विलादत बा सआत :- ताजुश्शरिया फकीहे इस्लाम जानशीने हुज़ूर मुफ्ती ऐ आज़म अल्लामा मुफ़्ती अल्हाज अश्शाह मुहम्मद अख्तर रज़ा खां अज़हरी क़ादरी बिन मुफ़स्सिरे आज़मे हिन्द मौलाना मुहम्मद इब्राहीम रज़ा जिलानी बिन हुज़्ज़तुल इस्लाम मौलाना मुहम्मद हामिद रज़ा बिन आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा क़ादरी फ़ाज़िले बरेलवी 25 फ़रवरी 1942 इस्वी मोहल्ला सौदाग्रान बरेली शरीफ में पैदा हुए |

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मुख़्तसर खानदानी हालात :- ताजुश्शरिया का खानदान अफगानिस्तानी नस्ल है और क़बीलए बढ़हेच से तअल्लुक़ रखते है मोरिसे आला शहज़ादे सइदुल्लाह खान कंधार हुकूमत अफगानिस्तान के वली अहद थे, खानदानी इख्तिलाफ की वजह से कंधार को तर्क वतन छोड़कर लाहौर आये | यहां पर गवर्नर ने अपने शीश महल में आप के क़याम का इंतिज़ाम किया और दरबार मुहम्मद शाह बादशाह दिल्ली को इत्तिला भिजवाई , दरबार से शाही मेहमान नवाज़ी का हुक्म हुआ | फिर शहज़ादे सइदुल्लाह खान ने दिल्ली बादशाह मुहम्मद शाह से जाकर मुलाक़ात की, आप को बादशाह ने फौज का जनरल बना दिया और आप के साथियो को भी फौज में अच्छी जगह मिल गई | रुहेल खंड में कुछ बगावत के आसार नुमाया हुए तो बादशाह ने आपको रुहेल खंड दारुल सल्तनत बरेली भेज दिया ताके वहाँ अमन व आमान कायम करे आप के साहबज़ादे सआदत यार खां दरबार दिल्ली में वज़ीर मुमलिकत थे, कलीदे कलमदान मिला था उनकी अपनी अलैहदा मुहर थी हाफिज काज़िम अली खां के अहद में मुगलिया हुकूमत का ज़वाल शुरू हो गया | हर तरफ बगावतों का शोर और आज़ादी व खुद मुख्तारी का ज़ोर है आप ऊढ की कमान संभाल ने पहुंचे | आप के फ़रज़न्द मौलाना शाह रज़ा अली खान बरेलवी जिन्होंने 1857 इस्वी में अहम् किरदार अदा किया | अंग्रेज़ ने उनका सर कलम करने के लिए पांच हज़ार के इनाम का ऐलान किया था | आप के दो फ़रज़न्द हुए मौलाना मुफ़्ती नक़ी अली खां बरेलवी और दुसरे मौलाना हक़ीम नक़ी अली खां बरेलवी | पैदा हुए जिन्होंने दर्जनों किताबे लिखी मौलाना नक़ी अली खां के तीन फ़रज़न्द थे

  1. आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खां फ़ाज़िले बरेलवी
  2. हज़रत अल्लामा मौलाना हसन रज़ा खां बरेलवी
  3. मौलाना मुफ़्ती मुहम्मद रज़ा खां बरेलवी

बिस्मिल्लाह ख्वानी :- जानशीने हुज़ूर मुफ्तिए आज़म की उम्र शरीफ
जब चार साल, चार माह, चार दिन की हुई तो वालिदे माजिद मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द मौलाना इब्राहीम रज़ा जीलानी मियां, बरेलवी, ने तक़रीब बिस्मिल्लाह ख्वानी मुनअक़िद की और उसमे दारुल उलूम मन्ज़िरे इस्लाम के जुमला तलबा को दावत दी, हुज़ूर मुफ्तिए आज़म आले रहमान अबुल बरकात मुहियुद्द्दीन मुस्तफा रज़ा खा नूरी, बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु, ने रस्म बिस्मिल्लाह अदा कराइ, और “मुहम्मद” नाम पे अक़ीक़ा हुआ, पुकारने का नाम “मुहम्मद इस्माईल रज़ा” और उर्फ़ “मुहम्मद अख्तर रज़ा” तजवीज़ फ़रमाया, हुज़ूर मुफ्तिए आज़म की साहबज़ादी यानि जानशीने हुज़ूर मुफ्तिए आज़म की वलिदाह मजिदाह ने तालीम व तरबियत का ख़ास ख्याल रखा, चूंकि नाना जान का सही जानशीन इसी नवासे को आने वाले वक़्त में बनना था और सारी तवज्जु इन्ही से वाबस्ता थीं, इसी लिए नाना जान हुज़ूर मुफ्तिए आज़म की दुआएं भी आपके हक़ में निकलती रहीं ,

अलक़ाबात व ख़िताबात :- जानशीने हुज़ूर मुफ्तिए आज़म ने वैसे तो हुज़ूर मुफ्तिए आज़म की हयाते ज़ाहिरी में तब्लीगी सफर का आगाज़ कर दिया था मगर बा ज़ाब्ता तौर पर पहला तब्लीगी सफर 1984 ईस्वी हिजरी 1404 में सूर इज़टर गुजरात का दौरा फ़रमाया, वीरावल, पुर बन्दर, जाम जोध पुर, अपलिटा, धोराजी, और जैतपुर होते हुए 15 अगस्त 1984 ईस्वी हिजरी 1404 को अमरेली तशरीफ़ ले गए | वहां हज़ारों लोग दाखिले सिलसिलए आलिया क़ादरिया, बरकातिया, रजविया, हुए रात 12 बजे से 2 बजे तक जानशीने हुज़ूर मुफ्तिए आज़म की तक़रीर हुई और 18 अगस्त को जूना गढ़ में “बज़्मे रज़ा” की जानिब से एक जलसा रज़ा मस्जिद में रखा गया | जिसमे अमीरे शरीअत हाजी नूर मुहम्मद रज़वी मार्फानी ने “ताजुल इस्लाम” का लक़ब दिया | जिसकी ताईद मुफ्तिए गुजरात मौलाना मुफ़्ती अहमद मियां ने की |

फकीहे इस्लाम का लक़ब :- जानशीने मुफ्तिए आज़म को सदरुल मुफ्तीन, सनादुल मुहक़्क़िक़ीन और फकीहे इस्लाम का लक़ब 1984 ईस्वी हिजरी 1404 में रामपुर के मशहूर आलिमे दीन हज़रत मौलाना मुफ़्ती सय्यद शाहिद अली रज़वी शैखुल हदीस अल्जामिआतुल इस्लामिआ गंज क़दीम रामपुर खलीफा व तिलमीज़ हुज़ूर मुफ्तिए आज़म मौलाना शाह मुस्तफा रज़ा बरेलवी ने दिया |

मुफक्किरे अहले सुन्नत का लक़ब :- मुफक्किरे अहले सुन्नत फकीहे आज़म और शैखुल मुहद्दिसीन का लक़ब 14 शव्वालुल मुकर्रम 1405 हिजरी 1985 ईस्वी को मौलाना हकीम मुज़फ्फर अहमद रज़वी, बदायूनी, खलीफा ताजुल उलमा सय्यद औलादे रसूल मुहम्मद मियां मारेहरवी ने दिया | उसके अलावा मसलन ताजुश्शरिया मरजाउल उलमा वल फुज़्ला वगैरह फ़ज़िलतुश शैख़ हज़रत अल्लामा व मौलाना शैख़ मुहम्मद बिन अल्वी मालकी शैखुल हरम मक्का मुअज़्ज़मा, क़ुत्बे मदीना हज़रत अल्लामा व मौलाना शाह ज़ियाउद्दीन मदनी रहमतुल्लाह अलैह खलीफा व शागिर्द आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी जैसे जय्यद अकाबिर उलमा व मशाइख ने अलक़ाबात से नवाज़ा जिसकी एक तवील फेहरिस्त है | शरई काउंसिल ऑफ इंडिया में मुल्क भर से आये जय्यद उल्माए किराम व मुफ्तियाने इज़ाम ने नवम्बर 2005 ईस्वी में काज़ियुल क़ुज़्ज़ात फिल हिन्द का लक़ब दिया |

हुसूले उलूमे इस्लामिया :- जनशीने मुफ्तिए आज़म ने घर पर वालीदह मजीदह से क़ुरआने करीम ख़त्म किया इसी दौरान वालिद माजिद मौलाना इब्राहीम रज़ा खा जीलानी मियां रहमतुल्लाह अलैह से उर्दू की किताबे पढ़ी घर पर तालीम हासिल करने के बाद वालिद बुजर्गवार ने दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम में दाखिला करा दिया | नुहमीर, मीज़ान, व मुन्शाअब वगैरह से हिदाया आखिरेन तक की किताबें दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम के कहना मश्क़ असातिज़ा किराम से पढ़ीं | ताजुश्शरिया ने फ़ारसी की इब्तिदाई क़ुतुब पहली फ़ारसी, दूसरी फ़ारसी, गुलज़ारे दबिस्ताँ, गुलिस्तां और बूँसता मन्ज़रे इस्लाम के उस्ताद हाफिज इनामुल्ला खान तस्नीम हमीदी बरेलवी से पढ़ीं | 1992 ईस्वी में ऍफ़, आर, इस्लामिया इंटर कॉलिज में दाखिला लिया जहाँ पर हिंदी और अंग्रेजी की तालीम हासिल की |

जामिआ अज़हर में दाखिला :- मुफ़स्सिरे आज़म अलैहिर्रहमा के मुरीदे खास जनाब निसार अहमद हामिदी सुल्तानपुरी मरहूम, की कोशिशों से जामिआ अज़हर काहिरा मिस्र से अरबी अदब में महारत हासिल करने के लिए फ़ज़िलतुश शैख़ मौलाना अब्दुल तव्वाब मिसरी की खिदमात हासिल की गयीं थीं शैख़ साहब दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम में दर्स व तदरीस दिया करते थे, उनके खास शागिर्द में आपका शोमर होता था, आपका दौराने तालिबे इल्मी मामूल था के सुबह सुबह अरबी अखबारात उस्ताद को सुनाते और उर्दू, हिंदी, के अखबारात की ख़बरों व इत्तिलाआत को अरबी ज़बान में तर्जुमा करके सुनाते आपको शैख़ साहब बड़ी तवज्जु से पढ़ाते, आपकी ज़हानत व फतानत देखते हुए जामिआ अज़हर में दाखिले का मशवरह मौलाना इब्राहीम रज़ा खा जिलानी मियां को दिया तो वो तय्यार हो गए | ताजुश्शरिया जानशीने मुफ्तिए आज़म हिन्द 1963 ईस्वी में जामिआ अज़हर काहिरा मिस्र तशरीफ़ ले गए | वहां आपने “कुल्लिया उसूलुद्दीन” (एम, ए) में दाखिला लिया, मुसलसल तीन साल तक जामिआ अज़हर मिस्र में रह कर जामिआ के फन्ने तफ़्सीर व हदीस के माहिर उस्तादों से इल्म हासिल किया |

जामिआ अज़हर से फरागत :- ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा अज़हरी रहमतुल्लाह अलैह 1963 में जामिआ अज़हर मिस्र तशरीफ़ ले गए और वहां पर तीन साल मुसलसल हुसूले इल्म में मशगूल रहे दुसरे साल के सालाना इम्तिहान में आपने शिरकत की अल्लाह तआला ने अपने फ़ज़्ले अमीम से पूरे जामिआ अज़हर मिस्र में इम्तिहान में आला कामयाबी अता फ़रमाई |

अवार्ड से नवाज़े गए :- ताजुश्शरिया रहमतुल्लाह अलैह की 1966 ईस्वी में जामिआ अज़हर मिस्र से फरागत हुई तो आप अव्वल पोज़िशन हासिल करने की वजह से जामिआ की मुक़्तदर शख्सियात ने आपको बतौर इनआम जामिआ अज़हर अवार्ड पेश किया गया और साथ ही साथ “सनादे फरागत व तहसील उलूमे इस्लामिया” से भी नवाज़े गए |

  1. आपके असातिज़ा किराम:
  2. हुज़ूर मुफ्तिए आज़म मौलाना अश्शाह मुस्तफा रज़ा नूरी बरेलवी अलैहिर्रहमा |
  3. बहरुल उलूम हज़रत मौलाना मफ़्ती सय्यद मुहम्मद अफ़ज़ल हुसैन रज़वी मूंगिरि |
  4. मुफ़स्सिरे आज़मे हिन्द हज़रत अल्लामा मौलाना इब्राहीन रज़ा खां उर्फ़ जिलानी मियां रज़वी बरेलवी |
  5. फ़ज़िलतुश शैख़ अल्लामा मौलाना मुहम्मद समाही शैखुल हदीस व तफसीर जामिआ अज़हर मिस्र
  6. हज़रत अल्लामा मौलाना महमूद अब्दुल गफ्फार उस्तादल हदीस जामिआ अज़हर मिस्र
  7. उस्ताज़ुल असातिज़ा मौलाना मफ़्ती मुहम्मद अहमद जहांगीर खां रज़वी आज़मी
  8. फ़ज़िलतुश शैख़ मौलाना अब्दुल तव्वाब मिसरी उस्ताज़ मन्ज़रे इस्लाम बरेली शरीफ
  9. मौलाना हाफिज इनामुल्ला खां तस्नीम हामीदी बरेलवी

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दर्स व तदरीस :- ताजुश्शरिया रहमतुल्लाह अलैह मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा खां अज़हरी को 1967 इस्वी में दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम में दर्स व तदरीस देने के लिए पेश कश की गई आपने इस दावत को क़बूलियत से सरफ़राज़ किया 1967 से तदरीस के मसनद पर फ़ाइज़ हो गए ताजुश्शरिया के बड़े भाई मौलाना रिहान रज़ा उर्फ़ रहमानी मियां बरेलवी ने 1978 में ”सदरुल मुदर्रिसीन” आला औधे पर मुक़र्रर किया और इस औधे के साथ रज़वी दारूल इफ्ता के नाइब मुफ़्ती भी रहे आपने अपने अहद में तालीमी निज़ाम की बेहतरीन असातिज़ा और तलवा से हुस्ने सुलूक दर्स व तदरीस में मेहनते शाक़्क़ा आला ज़हन व फिक्र के साथ करते रहे और मदरसे को बामे उरूज़ तक पहुंचाया दर्स व तदरीस का सिलसिला मुसलसल 12 साल तक चलता रहा

फतवा नवेसी का आगाज़ :- जानशीने हुज़ूर मुफ्तीऐ आज़म अल्लामा मुफ़्ती अल्हाज अश्शाह मुस्तफा मुहम्मद अख्तर रज़ा खां अज़हरी रहमतुल्लाह अलैह को अल्लाह तआला ने वदीअत के तौर पर इल्मी व फ़िक़्ही सलाहियतों और जुज़यात पर कामिल दस्तरस इल्मे क़ुरान व हदीस पर मुकम्मल इदराक अता फ़रमाया आपने सबसे पहला फतवा 1966 इस्वी हिज़री 1386 में तहरीर फरमाकर मुफ़्ती सय्यद अफ़ज़ल हुसैन मूंगिरि सदर दारुल इफ्ता मन्ज़रे इस्लाम को दिखाया आपने फ़रमाया के अब मेने देख लिया है नाना मोहतरम को दिखा आईये फिर आपने अपने नाना ताजदारे अहले सुन्नत हुज़ूर मुफ्तिए आज़म रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में पेश किया हज़रत ने मुलाहिज़ा फरमाकर आपसे मुखातिब होकर दाद तहसीन और हौसला अफ़ज़ाई फ़रमाई और हिदायत की के दारुल इफ्ता में आकर फतवा लिखा करो और मुझे दिखाया करो इससे पहले फतवे में सवालात के शाफी व काफी जवाबात दिए ये इस्तिफता मदीना शरीफ से आया था जिसमे तलाक़ निकाह मीरास से मुतअल्लिक़ मसाइले शरइय्या पूछे गए थे आपने तफ्सील से दलाइल व बराहीन के साथ फतवे को मुज़य्यन करके उस्तादे मुहतरम और नाना जान से दाद तहसीन हासिल की |

मरकज़ी दारुल इफ्ता का क़याम :- 1982 में ताजदारे अहले सुन्नत हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द रदियल्लाहु अन्हु के इन्तिक़ाल के बाद आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा क़ादरी फाज़ले बरेलवी के दौलत कदे पर जहां ताजुश्शरिया की मुस्तक़िल सुकूनत है मरकज़ी दारुल इफ्ता की बुनियाद डाली, 1982 ईस्वी में घर पर ही मसाइल के जवाबात इनायत फरमाते थे बाज़ाब्ता तौर पर किसी इदारे की बुनियाद नहीं पड़ी थी मगर उलमा व मशाइख और अवामे अहले सुन्नत की ज़रुरत का ख़याल करते हुए “मरकज़ी दारुल इफ्ता” के क़याम का फैसला किया | उस वक़्त हज़रत रोज़ाना दारुल इफ्ता जलवा अफ़रोज़ होते और आपने मौलाना मुफ़्ती क़ाज़ी अब्दुर्रहीम बस्तवी, मौलाना मुफ़्ती मुहम्मद नाज़िम अली क़ादरी बाराबंकवी, मौलाना मुफ़्ती हबीब रज़ा खान बरेलवी को मुफ़्ती की हैसियत से मरकज़ी दारुल इफ्ता में मुक़र्रर फ़रमाया फतवा को रजिस्टर में नक़ल की खिदमत के लिए मौलाना अब्दुल वहीद खान बरेलवी को मामूर किया गया मौलाना अब्दुल वहीद बरेलवी ने 1983 से 2005 तक फतवा की नक़ल का काम किया आज मरकज़ी दारुल इफ्ता में मौलाना के हाथ से फातावा के 80 रजिस्टर होंगे मौजूदह वक़्त में मरकज़ी दारुल इफ्ता से जारी फातावा की हैसियत मुल्क व बैरूने ममालिक में हर्फ़े आखिर का दर्जे में है | जिस मसनदे इफ्ता की बुनियाद मुजाहिदी जंग आज़ादी मौलाना मुफ़्ती रज़ा अली खां बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह ने रखी थी वो आज तक बरौनक़ है |

अज़्दवाजी ज़िन्दगी :- मुफ़स्सिरे आज़मे हिन्द ने जानशीने मुफ्तिए आज़म का अक़्द मस्नून हकीमुल इस्लाम मौलाना हसनैन रज़ा बरेलवी अलैहिर्रहमा इब्ने उस्ताज़े ज़मन मौलाना हसन रज़ा खान बरेलवी की दुख्तर नेक अख्तर सालेह सीरत के साथ तै कर दिया था, जिसकी तक़रीब 3 नवम्बर 1968 ईस्वी शाबानुल मुअज़्ज़म 1388 हिजरी बरोज़ इतवार को मोहल्ला कांकर टोला पुराना शहर बरेली में अमली जमा पहनाया गया जिनसे एक साहबज़ादे मखदूम गिरामी मौलाना असजद रज़ा क़ादरी, बरेलवी और पांच साहबज़ादियाँ तवलळुद हुईं जिन में सब की शादियां हो चुकी हैं |

हज व ज़ियारत :- ताजुश्शरिया मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा अज़हरी रहमतुल्लाह अलैह ने पहला हज 1403 हिजरी, 4 सितम्बर 1983 ईस्वी दूसरा हज 1405 हिजरी 1985 ईस्वी तीसरा हज 1406 हिजरी 1986 में अदा किए और कई बार उमराह से फ़ैज़याब हुए |

तक़वा शिआरी :- आज कल पीर, फ़क़ीरी, आलिमो, आमिलों के इर्द गिर्द औरतों का हुजूम लगा रहता है ये आम सी बात है जहां देखिए मुँह खोले चलती फिरती नज़र आएंगीं हया नाम की कोई चीज़ नहीं मगर जनशीने हुज़ूर मुफ्तिए आज़म की तक़वा शिआरी मुलाहिज़ा फरमाए 1407 हिजरी की बात है के ज़नान खाना में औरतें ज़ियारत बैअत के लिए हाज़िर हैं जब आप ज़नान खाने में तशरीफ़ ले गए तो चंद औरतों के निक़ाब उलटे और मुँह खोले हुए थे आपने अपनी फ़ौरन आँखे दूसरी तरफ फेरली और फ़रमाया परदह करो बे हिजाब घूमना फिरना सख्त मना है निक़ाब डालो और आपने लाहौल पढ़ा | सब औरतों ने निक़ाब डाल लिया फिर बैअत फ़रमाया, शरीअत की पासदारी हो तो ऐसी हो सफर चाहे जैसा हो हवाई जहाज़ से हो या ट्रैन या गाड़ी से नमाज़ का वक़्त होते ही बेचैन हो जाते अक्सर हुक्म फरमाते के मुसल्ला बिछाओ नमाज़ पढूंगा चाहे एयर पोर्ट हो या स्टेशन नमाज़ तो क़ज़ा नहीं होती नमाज़ पढ़ने की सभी को ताकीद फरमाते हज़रत राक़िम से अक्सर पूछते के नमाज़ पढ़ी के नहीं अगर मालूम हो गया के नमाज़ नहीं पड़ी तो सख्त नाराज़ होते मुझे खूब याद है के 1991 ईस्वी से 2006 तक तक़रीबन 15 साल तक मेने हज़रत के साथ पुरे मुल्क का सफर किया मगर नमाज़ हज़रत की कोई कज़ा नहीं हुई अल्लाहुअक्बर | (मुफ्तिए आज़म और उनके खुलफ़ा)

आपकी लिखी हुई किताबें :- हज़रत मुहद्दिसे कबीर अल्लामा ज़ियाउल मुस्तफा आज़मी दामत बरकतुहुमूल आलिया फरमाते हैं: ताजुश्शरिया के क़लम से निकले हुए फतवा के मुतालआ से ऐसा लगता है के हम आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा रदियल्लाहु अन्हु की तहरीर पढ़ रहे हैं आपकी तहरीर दलाइल और हवालाजात की भर मार से यही ज़ाहिर होता है हुज़ूर ताजुश्शरिया रहमतुल्लाह अलैह कसीर तब्लीगी सफर और दीगर बेतहाशा मसरूफियात के बावजूद तस्नीफ़ व तालीफ़ का सिलसिला भी जारी रखे रहे:
1 हिजरते रसूल
2 आसारे क़यामत
3 टी वि और वीडियो का ऑपरेशन और शरई हुक्म
4 हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के वालिद तारुख या आज़र
5 सुनो चुप रहो
6 शरह हदीसे नियत
7 अल हक़्क़ुल मुबीन
8 तीन तलाक़ का शरई हुक्म
9 क्या दीन की मुहिम पूरी हो चुकी है
10 दिफ़ाअ कंज़ुल ईमान
11 जशने ईद मिलादुन नबी

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बैअत व खिलाफत :- हुज़ूर ताजुश्शरिया रहमतुल्लाह अलैह को बैअत व खिलाफत का शरफ़ सरकार मुफ्तिए आज़म रदियल्लाहु अन्हु से हासिल है सरकार मुफ्तिए आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने बचपन में ही आपको बैअत का शरफ़ आता फरमा दिया था और सिर्फ 19 साल की उम्र में 15 जनवरी 1962 ईस्वी को 1381 हिजरी को तमाम सिलसिलो की खिलाफत व इजाज़त से नवाज़ा इसके अलावा आपको ख़लीफ़ए आला हज़रत बुरहाने मिल्लत हज़रत मुफ़्ती बुरहानुल हक़ जबल पूरी. सय्यदुल उलमा हज़रत सय्यद शाह आले मुस्तफा बरकाती मरहरवी, अहसनुल उलमा हज़रत सय्यद हैदर हसन मियां बरकाती वालिद माजिद मुफ़स्सिरे आज़म अल्लामा मुफ़्ती इब्राहीम रज़ा खान क़ादरी से भी तमाम सिलसिलों की इजाज़त व खिलाफत हासिल थी |

तादाद मुरीदीन मुआतकीदीन :- शैखुल इस्लाम वल मुस्लिमीन फ़क़ीहै इस्लाम अल्लामा मुफ़्ती अख्तर रज़ा खान अज़हरी रहमतुल्लाह अलैह के मुरीदीन हिंदुस्तान, पाकिस्तान, मदीना मुनव्वराह, मक्का मुअज़्ज़मा, बांग्लादेश , मुरेशश, श्रीलंका , बर्तानिया, हालैंड, जुनूबी अफ्रीका, अमरीका, इराक, ईरान, तुर्की मलावी, अरब इमारत, कोयत, लिब्नान, मिस्र शाम, कनाडा, वगैरह ममालिक में लाखों की तादाद में फैले हुए हैं | मुरीदीन में बड़े बड़े उलमा मशाइख, सुलह शुआरा, मुफक्किरीन, क़ाइदीन मुसन्निफीन, रिसर्च, इस्कोलर, पिरोफ़ैसर, डाक्टर और मुहक़्क़िक़ीन, हैं जो आपकी गुलामी पर फखर महसूस करते हैं | एक अंदाज़े के मुताबिक़ आपके मुरीदीन 2 करोड़ हैं |

अरबाबे इल्म व दानिश की नज़र में :- हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द अख्तर मियां अब घर में बैठने का वक़्त नहीं ये लोग जिनकी भीड़ लगी है कभी सुकून से बैठने नहीं देते अब तुम इस काम को अंजाम दो में तुम्हारे सुपुर्द करता हूँ | लोगों से हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द ने फ़रमाया आप लोग अब अख्तर मियां से रुजू करें उन्ही को मेरा क़ाइम मक़ाम और जानशीन जाने |

हुज़ूर क़ुत्बे मदीना :- हुज़ूर क़ुत्बे मदीना अल्लामा मुफ़्ती ज़ियाउद्दीन रज़वी अलैहिर्रहमा फरमाते मुझे मेरे मुर्शिद हुज़ूर आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु से जो कुछ मिला उनके खानवादे के शहज़ादे मौलाना इब्राहीम रज़ा खान, मौलाना रिहान रज़ा, और मौलाना अख्तर रज़ा खान को अता कर दिया

हुज़ूर सय्यदुल उलमा :- हुज़ूर सय्यदुल उलमा मुफ़्ती सय्यद शाह आले मुस्तफा बरकाती मरहरवी अलैहिर्रहमा हुज़ूर ताजुश्शरिया को तमाम सिलसिलो की इजाज़त व खिलाफत अता फ़रमाई और दुआओं से नवाज़ा |

हुज़ूर अहसनुल उलमा :- 14,15 नवम्बर 1984 को मारहरा मुताहिराह में उर्से क़ासमी की तक़रीब में हुज़ूर अहसनुल उलमा मौलाना मुफ़्ती सय्यद हसन मियां बरकाती सज्जादा नशीन ख़ानक़ाह बरकातिया ने जानशीने मुफ्तिए आज़म का इस्तक़बाल किया क़ाइम मक़ाम मुफ्तिए आज़म अल्लामा अज़हरी ज़िंदाबाद के नारे लगाए और मजमा कसीर में उलमा व मशाइख और फुज़्ला दानिश्वरों की मौजूदगी में जनशीने मुफ्तिए आज़म कहकर फ़क़ीर आस्ताना आलिया क़ादरिया,बरकातिया,नूरिया के सज्जादह की हैसियत से क़ाइम मक़ाम मुफ्तिए आज़म अल्लामा अख्तर रज़ा खान साहब को तमाम सिलसिलो की खिलाफत व इजाज़त से माज़ून व मिजाज़ करता हूँ पूरा मजमा सुनले तमाम बरकाती भाई सुनलें और ये उलमा किराम जो उर्स में मौजूद हैं इस बात के गवाह रहें |

अल्लामा सय्यद अल्वी मलिकी :- जनशीने मुफ़्ती ऐ आज़म अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह 1407 हिजरी 1988 ईस्वी में हज व ज़ियारत के लिए तशरीफ़ ले गए तो अल्लामा सय्यद अल्वी मालिकी ने अपनी लिखी हुई किताबे अता फ़रमाई और बहुत ही इज़्ज़त की नज़र से देखा इमाम अहमद रजा क़ादरी बरेलवी के पोते होने कि हेसियत से और मुफ़्ती ऐ आज़म रदियल्लाहु अन्हु के जानशीन की वजह से आपकी बहुत इज़्ज़त अफ़ज़ाई फ़रमाई और दुआइअ कलमात से नवाज़ा |

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अल्लामा फैज़ अहमद ओवैसी पाकिस्तानी :- हुज़ूर ताजुश्शरिया रहमतुल्लाह अलैह ने अल मुआतकद और अल मुस्तनद का तर्जुमा फ़रमाया फ़क़ीर ने सआदत समझ कर किताब मज़कूर का मुताअला किया | इससे फ़क़ीर इल्मी तौर पर खूब मुस्तफ़ीद हुआ फ़क़ीर यक़ीन और निहायत वुसूक़ से अर्ज़ करता है के अवाम के लिए तो अक़ाइद के मुआमलात में बिलाशुबा ये तर्जुमा शरीफ रहबरी व हादी है लेकिन उल्माए किराम के लिए भी बेहतरीन दस्तावेज़ है |

शरह बुखारी :- हज़रत मुफ़्ती मुहम्मद शरीफुल हक़ अमजदी साबिक़ सदर शुबाए अल्जामिआतुल अशरफिया मुबारक पुर जिला आज़म गढ़ यूपी जो तक़रीबन 11 साल तक बरैली शरीफ में हुज़ूर मुफ्तिए आज़म हिन्द की सरपरस्ती में फतावा लिखते रहे और जिन्हें हुज़ूर मुफ्तिए आज़म की उम्र ही में नायब मुफ्ती आज़म कहा और लिखा जाता रहा उनकी ज़बानी कई बार उनका ये तअस्सुर सुना के हुज़ूर मुफ्ती आज़म हिन्द को अपनी ज़िन्दगी के आखरी 25 सालों में जो मक़बूलियत व हर दिल अज़ीज़ी हासिल हुई वो आपके विसाल के बाद अज़हरी मियां को बड़ी तेज़ी के साथ शुरू सालों में ही हासिल हो गई और बहुत जल्द लोगों के दिलों में अज़हरी मियां ने अपनी जगह बनाली |

आपका विसाल ब कमाल :- मुर्शिदे करीम हुज़ूर ताजुश्शरिया रहमतुल्लाह अलैह बरोज़ जुमा मुबारक को 6 ज़ीक़ादा 1439 हिजरी 20 जुलाई 2018 बाद अज़ाने मगरिब 7:30 बजे हुआ हिंदुस्तानी वक़्त के मुताबिक़ बरैली शरीफ मोहल्ला सौदागरान में विसाल फरमा गए |

हो सके तो देख अख्तर बागे जन्नत में उसे
वो गया तारों से आगे आशियाना छोड़ कर
(हयाते ताजुश्शरिया)

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