने तुम्हारे हक़ में 17, बार दुआ मांगी थी तब कही जाकर तुम्हारी तक़दीर बदली जिसकी मेने खबर दी थी अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने तुम्हारे साथ होने वाले वाक़िए को गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह की दुआ की बरकत से बेदारी से ख्वाब में बदल दिया, चुनाचे वो बारगाहे गौसे आज़म में हाज़िर हुआ गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह ने देखते ही फ़रमाया वाक़ई मेने तुम्हारे लिए 17, बार दुआ मांगी थी मज़ीद फ़रमाया मेने तुम्हारे बारे में 17, दर 17, से लेकर 70, मर्तबा दुआ मांगी थी, मुजद्दिदे आज़म सरकार आला हज़रत रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं,

या शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी शइअन लिल्लाह

गरज़ आक़ा से करूँ अर्ज़ के तेरी है पनाह
बंदा मजबूर है खातिर पे है क़ब्ज़ा तेरा

और अल्लामा जामीले क़ादरी सरकार आला हज़रत के खलीफा फरमाते हैं,
हमारी लाज किस के हाथ है बगदाद वाले के
मुसीबत ताल देना काम किसका गौसे आज़म का

अज़ाबे क़ब्र से रिहाई :- एक ग़मगीन नौजवान ने आकर बारगाहे ग़ौसियत में फ़रयाद की के हुज़ूर मेने अपने वालिद मरहूम को रात ख्वाब में देखा वो कह रहे थे, बेटा में अज़ाबे क़ब्र में गिरफ्तार हूँ तू सय्यदना शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह में हाज़िर होकर मेरे लिए दुआ की दरख्वास्त कर, ये सुनकर सरकारे बग़दाद हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया क्या तुम्हारे अब्बा जान मेरे मदरसे से गुज़रे हैं? उसने अर्ज़ की जी हाँ फिर आप खामोश हो गए वो नौजवान चला गया दूसरे दिन ख़ुशी ख़ुशी हाज़िरे खिदमत हुआ और कहने लगा या मुर्शिद आज रात वालिदे मरहूम सब्ज़ हुल्ला यानि सब्ज़ लिबास ज़ेबे तन किए ख्वाब में तशरीफ़ लाए वो बेहद खुश थे कह रहे थे बेटा सय्यदना शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह की बरकत से मुझ से अज़ाब दूर कर दिया गया है और ये सब्ज़ हुल्ला भी मिला है मेरे प्यारे बेटे तू उनकी खिदमत में रहा कर ये सुन कर सरकार गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया मेरे रब ने मुझ से वादा फ़रमाया है के जो मुसलमान तेरे मदरसे से गुज़रेगा उस के अज़ाब में तख़फ़ीफ़ यानि कमी की जाएगी, मुजद्दिदे आज़म सरकार आला हज़रत फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं

नज़ा में, गोर में मीज़ा पे सरे पुल पे कहीं
न छुटे हाथ से दामाने मुअल्ला तेरा

मुरदे की चीखो पुकार :- एक बार सरदारे औलिया हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह में लोगों ने हाज़िर होकर अर्ज़ किया हुज़ूर “बाबुल अज़ज” के क़ब्रिस्ता में एक क़ब्र से मुरदे की चीखने की आवाज़ें आ रही हैं हुज़ूर कुछ करम फरमा दीजिए के बेचारे का अज़ाब दूर हो जाए आप ने इरशाद फ़रमाया क्या उसने मुझ से खिरकाए खिलाफत पहना हैं? लोगों ने अर्ज़ की हमें मालूम नहीं फ़रमाया क्या कभी वो मेरी मजलिस में हाज़िर हुआ? लोगों ने ला इल्मी का इज़हार किया फ़रमाया क्या उसने कभी मेरा खाना खाया? लोगों ने फिर इंकार किया आप ने पूछा क्या उसने कभी मेरे पीछे नमाज़ अदा की? लोगों ने वही जवाब दिया आप ने ज़रा सा सरे अक़दस झुकाया जलालो वक़ार के आसार ज़ाहिर हुए कुछ देर के बाद फ़रमाया मुझे अभी अभी फरिश्तों ने बताया उसने आप की ज़्यारत की है और उसे आप से अक़ीदत भी थी लिहाज़ा अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने उस पर रहम किया, अल हम्दुलिल्लाह उसकी क़ब्र से आवाज़ें आनी बंद हो गयीं, मुजद्दिदे आज़म सरकार आला हज़रत फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं,

बद सही चोर सही मुजरिमो नाकारा सही
ए वो कैसा ही सही है तो करीमा तेरा

शरह :- में ख़्वाह चाहे बुरा हूँ या चोर मुजरिम हूँ या बेकार जैसा भी हूँ तो तेरा ही लिहाज़ा ये मेरे ऐब दूर कर के मुझे अच्छा भला बना दे इस शेर में इस बात की तरफ इशारा है बाज़ औक़ात चोर आप के घर में चोरी करने के लिए दाखिल हुए तो आप ने उनको नेक व मुत्तक़ी बनाकर दरजए विलायत अता कर दिया सैंकड़ों वाक़िआत इस पर शाहिद हैं नमूने के तौर पर एक वाक़िआ हाज़िर है,
चोर क़ुतब बन गया :- एक बार सरदारे औलिया हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह के घर में चोर आया और आप की चादर उठाई फ़ौरन अन्धा हो गया चारदर उसी वक़्त रख दी अच्छा हो गया देखने लगा फिर चादर उठाई तो फिर अन्धा हो गया इसी तरह तीन बार हुआ चौथी बार चादर रख भी दी फिर भी रौशनी नहीं आयी अन्धा ही रहा इसी मक़ाम पर बैठा रहा, हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह को इस का सब हाल मालूम होता रहा आप पूरी रात नफ़ाफ़िल पढ़ते रहे जब सुबह की नमाज़ से फारिग हुए हज़रत खिज़र अलैहिस्सलाम आप की खिदमत में तशरीफ़ लाए और कहा के फुलां शहर में अब्दाल का इन्तिक़ाल हो गया है आप जिस को चाहे उसकी जगह पर मुक़र्रर किया जाए आप ने फ़रमाया के शब को हमारे घर में एक मेहमान आये हैं उनको लाओ वही अन्धा चोर हाज़िर किया गया आप ने एक तवज्जु डाली उसी वक़्त उस की आँख खुल गयी अब्दाल का मर्तबा हासिल हो गया फ़रमाया इनको ले जाओ उनकी जगह पर मुक़र्रर कर दो,

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एक और चोर :- एक शख्स हुज़ूर गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह के घर में चोरी की नियत से घुसा मगर कुछ नहीं पाया आप ने खादिम से फ़रमाया के हमारे घर से चोर खली जा रहा है इस में हमारे दरवाज़े की बदनामी है खादिम ने अर्ज़ किया के क्या दे दिया जाए? फ़रमाया वो दिया जाए जो दोनों जहान में इस के काम आये हमें याद क्या करेगा फुलां जगह के क़ुतब का इन्तिक़ा हो गया है इसे वहां का क़ुतब बना कर भेज दो, देखो आया था तो चोर था और गया था क़ुतब बन कर, ए सरकारे बग़दाद हम गुनहगारों चोरों पर भी नज़रे करम हो जाए,

गौसे पाक के कुत्ते का शेर पर ग़ालिब आना :- शेख अबु मसऊद इबने अबु बक्र से रिवायत है कि एक वली जिनका नाम शेख अहमद जाम ज़िंदाफील है वो शेर पर बैठ कर ही सफर किया करते थे और जहां भी आप मेहमान होते तो अपने शेर के लिए एक गाय खुराक़ में तलब करते,एक मर्तबा आप किसी वली के पास गए और शेर के लिए गाय मांगी तो उन्होंने गाय पेश तो कर दी मगर आपको रंज हुआ और आपने उनको सबक सिखाने के लिए कहला भेजा कि बग़दाद शरीफ चले जाइये वहां आपकी और आपके शेर दोनों की बहुत अच्छी दावत होगी,आप उनके कहने के मुताबिक बग़दाद शरीफ पहुंच गए और एक जगह पड़ाव डाल दिया और किसी के ज़रिये हुज़ूर ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के पास कहला भेजा कि हम उनके मेहमान हैं सो हमारे शेर के लिए भी एक गाय भेज दी जाए,हुज़ूर ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने अपने खादिम के ज़रिये कहला भेजा कि अभी गाय रवाना की जाती है वो वली बहुत खुश हुए और कहने लगे कि देखा हमारा दबदबा,खैर इधर जब खानक़ाह से एक गाय बाहर निकली तो आस्ताने के बाहर एक दुबला पतला कुत्ता बैठा रहता था जो कि उसी आस्ताने के लंगर खाने की हड्डियों पर बसर करता था,जब उसने अपने आस्ताने की गाय को बाहर जाता देखा तो वो भी साथ हो लिया अब जब गाय शेर के सामने पहुंची तो शेर ने उस पर हमला करना चाहा जैसे ही कुत्ते ने देखा कि गाय मुश्किल में है फौरन वो शेर पर झपट पड़ा और मुंह से शेर का गला पकड़ा और अपने नाखूनों से उसका पेट फाड़ डाला शेर वहीं गिरकर मर गया और कुत्ता अपनी गाय लेकर आस्ताने वापस लौट आया,शेख अहमद जाम ने जब कुत्ते की जुर्रत देखी तो फौरन समझ गये कि ये मुझ पर तंबीह है फौरन बारगाहे ग़ौसियत में हाज़िर होकर माफी मांगी और दुआ के तलबगार हुए, इसी वाक़िए की मंज़र कशी करते हुए सरकार आला हज़रत मुजद्दिदे आज़म फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं,

क्या दबे जिस पे हिमायत का हो पंजा तेरा
शेर को खतरे में लाता नहीं कुत्ता तेरा

और सरकार आला हज़रत मुजद्दिदे आज़म फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं, के खलीफा अल्लामा जमीले क़ादरी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं,
सलातीने जहां क्यूँकर न उन के रोब से कांपें
न लाया शेर को खतरे में कुत्ता गौसे आज़म का

मआख़िज़ व मराजे :- बहजातुल असरार, क़लाइदुल जवाहिर, हयाते ग़ौसुल वरा, मिरातुल असरार, नफ़्हातुल उन्स, खज़ीनतुल असफिया, तज़किराये मशाइखे क़दीरिया बरकातिया, गौसे जीलानी, अख़बारूल अखियार, गौसे पाक के हालात, सीरते गौसुस सक़लैन, अवारिफुल मआरिफ़, सीरते गौसे आज़म, बुज़ुर्गों के अक़ीदे,

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