औलियाए किराम का फैज़ान :- बर्रे सगीर हिंदुस्तान पाकिस्तान में हज़रत सय्यदना दाता गंज बख्श अली बिन उस्मान हजवेरी जुल्लाबी रहमतुल्लाह अलैह, जैसे बुज़रुग आए, ख्वाजाए ख्वाजगान हज़रत ख्वाजा मुईनुद्दीन हसन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह जैसे बुज़रुग, और हज़रत सय्यदना मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी, क़ुत्बुल अक़ताब ख्वाज हज़रत ख्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तियार काकी हज़रत शैख़ बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर, हज़रत ख्वाजा बाक़ी बिल्लाह देहलवी, हज़रत ख्वाजा बंदानवाज़ गेसूदराज़, रहमतुल्लाहि तआला अलैहिम अजमईन, जैसे औलियाए किराम तशरीफ़ लाए हिंदुस्तान व पाकिस्तान में इन औलियाए किराम और इन के अलावा बेशुमार औलियाए किराम की मेहनतों ही का समरा नतीजा है के दीने इस्लाम हिंदुस्तान व पाकिस्तान के कोने कोने में फैला,
सुल्तानुल मशाइख हज़रत ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया सरकार महबूबे इलाहि रहमतुल्लाह अलैह का शुमार भी इन ही औलियाए किराम में होता है

सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया का नाम :- आप रहमतुल्लाह अलैह का नाम “मुहम्मद” है, आप के वालिद माजिद का नाम “हज़रत ख़्वाजा अहमद रहमतुल्लाह अलैह” और आप “सरकार महबूबे इलाही, निज़ामुद्दीन औलिया अल्मारूफ़ महबूबे इलाही” के नाम से मशहूर हुए,

सरकार महबूबे इलाही को निज़ामुद्दीन क्यों कहते हैं? :- सरकार महबूबे इलाही को निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह के खलीफा हज़रत ख्वाजा बुरहानुद्दीन गरीब रहमतुल्लाह अलैह आप के लक़ब “निज़ामुद्दीन” के बारे में फरमाते हैं के एक दिन बदायूं में सरकार महबूबे इलाहि रहमतुल्लाह अलैह अपने माकन में तशरीफ़ फरमा थे के किसी ने आवाज़ दी मौलाना निज़ामुद्दीन शैख़, आप समझे के मुझे किसी ने पुकारा है, आप ने मकान से बाहर जाकर देखा तो रिजालुल ग़ैब से ये आवाज़ आई अस्सलामु अलईकुम “मौलाना निज़ामुद्दीन शैख़” चुनाचे आप रहमतुल्लाह अलैह उस दिन से “निज़ामुद्दीन” के लक़ब से मशहूर हो गए,

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सरकार महबूबे इलाही का सिलसिलए नसब :- सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही हज़रत ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह का तअल्लुक़ सादात घराने से था, आप का सिलसिलए नसब कुछ वास्तों से शहीदे कर्बला हज़रत सय्यदना इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु से जा मिलता है, आप के वालिद माजिद की तरफ से सिलसिलए नसब इस तरह है:

  • सुल्तानुल मशाइख हज़रत ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह,
  • बिन हज़रत ख़्वाजा सय्यद अहमद रहमतुल्लाह अलैह,
  • बिन हज़रत सय्यद अली बुखारी रहमतुल्लाह अलैह,
  • बिन हज़रत सय्यद अब्दुल्लाह रहमतुल्लाह अलैह,
  • बिन हज़रत सय्यद हसन रहमतुल्लाह अलैह,
  • बिन हज़रत सय्यद अली मशहदी रहमतुल्लाह अलैह,
  • बिन हज़रत सय्यद अहमद मशहदी रहमतुल्लाह अलैह,
  • बिन हज़रत सय्यद अभी अब्दुल्लाह रहमतुल्लाह अलैह,
  • बिन हज़रत सय्यद अली असगर रहमतुल्लाह अलैह,
  • बिन हज़रत सय्यद जाफ़र सानी रहमतुल्लाह अलैह,
  • बिन हज़रत सय्यद इमाम अली हादी नक़ी रहमतुल्लाह अलैह,
  • बिन हज़रत सय्यद इमाम मुहम्मद तक़ी रहमतुल्लाह अलैह,
  • बिन हज़रत सय्यद इमाम अली रज़ा रहमतुल्लाह अलैह,
  • बिन हज़रत सय्यद इमाम मूसा काज़िम रहमतुल्लाह अलैह,
  • बिन हज़रत सय्यद इमाम जाफ़र सादिक़ रहमतुल्लाह अलैह,
  • बिन हज़रत सय्यद इमाम मुहम्मद बाक़िर रहमतुल्लाह अलैह,
  • बिन हज़रत सय्यद इमाम ज़ैनुल अबिदीन रहमतुल्लाह अलैह,
  • बिन हज़रत सय्यद इमाम हुसैन रदियल्लाहु अन्हु,
  • बिन अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली शेरे खुदा कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम,
  • सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही हज़रत ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह की वालिदा माजिदा की तरफ से सिलसिलाए नसब इस तरह है :-
  • सुल्तानुल मशाइख हज़रत ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह,
  • बिन हज़रत बीबी ज़ुलैख़ा रहमतुल्लाहि तआला अलैहा,
  • बिन हज़रत सय्यद अरब रहमतुल्लाह अलैह,
  • बिन हज़रत सय्यद मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह,
  • बिन हज़रत सय्यद हसन रहमतुल्लाह अलैह,
  • हज़रत सय्यद हसन रहमतुल्लाह अलैह पर सुल्तानुल मशाइख हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह का सिलसिलए नसब वालिद और वालिदा दोनों मिल जाते हैं,

सरकार महबूबे इलाही के वालिदैन :- “सैरुल औलिया” में है के सरकार महबूबे इलाही के दादा हज़रत ख्वाजा अली रहमतुल्लाह अलैह और आप के नाना हज़रत ख्वाजा अरब रहमतुल्लाह अलैह उज़्बेकिस्तान के बुखारा शहर की चंगेज़ खान के हाथों तबाही के बाद हिंदुस्तान तशरीफ़ लाए, इन बुज़ुरगों ने हिंदुस्तान आने के बाद लाहौर में क़याम किया, कुछ अरसा क़याम करने के बाद ये दोनों बुजरुग बदायूं तशरीफ़ ले गए और वही मुस्तक़िल सुकूनत इख़्तियार की, ये दोनों बुज़रुग सगे भाई नहीं थे लेकिन दोनों में सगे भाइयों की तरह प्यार मुहब्बत था प्यार मुहब्बत की वजह से हज़रत ख्वाजा अली रहमतुल्लाह अलैह के साहबज़ादे हज़रत ख्वाजा सय्यद अहमद रहमतुल्लाह अलैह की शादी हज़रत ख्वाजा अरब रहमतुल्लाह अलैह की साहबज़ादी हज़रत बीबी ज़ुलैख़ा रहमतुल्लाह अलैहा से हुई,

SARKAAR MEHBOOBE ILAAHI NIZAMUDDEEN AULIYA RAHMATULLAH ALAIH KA MAZAR DELHI ME NIZAMUDDEEN BASTI ME HAI AAP KA MAZAR SHARIF NIZAMUDDEEN STATION KE PAAS ME HAI

सरकार महबूबे इलाही के वालिद :- सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह के वालिद माजिद हज़रत ख्वाजा सय्यद अहमद रहमतुल्लाह अलैह मादर ज़ाद वली थे, आप अमानतों दियानतदारी में सानी नहीं रखते थे, आप की इल्मी क़ाबिलियत को देखते हुए सुल्तानुल वक़्त ने आप को बदायूं का “क़ाज़ीउल क़ुज़्ज़ा” मुक़र्रर किया मगर आप ने इस उहदे को ठुकरा दिया, आप चूंकि गोशा नशीन बुज़रुग थे, और दुनिया की तरफ मैलान नहीं रखते थे, इसी लिए क़ाज़ी का उहदा क़बूल करने से इंकार कर दिया, हज़रत ख्वाजा सय्यद अहमद रहमतुल्लाह अलैह अपने वालिद मुहतरम हज़रत ख्वाजा सय्यद अली रहमतुल्लाह अलैह के दस्ते पाक पर बैअत हुए, हज़रत ख्वाजा सय्यद अली रहमतुल्लाह अलैह और हज़रत ख्वाजा सय्यद अरब रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत ख्वाजा उस्मान हारूनी रहमतुल्लाह अलैह, के हाथ पर सिलसिलए चिश्तिया में मुरीद हुए, हज़रत ख्वाजा सय्यद अहमद रहमतुल्लाह बैअत होने के बाद गोशा नशीनी इख्तियार फ़रमाली,
हज़रत ख्वाजा सय्यद अहमद रहमतुल्लाह अलैह ने पांच 5, ज़िल्हिज्जा छेह सौ इकतालीस 641, हिजरी को विसाल फ़रमाया, आप का मज़ारे मुबारक उत्तर प्रदेश के शहर बदायूं शरीफ में है,

सरकार महबूबे इलाही की वालिदा माजिदा :- रकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह की वालिदा माजिदा हज़रत बीबी ज़ुलैख़ा रहमतुल्लाहि तआला अलैहा, ख्वाजा सय्यद अरब रहमतुल्लाह अलैहा की साहबज़ादी हैं, आप अपने ज़ुहदो तक़वा और परहेज़गारी की बदौलत राबिया सानी शोमर होती हैं, सब्र शुक्र और तस्लीम व रज़ा में आप का मक़ाम बहुत बुलंद है आप साहिबे कशफो करामात वलीउल्लाह थीं,
“सैरुल औलिया” में मन्क़ूल है के जब हज़रत बीबी ज़ुलैख़ा रहमतुल्लाह अलैह को कोई भी काम दरपेश होता तो वो उस का अंजाम ख्वाब में मुलाहिज़ा फरमा लेतीं, जब हज़रत ख्वाजा सय्यद अहमद रहमतुल्लाह अलैह का विसाल नज़दीक आया तो आप ने ख्वाब में देखा के कोई आप से कह रहा है के तुम अपने शोहर को इख़्तियार करो या फ़रज़न्द को आप के मुँह से बे इख़्तियार निकला के फ़रज़न्द को, चुनाचे कुछ अरसे बाद हज़रत ख्वाजा सय्यद अहमद रहमतुल्लाह अलैह का विसाल हो गया,
सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के मेरी वालिदा को जब भी कोई हाजत दरपेश होती तो आप झोली फैलाकर पांच सौ 500, बार दुरूद शरीफ पढ़तीं और वो हाजत पूरी हो जाती,
सरकार महबूबे इलाही आप की वालिदा बीबी ज़ुलैख़ा रहमतुल्लाह अलैह का विसाल दिल्ली में हुआ और आप दिल्ली में अपने माकन में ही मदफ़ून हुईं, इसी मकान में हज़रत बीबी नूर रहमतुल्लाह अलैहा और हज़रत बीबी हूर रहमतुल्लाह अलैहा जो के शैख़ुश शीयूख हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह की साहबज़ादियाँ हैं उन के भी मज़ारे पाक मौजूद हैं और मरजए खलाइक़ खासो आम है आप का मज़ार अढ़चनी मेहरोली के पास दिल्ली में है,

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सरकार महबूबे इलाही की पैदाइश :- सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह की पैदाइश 27, सफारुल मुज़फ्फर 636, छेह सौ छत्तीस हिजरी को बरोज़ बुद्ध हिंदुस्तान के शहर बदायूं में हुई, आप रहमतुल्लाह अलैह की पैदाइश अल्लाह तआला की तरफ से एक बहुत बड़ा इनामो एहसान है, आप की सुहबत के फैज़ से हज़ारों लोग राहे रास्त पर आए, आप के फैज़ान का दरिया अब भी जारी व सारी है जिससे एक आलम सैराब हो रहा है,

सरकार महबूबे इलाही की इब्तिदाई तालीम :- सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह “फफाईदुल फफाइद” में सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के बदायूं में उस वक़्त मौलाना शादी मुकरी रहमतुल्लाह अलैह साहिबे कशफो करामत बुज़रुग थे उनकी अदना करामत ये थी जो कोई भी एक बार एक पारा पढ़ लेता उस को क़ुरआन मजीद हिफ़्ज़ हो जाता था में ने उन से एक पारा पढ़ा और अल्लाह तआला ने मुझे पूरा क़ुरआन हिफ़्ज़ करा दिया,
“खैरुल मजालिस” में मन्क़ूल है के बदायूं में सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने किताब कुदूरि जय्यद आलिमे दीन हज़रत मौलाना अलाउद्दीन उसूली रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में रह कर पढ़ी हज़रत मौलाना अलाउद्दीन उसूली रहमतुल्लाह अलैह फ़िक़रो फ़ाक़े से ज़िन्दगी बसर करते थे,
सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह को अपने आबाई वतन बदायूं से बहुत मुहब्बत थी आप की बदायूं से मुहब्बत का सुबूत आप की तहरीरों और मजलिसों में जाबजा मिलता है बदायूं में आप ने वालिद की वफ़ात के बाद निहायत ही तंग दस्ती में ज़िन्दगी गुज़ारी ये फ़िक़रो फ़ाक़ा आगे चल कर आप रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी का नुमाया पहलू बना आप की वालीदह की ख्वाइश थी की आप और तालीम हासिल करें चुनाचे इसी ख्वाइश के पेशे नज़र आप अपनी वालिदा और बहिन के साथ बदायूं से दिल्ली चले आये,

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सरकार महबूबे इलाही का दिल्ली तशरीफ़ लाना :- सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह जब वालिदा और हमशीरा (बहिन) के साथ दिल्ली पहुंचे तो उस वक़्त बादशाह सुल्तान गियासुद्दीन बलबन तख़्त अफ़रोज़ था, सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने हज़रत शैख़ नजीबुद्दीन मुतावक्किल रहमतुल्लाह अलैह के पड़ोस में सुकूनत इख्तियार की, हज़रत शैख़ नजीबुद्दीन मुतावक्किल रहमतुल्लाह “शैख़ुश शीयूख हज़रत शैख़ बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह” के हक़ीक़ी यानि सगे भाई थे,
दिल्ली पहुंच कर सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह कई साल इल्मे दीन हासिल करते रहे, इस दौरान आप ने मौलाना शमशुल मलिक रहमतुल्लाह अलैह और मौलाना अमीनुद्दीन अहमद मुहद्दिस रहमतुल्लाह अलैह की सुहबतों से फैज़ हासिल किया, खास तौर पर मौलाना शमशुल मलिक रहमतुल्लाह अलैह ने आप पर ख़ास तवज्जु फ़रमाई,
उस दौर में अक्सर उल्माए किराम मौलाना शमशुल मलिक रहमतुल्लाह अलैह के शागिर्द थे, “जवाहर फरीदी” में है के सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह दिल्ली में “क़ुत्बुल अक़ताब हज़रत ख्वाजा क़ुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह” के मज़ारे पाक पर क़दम बोसी हाज़री के लिए गए, वहां आप की मुलाक़ात एक मजज़ूब से हुई आप ने उस मजज़ूब से दुआ की दरख्वास्त की के में क़ाज़ी बन जाऊं, मजज़ूब ने कहा के “निज़ामुद्दीन” तुम क़ाज़ी होना चाहते हो जब के में तुम्हे दीन का बादशाह देखता हूँ और तुम ऐसे मर्तबे पर पहुंचोगे के एक आलम तुम से फैज़ हासिल करेगा मजज़ूब की बात सुन कर आप के दिल में क़ाज़ी बनने की चाहत ख़त्म हो गयी
अब अपने तमाम मिलने वालों से यही कहते की में दुरवेशी इख़्तियार करूंगा,
सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह चूंकि दिल्ली में हज़रत शैख़ नजीबुद्दीन मुतावक्किल रहमतुल्लाह अलैह के पड़ोस में रहते थे इस लिए अक्सर वक़्त उन की सुहबत से फ़ैज़याब होते रहे, आप की वालिदा के विसाल के बाद तो अकसर वक़्त हज़रत शैख़ नजीबुद्दीन मुतावक्किल रहमतुल्लाह अलैह की सुहबत में ही गुज़रता था,
“सैरुल औलिया” में मन्क़ूल है की सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने मौलाना शमशुल मलिक रहमतुल्लाह अलैह से मक़ामाते हरिरि हिफ़्ज़ की, इस के बाद हज़रत मौलाना कमालुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह से “मशरिक़ुल अनवार” को हिफ़्ज़ किया और सनद हासिल की,
सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं की हज़रत मौलाना कमालुद्दीन मुहद्दिस रहमतुल्लाह अलैह के ज़ुहदो तक़वा की शोहरत जब सुल्तान गियासुद्दीन बलबन ने सुनी तो उसने इमामत का उहदा आप के सुपुर्द करना चाहा, सुल्तान गियासुद्दीन बलबन ने आप से दरख्वास्त की के अगर हुज़ूर मेरी इमामत क़बूल फ़रमालें तो मुझे अपनी नमाज़ की क़बूलियत का यक़ीन हो जाएगा, हज़रत मौलाना कमालुद्दीन मुहद्दिस रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के मेरे पास नमाज़ के सिवा कुछ नहीं है और अब बादशाह मुझ से मेरी नमाज़ छीन लेना चाहता हैं, ये फरमा कर आप ने इमामत क़बूल करने से इंकार कर दिया, हज़रत मौलाना कमालुद्दीन मुहद्दिस रहमतुल्लाह अलैह ने सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह को दरस व तदरीस की इजाज़त देते हुए सनद अता फ़रमाई,
“किताब मशरिक़ुल अनवार” को हिफ़्ज़ करने से पहले सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह तमाम उलूमे ज़ाहिरी फ़िक़ाहों हदीस, तफ़्सीर, कलाम, मुआनी, मंतिक, हिकमत, फलसफा, हय्यत, हिंदसा, लुग़त अदब, व किरात और दीगर दुसरे उलूम हासिल कर चुके थे और क़ुरआन मजीद आप को उस वक़्त की राइज सातों किरातों में हिफ़्ज़ था, सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह उलूमे ज़ाहिरी में दर्जाए कमाल तक पहुंचे, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने आप के क़ल्ब को अपनी मुहब्बत से भर रखा था इसी दौरान आप के दिल में बैअत का ख़याल गर्दिश करने लगा,

SARKAAR MEHBOOBE ILAAHI NIZAMUDDEEN AULIYA RAHMATULLAH ALAIH KA MAZAR DELHI ME NIZAMUDDEEN BASTI ME HAI AAP KA MAZAR SHARIF NIZAMUDDEEN STATION KE PAAS ME HAI

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सरकार महबूबे इलाही के पिरो मुर्शिद कौन हैं? :- सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के जब में ज़ाहिरी तालीम व तरबियत से फारिग हो गया तो मेने अपने अक़रबा और दोस्तों से मुर्शिदे कामिल के बारे में दरयाफ्त किया जिन के दस्ते हक़ पर में मुरीद हो सकूं उन्होंने मुझे मशवरा दिया की इस वक़्त दिल्ली में हज़रत शैख़ नजीबुद्दीन मुतावक्किल रहमतुल्लाह अलैह से बढ़ कर कोई बुज़रुग नहीं हैं तुम्हे उनके दस्ते हक़ पर मुरीद होना चाहिए चुनाचे मेने हज़रत शैख़ नजीबुद्दीन मुतावक्किल रहमतुल्लाह अलैह से मुरीद की दरख्वास्त की तो उन्होंने फ़रमाया के इस वक़्त दो बुज़रुग ही,
इमामे ज़माना हैं तुम उन में से किसी एक के हाथ पर मुरीद हो जाओ उन बुज़ुर्गों में शैखुल इस्लाम हज़रत शैख़ ग़ौस बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह और “शैख़ुश शीयूख वल आलम हज़रत शैख़ बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह” शामिल हैं,
सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के मुझ पर उस वक़्त शौक़े ऐसा ग़ालिब था के में अलगे दिन ही बगैर साज़ो सामान के अजूधन (आज जिस का नाम पाक पटन है) रवाना हो गया जब में मंज़िल बा मंज़िल हांसी पंहुचा तो पता चला की आगे रास्ते पर खतरा हैं चुनांचे मेने तीन दिन हांसी में क़याम किया उस दौरान एक क़ाफ़िला हांसी पंहुचा जो अजूधन की तरफ जा रहा था मेने काफिले के सरदार से दरख्वास्त की और उन्होंने मुझे काफिले में शामिल कर लिया रास्ते में जब भी किसी भी क़िस्म का कोई खतरा महसूस होता तो काफिले का सरदार खड़ा होकर बा आवाज़ बुलंद “पिरो मुर्शिद दस्तगीर” पुकारता और खतरा दूर हो जाता मेने काफिले के सरदार से पूछा के तुम्हारा पीर कौन हैं?
तो उसने मुझ से कहा की मेरे पीरो मुर्शिद शैख़ुश शीयूख वल आलम हज़रत शैख़ बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह हैं, और में उन्ही को पुकारता हूँ चुनाचे मेरे दिल में पीरो मुर्शिद की क़द्रो मन्ज़िलत बढ़ गयी उस दौरान क़ाफ़िला उस मक़ाम पर पहुंच गया जहाँ से एक रास्ता मुल्तान की जानिब और दूसरा अजूधन की तरफ जाता था,
में एक मर्तबा फिर सोच में गम हो गया की मुल्तान जाऊं या अजूधन इसी ख्याल में मुझे तीन दिन गुज़र गए और वो क़ाफ़िला आगे रवाना हो गया और में कोई फैसला नहीं कर पाया सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के तीसरे दिन मुझे ख्वाब में हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत बा सआदत नसीब हुई आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझ से फ़रमाया के “निज़ामुद्दीन” तुम अजूधन का रास्ता पकड़ो चुनाचे जब में ख्वाब से बेदार हुआ तो मेरे दिल में ये बात रसिख हो चुकी थी के मेरा मक़सूद अजूधन में है मेने तमाम औरादो वज़ाइफ़ को छोड़ दिया और वालिहाना अंदाज़ में “या फरीद या फरीद” कहता हुआ अजूधन की तरफ रवाना हो गया बिला आख़िर 15, रजाबुल मुरज्जब 655, हिजरी को में अजूधन शहर में दाखिल हुआ,
ज़ुहर की नमाज़ के बाद शैख़ुश शीयूख वल आलम हज़रत शैख़ बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हुआ और क़दम बोसी की सआदत हासिल की और शैख़ुश शीयूख वल आलम हज़रत शैख़ बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह ने मुझे देखते ही सलाम में पहिल की,
सरकार मेहबूले इलाही रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के कोशिश की के अपने दिल का हाल बयान करूँ मगर शैख़ुश शीयूख वल आलम हज़रत शैख़ बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह की अज़मत के रोअब ने मुझे कुछ बोलने से रोक रखा में सिवाए “बैअत” की दरख्वास्त के और कुछ अर्ज़ न कर सका,
फिर इस के बाद मुझे “बैअत की सआदत” शैख़ुश शीयूख वल आलम हज़रत शैख़ बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह ने मुझे मुरीद फ़रमाया और मुझे टोपी अता फ़रमाई और खिरकाए व नालेंन भी अता फ़रमाई,
उस के बाद फ़रमाया “निज़ामुद्दीन” में चाहता था के हिंदुस्तान की विलायत किस को दूँ मगर तुम रास्ते में आगए मुझे ग़ैब से आवाज़ आयी के अभी ठहर जाओ “निज़ामुद्दीन” आ रहा हैं और हिंदुस्तान की विलायत के लाइक वही है और विलायत उन्ही को देनी चाहिए,

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सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह का दिल्ली रवाना होना :- सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं जब में पिरो मुर्शिद के हुक्म के मुताबिक अजूधन (आज जिस का नाम पाक पटन है) से दिल्ली आ रहा था तो रास्ते में एक जंगल से गुज़र हुआ जब में जंगल में गुज़र रहा था तो बारिश शुरू हो गई, में एक पेड़ के नीचे खड़ा हो गया, इस दौरान अचानक छेह 6, हिन्दू तलवारे लिए मेरी तरफ आने लगे मेरे पास उस वक़्त पिरो मुर्शिद के कम्मबल के सिवा कुछ नहीं था,
आप फरमाते हैं मेरे दिल में ख़याल आया के अगर उन्होंने मुझ से पिरो मुर्शिद का कम्मबल छीन लिया तो में कभी किसी शख्स को अपनी सूरत नहीं दिखाऊंगा, चुनाचे अल्लाह तआला ने मेरी तरफ से बागी कर दिया और वो मुझे बगैर कुछ नुकसान पहुंचाए बगैर वापस चले गए,
सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह दिल्ली पहुंचे तो आप ने हज़रत शैख़ नजीबुद्दीन मुतावक्किल रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर होकर अपनी बैअत की सआदत बयान की शैख़ुश शीयूख वल आलम हज़रत शैख़ बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह का हाल बयान किया हज़रत शैख़ नजीबुद्दीन मुतावक्किल रहमतुल्लाह अलैह बहुत खुश हुए,

अदाएगी क़र्ज़ :- सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के दिल्ली पहुँच कर मुझे पिरो मुर्शिद की नसीहत याद आ गई के जो भी क़र्ज़ अदा करना हो उसे जल्द से जल्द अदा करने की कोशिश करना चुनाचे मुझे याद आया के एक बार मेने एक दोस्त से किताब ली थी और वो किताब मेरे पास ग़ुम हो गई थी और में उसे वापस नहीं कर सका, में उस के माकन पर गया और उससे कहा के वो किताब मेरे पास से ग़ुम हो गई है, में उसकी नकल हासिल करने की कोशिश करूंगा और फिर वो तुम्हे तहरीर कर के पंहुचा दूंगा, उस दोस्त ने मेरी बात सुन कर कहा के जिस जगह गए थे ये उसी जगह की बरकत है तुम्हे अल्लाह पाक की ख़ुशनूदी हासिल हो और तुम अपने इस नेक मक़सद में कामयाब हो मेने वो किताब तुम्हे बख्श दी,

SARKAAR MEHBOOBE ILAAHI NIZAMUDDEEN AULIYA RAHMATULLAH ALAIH KA MAZAR DELHI ME NIZAMUDDEEN BASTI ME HAI AAP KA MAZAR SHARIF NIZAMUDDEEN STATION KE PAAS ME HAI

दिल्ली में आप का क़याम :- “सैरुल औलिया” में मन्क़ूल है के जब सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने तमाम उमर कोई ज़ाती माकन हासिल नहीं किया, आप जब बदायूं से पहली मर्तबा दिल्ली तशरीफ़ लाए थे तो सराए नमक में क़याम फ़रमाया था,
इस के बाद जब अजूधन से तशरीफ़ लाए तो हज़रत अमीर खुसरू रहमतुल्लाह अलैह के नाना के माकन में क़याम फ़रमाया, ये माकन दिल्ली क़िले के बुर्ज से मुत्तसिल दरवाज़ा मंदा और पुल के क़रीब था, इस माकन की इमारत निहायत वसी व बुलंद थी हज़रत सय्यद मुहम्मद किरमानी रहमतुल्लाह अलैह जब अजूधन (आज जिस का नाम पाक पटन है) से बच्चों के साथ दिल्ली आए तो वो भी आप के पास इसी मकान में रिहाइश इख़्तियार की इस मकान की तीन मंज़िलें थीं, पहली मंज़िल में हज़रत सय्यद मुहम्मद किरमानी रहमतुल्लाह अलैह अपने बच्चों के साथ रहते थे, बीच की मंज़िल में सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह रहते थे, और सब से ऊपर वाली मंज़िल याराने तरीक़त के लिए थी इसी मंज़िल में खाना वगैरह भी खर्च होता था,
हज़रत सय्यद मुहम्मद किरमानी रहमतुल्लाह अलैह की अहलिया हज़रत बीवी रानी रहमतुल्लाह अलैहा जो के हज़रत शैख़ बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह की मुरीद थीं वो सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत अंजाम देती थीं, हज़रत सय्यद मुहम्मद किरमानी रहमतुल्लाह अलैह वुज़ू वगैरह का इंतिज़ाम करते थे,

सरकार महबूबे इलाही की रियाज़त व मुजाहिदात :- सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह 20, साल की उमर में शैख़ुश शीयूख व आलम हज़रत शैख़ बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हुए थे और बैअत व इरादत की सआदत से मुशर्रफ हुए बैअत होने के बाद आप ने तमाम दुनियावी उमूर से किनारा कशी इख़्तियार करली रियाज़त व मुजाहिदात में मसरूफ हो गए,

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सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की सीरते पाक :- “खैरुल मजालिस” में है हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन मेहमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह रिवायत करते हैं के मेने अपने पिरो मुर्शिद सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह से सुना के एक मर्तबा जब वो दरवाज़ा मंदा के पास रहते थे, तो तीन रोज़ गुज़र गए मगर कुछ फुतूहात नहीं हुई, एक दिन एक शख्स दरवाज़े पर आया तो उस के साथ में खिचड़ी का तबाक था उसने वो तबाक आप रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में पेश किया और चला गया, मेने और मेरे अहबाब ने वो खिचड़ी खाई तो हम को ऐसा लुत्फ़ आया के कभी किसी खाने का नहीं आया था,

दीन के मदद गार :- “सैरुल औलिया” में है सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने जब गयास पुर में रहते थे आप की ख़ानक़ाह में फ़िक़रो फ़ाक़ा की कैफियत रही तीन रोज़ फ़ाक़ा करने के बाद सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह के मुरीद शहर भर में चक्कर लगाते और जितने भी रोटी के टुकड़े दस्तियाब होते उन को इफ्तारी के वक़्त दस्तरख्वान पर ले आते,
एक बार मुरीदों ने रोटी के टुकड़े दस्तरख्वान पर रखे और इफ्तार का इन्तिज़ार करने लगे इस दौरान एक दुरवेश ख़ानक़ाह में आये और इस ख्याल से के रोटी के टुकड़े उठा कर ले गए शायद खाने से बचे हैं सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह को जब सारी सूरते हाल से आगाह किया गया तो आप रहमतुल्लाह अलैह ने मुस्कुराकर कहा के हम को भूका रहना मंज़ूर है,
फ़िक़रो फ़ाक़ा की नौबत इस हद तक पहुंच गई के तमाम मुरीद और पीर भाई जो के हाज़िरे खिदमत थे वो परेशान हो गए मुसलसल कई रोज़ से फ़ाक़ा कशी जारी थी, इस दौरान सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी को ये खबर मिली के ख़ानक़ाह में फ़ाक़ा कशी है तो फुतुहात आप की खिदमत में भेजी और ये भी कहा के अगर हुज़ूर सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह फरमाएं तो ख़ानक़ाह के लिए कुछ दिहात नज़र कर दिए जाएं, लेकिन आप ने इससे इंकार कर दिया जब मुरीदों और दूसरे लोगों को पता चला तो उन्होंने अर्ज़ किया के आप ने इन दिहात की कमाई से एक पाई भी वुसूल न करें मगर हमारा फ़िक़रो फ़ाक़ा की वजह से बहुत बुरा हाल हो रहा है सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने उनकी बात सुनकर फ़रमाया के मुझे किसी की कोई फ़िक्र नहीं है ज़्यादा से ज़्यादा ये लोग मुझ से तंग आकर चले जाएंगें हाँ मुझे अपने पीर भाइयों से मशवरा ज़रूर करना चाहिए ताके उनकी राय भी मुझ पर बयान हो जाए इस सिलसिले में आप रहमतुल्लाह अलैह ने हज़रत सय्यद मुहम्मद किरमानी रहमतुल्लाह अलैह ने और दूसरों से मशवरा किया के क्या हमें ये दिहात क़बूल कर लेने चाहिए या नहीं सब ने कहा अभी तो हम आप रहमतुल्लाह अलैह के घर की रोटी खाते हैं अगर दिहात वुसूल कर लेंगें तो फिर हम इधर का पानी भी नहीं पीएंगे,
सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ये जवाब सुन कर बहुत खुश हुए और फ़रमाया मुझे लोगों की कुछ परवा नहीं मेरा मक़सूद तुम लोग हो तुम्हारे जवाब से मेरा दिल खुश हो गया है अल हम्दुलिल्लाह तुम मेरे दीन के कामो में मदद गार हो,

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हुसने सुलूक :- “सैरुल औलिया” में है सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह के अजूधन क़याम से मुतअल्लिक़ एक वाक़िआ मन्क़ूल है के एक बार अजूधन में क़याम के दौरान आप रहमतुल्लाह अलैह के कपड़े निहायत बोसीदा हो चुके थे जगह जगह से फट चुके थे, हज़रत बीवी रानी रहमतुल्लाहि तआला अलैहा जोज़ा हज़रत सय्यद मुहम्मद किरमानी रहमतुल्लाह अलैह को पता चला तो उन्होंने कहा के कपड़े मुझे दे दो में इनको धोकर इन पर पेवंद लगा देती हूँ, आप रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के मेरे पास पहिनने को और कोई कपड़ा नहीं, जब के उन्होंने बेहद इसरार किया और हज़रत सय्यद मुहम्मद किरमानी रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी एक लुंगी आप को दी तो आप ने कपड़े दे दिए हज़रत बीवी रानी रहमतुल्लाह अलैहा ने कपड़ों को धोकर उसको पेवंद लगा दिए और सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह को दे दिए आप ने शुकरीए के साथ वो कपड़े पहिने और उनके इस हुसने सुलूक को हमेशा याद रखा,

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शैख़ुश शीयूख व आलम हज़रत शैख़ बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह की रेशे मुबारक का बाल :- “फवाईदुल फवाइद” में सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह बयान करते हैं के एक बार में शैख़ुश शीयूख व आलम हज़रत शैख़ बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर था इस दौरान रेशे मुबारक (दाढ़ी) से एक बाल जुदा होकर सामने आया मेने आगे बढ़ कर हज़रत शैख़ बाबा फरीद रहमतुल्लाह अलैह से अर्ज़ की के हुज़ूर जो बाल रेशे मुबारक (दाढ़ी) से जुदा हुआ है अगर फरमान हो तो इसे में लेलूं में इस बाल को दिलो जान से अज़ीज़ रखूंगा हज़रत शैख़ बाबा फरीद रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के लेलो चुनाचे मेने इस बाल को निहायत एहतिराम के साथ एक कपड़े में लपेट कर रख लिया और जब दिल्ली आया तो उसको अपने साथ ले आया, जब कोई परेशान हाल शख्स मेरे पास आता तो में इस मूए मुबारक को इस इक़रार पर देता के वो सेहतयाब होने के बाद मुझे व पस कर देगा,
आप रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के अरसा तक वो मूए मुबारक मेरे पास इसी तरह रहा, एक रोज़ मौलाना ताजुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह अपने फ़रज़न्द के लिए इस मूए मुबारक को लेने मेरे पास आए, मेने हर चंद उस मूए मुबारक को तलाश किया मगर वो नहीं मिला, इस बीमारी में उनका बेटा ख़त्म हो गया, जब कुछ अरसे के बाद एक और शख्स मुझ से तावीज़ लेने के लिए आया तो में ने ताक में देखा तो वो मूए मुबारक उधर ही मौजूद था, चुनाचे में समझ गया के चूँकि मौलाना ताजुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह के फ़रज़न्द की मौत आना थी इस लिए वो मूए मुबारक तलाश करने के बावजूद नहीं मिला,

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सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की ख़ानक़ाह के इब्तिदाई हालत :- “सैरुल आरफीन” में मन्क़ूल है के सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की ख़ानक़ाह में शुरू में निहायत ही फ़िक़रो फ़ाक़ा और तंग दस्ती का आलम था,
सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने सब से पहले “मौलाना बुरहानुद्दीन गरीब रहमतुल्लाह अलैह” को खिलाफत अता फ़रमाई, हज़रत मौलाना बुरहानुद्दीन गरीब रहमतुल्लाह अलैह को दक्कन की खिलाफत मिली और शहर बुरहान पुर आप के नाम से आबाद हुआ आप का मज़ारे पाक सूबा महराष्ट्र के शर औरंगाबाद के क़स्बा खुल्दा आबाद में है, इस के बाद “मौलाना कमालुद्दीन याक़ूब रहमतुल्लाह अलैह” को खिलाफत अता फ़रमाई और आप को गुजरात की खिलाफत अता हुई शहर पटन में हौज़ शम्शी लंग के पास आप का मज़ारे पाक है,
शुरू में ये दोनों बुज़रुग सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह के पास ख़ानक़ाह में मुजाहिदा व रियाज़त में मशगूल थे एक बार चार रोज़ तक कोई फुतूहात (नज़राना) नहीं आया के जिससे रोज़ा इफ्तार किया जा सकता, सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह के पड़ोस में एक बूढ़ी औरत रहती थी जो के चरखा कात कर मज़दूरी करती और उससे गल्ला खरीद कर रोज़ा इफ्तार करती थी ये बूढ़ी औरत सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह से निहायत अक़ीदत रखती थी ये बूढ़ी औरत आधा सेर आटा लेकर आप की खिदमत में हाज़िर हुई आप ने हज़रत मौलाना कमालुद्दीन याक़ूब रहमतुल्लाह अलैह को हुक्म दिया के इस आटे को हंडिया में डाल कर और इस में कुछ पानी डाल कर आग पर रख दो शायद कोई मेहमान आ जाए,
हज़रत मौलाना कमालुद्दीन याक़ूब रहमतुल्लाह अलैह ने पिरो मुर्शिद के हुक्म पर ऐसा ही किया और हंडिया चूले पर रख दी इस दौरान एक कंबल पोश दुर्वेश आया और कहा के ए शैख़ अगर कुछ होतो मेरे पास लाइए, सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के दुरवेशों का काम शफ़क़त का है आप रहमतुल्लाह अलैह हंडिया लाएं हंडिया पक रही है दुर्वेश ने कहा के आप रहमतुल्लाह अलैह खुद उठिए और मेरे पास ले आइए,
उस दुर्वेश ने हंडिया में हाथ डाला और खाना शुरू कर दिया, हडिंया उस वक़्त जोश मर रही थी मगर वो दुर्वेश बराबर उस में हाथ डालकर खाता रहा, जब दुर्वेश खा चुका तो उसने वो हंडिया सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह के हाथ से लेकर तोड़ दी हंडिया टुकड़े टुकड़े हो गई, उस दुर्वेश ने आप रहमतुल्लाह अलैह को मुख़ातब करते हुए फ़रमाया के “निज़ामुद्दीन” हज़रत शैख़ बाबा फरीद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह ने तुम को नेमत बातनि अता फ़रमाई है तुम्हारी फ़िर्क़ फ़ाक़ा ज़ाहिरी की देग को तोड़ दिया है ये कहकर वो दुर्वेश नज़रों से गायब हो गया इस वाक़िए के बाद सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में बेशुमार फुतूहात और नज़राने बहुत आना शुरू हो गए और ख़ानक़ाह में कभी भी फ़िक़रो फ़ाक़ा की कैफियत नहीं हुई,
“खैरुल मजालिस” में मन्क़ूल है के सरकार महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह की ख़ानक़ाह में बेहिसाब नज़राना आता था लेकिन आप मगरिब तक सब कुछ फ़क़ीर मिस्कीन पर खर्च कर देते थे जो शख्स कम लेकर हाज़िर होता वो बहुत ज़्यादा लेकर जाता था अगर किसी रोज़ कभी शाम तक नज़राना ख़त्म नहीं होता तो दिल बेकरार हो जाता आप के तसर्रुफ़ की शान ये थी के हर वक़्त हाजत मन्दों की भीड़ ख़ानक़ाह में रहती थी आप का दस्तूर ये था के जुमे के दिन ख़ानक़ाह में सफाई करवाते और इस दौरान जो भी माल व असबाब होता वो सब फ़क़ीरों और मसाकीन में तकसीम फरमा देते फिर इस के बाद नमाज़े जुमा की अदाएगी के लिए तशरीफ़ ले जाते,

मआख़िज़ व मराजे :- मिरातुल असरार, नफ़्हातुल उन्स, खज़ीनतुल असफिया, अख़बारूल अखियार, बुज़ुर्गों के अक़ीदे, सैरुल आरफीन, राहतुल क़ुलूब, तारीखे औलिया, तज़किराए औलियाए हिन्द, खैरुल मजालिस, जवामिउल किलम, फवाइदुल फवाइद,

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